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गर्भवती महिलाओं पर ग्रहण का असर – अब छोड़िये यह अंधविश्वास!

ग्रहण का गर्भवती महिलाओं पर असर नहीं होता, ये जानते हुए भी मेरे सामने काफी अड़चने थीं कि मुझे होने वाले बच्चे की खातिर क्या करना चाहिए और क्या नहीं? 

गर्भवती महिलाओं पर ग्रहण का असर नहीं होता, ये जानते हुए भी मेरे सामने काफी अड़चने थीं कि मुझे होने वाले बच्चे की खातिर क्या करना चाहिए और क्या नहीं? 

अनुवाद : निकिता सेंगर 

गर्भवती महिलाओं पर ग्रहण का असर क्या वाकई में हानिकारक है? मैं ऐसा नहीं मानती!

“देखो, आपको कुछ भी सिलाई बुनाई  नहीं करना चाहिए!”

“रुकिए। ताला-चाबी का भी उपयोग न करें।”

“सबसे महत्वपूर्ण – खाना नहीं बनाते!”

“कुछ भी खाना या पीना वर्जित है। और बाहर कदम रखना, उसका तो सवाल ही नहीं उठता!”

जितने अधिक लोगों को मैंने सुना, उतना अधिक मैं हतप्रभ थी।

भारत में एक गर्भवती महिला के रूप में, मेरे सामने काफी अड़चने थीं कि मुझे ग्रहण के समय क्या करना चाहिए और क्या नहीं ताकि मेरा बच्चा सही सलामत और स्वस्थ हो।

मुझे कहा जाता था कि, अगर मैंने बुजुर्गों की बातों को नहीं माना और उनके दिए सुझाव का पालन नहीं किया तो मेरा बच्चा अभिशापित (किसी गंभीर बीमारी या चोट का शिकार) होगा!

एक शिक्षित व्यक्ति होने के नाते, मेरे लिए इस ‘ज्ञान’ को पचाना मुश्किल था, हालांकि उनसे बहस करना नादानी होती। मैं अपना समय और शक्ति उन लोगों पर खर्च नहीं करना चाहती थी जो दकियानूसी विचारों से भरे थे।

ग्रहण के समय मेरे लिए सबसे अच्छा था – सोना, एक और ने बताया।

मैं सोई, इसलिए नहीं कि मुझे उन पवित्र आत्माओं और शास्त्रों के अभिशाप से डर था, बल्कि इसलिए क्यूंकि मैं अपनी सास से प्यार करती थी। अगर मैं ऐसा नहीं करती तो शायद वो मेरे बच्चे के स्वास्थ को लेकर चिंतित रहतीं।

जैसे जैसे मैंने इस विषय पर इंटरनेट और कुरेदा, मुझे समझ आया कि ऐसा नहीं है कि सिर्फ हिन्दू धर्म में ऐसी मान्यताये हैं। हालाँकि मुस्लिम ग्रंथो में ग्रहण का गर्भवती महिलाओं पर प्रभाव के बारे में कुछ नहीं कहा गया है परन्तु मुसलमान भी मान्यताओं से अछूते नहीं हैं।

मै नहीं चाहती थी कि मेरी सासू माँ, जिनको मैं बेहद प्यार करती हूँ, किसी भी तरह से, अनावश्यक, परेशान हों। इसलिए मैंने घर के अंदर रहकर ही किताब पढ़ना उचित समझा।

उसमे भी असमंजस से मेरी सास ने पूछा, “क्या तुम उन तीन घंटो के लिए सो नहीं सकती? क्या तुम मेरे लिए इतना भी नहीं कर सकती?”

मैंने भी उनकी तसल्ली के लिए मुस्कुराते हुए हाँ कर दिया।

“ठीक है, ध्यान से सीधे होकर लेटना!”

मुझे अब और तर्क-वितर्क करने में दिलचस्पी नहीं थी। हाँ, मगर खुद से यह जरूर वादा किया कि मैं अपनी आने वाली पीढ़ी को यह सब नहीं सुनाऊँगी।

मुझे यकीन है कि और भी लोग हैं जो ऐसे विचारों को सुनते हैं, मानते भी हैं, कुछ इसलिए कि वो विरोध के ऊपर विनम्रता चुनते हैं तो कुछ शायद इस डर से कि कहीं मैं किसी को नाराज़ ना कर बैठूं। और, कुछ मेरी तरह, जिन्हें विरोध करने से विरोध नहीं, मगर प्यार और सम्मान की खातिर मुद्दे पर सोना चुनते हैं।

मैं बाहर ना निकलने के पीछे का तर्क समझ सकती थी। ग्रहण के दौरान सूर्य और चंद्रमा द्वारा दिए गए किसी भी हानिकारक विकिरण दृष्टि को खराब कर सकते हैं। आपने स्कूल में भूगोल और विज्ञान का अध्ययन किया होगा। आपको पता होना चाहिए कि ग्रहण तब होते हैं जब सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी एक-दूसरे के पथ को पार करते हैं। मगर आप कैसे मान सकते हो कि ग्रहण का गर्भवती महिलाओं पर असर या ऐसे किसी भी हलचल से गर्भ में पल रहे बच्चे को हानि होगी।

और अगर आप तब भी यह मानते हैं, तो आपकी सारी शिक्षा निरर्थक है। यह फिर पूरे शिक्षा प्रणाली की विफलता है और मुझे आपके स्कूल जाने पर खेद है।

अगर हर किसी ने उन्हें जो ‘बताया’ स्वीकार कर लिया होता, तो हमारे पास इंदिरा गांधी, हिलेरी क्लिंटन और हाल ही में, एंजेला मार्केल, जैसी  बुद्धिमान महिलाएं नहीं होतीं। महिलाओं को शायद कभी भी वोटिंग अधिकार नहीं मिलता। आप शायद काम करने वाली महिलाओं को नहीं देख रहे होते।

यदि आप विद्रोही का लेबल नहीं भी पहनकर चलना चाहते, तो हम कम से कम यह तो कर सकते हैं कि सत्तरवीं शताब्दी के विश्वासों को बढ़ावा ना दें, उन्हें आगे प्रचारित न करें।

जैसे ही मैंने होने वाले ग्रहण का सुना और दुर्लभ खगोलीय घटना के बारे में पढ़ा, मुझे यह पुरानी घटना याद आ गयी और मैंने इसके बारे में लिखने का फैसला किया, उम्मीद से कि मैं कुछ दिमागों को प्रभावित कर पाऊं।   

हम में से कई घर की शांति और सद्भाव को ध्यान में रखते हुए बुजुर्गों से बहस नहीं करना चुनते हैं। परन्तु इस कारण स्वयं को एक सही कदम उठाने से ना रोके। यदि आपके पास इस अंधविश्वास से लड़ने का साहस नहीं है, तो सुनिश्चित करें कि आप इसे बढ़ावा नहीं देंगे।

बदलाव में आने के लिए आपका हमेशा उत्कृष्ट विद्रोही होना ज़रुरी नहीं है। ऐसी दकियानूसी मान्यताओं को बढ़ावा ना देना भी पर्याप्त योगदान होगा!

मूल चित्र : Canva

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Ambika Choudhary Mahajan

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