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इश्तियाक़

कभी-कभी कुछ इत्तेफ़ाक़ रूखी सी चल रही ज़िन्दगी में मीठी सी इक हलचल मचा कर जीने के मायने ही बदल देते हैं।  और इस ज़िन्दगी का क्या-इन्हीं छोटे-छोटे लम्हों से इसे संवार लेना चाहिए। कौन जाने, कल हो ना हो!

कभी-कभी कुछ इत्तेफ़ाक़ रूखी सी चल रही ज़िन्दगी में मीठी सी इक हलचल मचा कर जीने के मायने ही बदल देते हैं। और इस ज़िन्दगी का क्या-इन्हीं छोटे-छोटे लम्हों से इसे संवार लेना चाहिए। कौन जाने, कल हो ना हो!

और….
तुम्हारा यूं अचानक,
सामने आ जाना….
इस क़ायनात में,
इक हरक़त कर गया;
पूरा वज़ूद रौशन हो,
ग़ुलाब सा महकने लगा!
महज़ इक तस्वीर से,
इतनी मीठी बे-तरतीबी?
अब बस इश्तियाक़ है,
रुबरू होने का….

मूल चित्र: Pexels

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Pragati Adhikari

Editor at Women’s Web, Designer, Counselor & Art Therapy Practitioner. read more...

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