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हाँ, मैं औरत हूँ और आप सब से यही पूछती हूँ- क्यूँ मेरे अत्याचारी को, हिन्दू-मुस्लिम बना दिया, क्यूँ सफ़ेद कफन को भी, हरा और लाल कर दिया?
मैं औरत हूँ…. हाँ वही औरत-
जिसको हरे रंग की साड़ी में देख तुम फब्ती कसते हो, जिसको लाल रंग के शरारे में देख तुमने सीटी मारी। जिसको हरे रंग की बिंदी में देख दिल धड़काता है तुम्हारा, जिसको लाल रंग की चूड़ी ला कर देते हो तुम। जिसको हरे रंग का गुलाल जबरदस्ती लगा हँसते हो तुम, जिसको लाल रंग का फूल दे प्यार जताते हो।
मैं वही जिसने हरे रंग में लपेट भेजी एक राखी भी तुमको, मैं वही हूँ जो लाल रंग ओढ़, दुल्हन बन आयी तुम्हारी दहलीज़। मैं वही हूँ जो करती हरियाली तीज का व्रत तुम्हारे लिए, मैं वही हूँ जो लाल रंग की रोशनी में इफ़्तार की दावत सजाती।
मैं वही हूँ जिसने एक बेटे की चाह में पीर बाबा, दरगाह हर जगह माथा टेका, मैं वही हूँ जिसने नूर-ए-चिराग की सलामती के लिए किये तीर्थ सब। मैं ही तो निम्बू हरी मिर्ची लटकाती हूँ घर की चौखट पर नजरबट्टू की तरह, मैंने देखो लाल रंग का सुन्दर तोरण बना सजाया है आशियाने की दीवार को।
मैंने जो तोहफे में दी वो हरी कमीज़ पसंद आयी तुमको, मैंने जो काढ़ा लाल रंग से नाम तुम्हारा रखते हो दिल के पास उस रुमाल को। मुझको पसंद है मौसम-ए-हरियाली मुझको पसंद है बहार गुलाब वाली, मुझको पसंद है हरा और लाल रंग दोनों मिल कर सजाते हैं मन-चितवन।
हाँ! पर मुझको अभी पता चला- कि मेरी हरी पसंद तो मुसलमान है! कि मेरा लाल रंग तो हिन्दू है! मुझे ना फर्क लगा कभी लाल और हरे जज़्बात में, तुम्हारे जुल्म ने किये हरे मेरे जख्म भी ओ मेरे सितमगर! दिए तूने दर्द लाल भी! पर न दिखा फिर भी फर्क मुझे, तुम्हारे इस हरे-लाल अहंकार में।
पर तुम ! हां तुम! जो मर्द जात हो ले आए जाने कहाँ से ये फर्क तुम, क्यूँ मेरी इच्छाओं का तुमने लाल-हरा दमन किया। क्यूँ मेरे अत्याचारी को हिन्दू-मुस्लिम बना दिया, क्यूँ बाँट दिया तुमने न्याय को धर्म की आड़ में? क्यूँ अन्याय को काले रंग की बजाय लाल और हरे से लिख दिया, क्यूँ सफ़ेद कफन को भी हरा और लाल कर दिया? जब न फर्क किया दुराचार में न देखी हरी-लाल साड़ी, फिर अब क्यों गाते हो गीता-कुरान की वाणी?
ना माँगती अब मैं तुमसे साड़ी हरी-लाल रंग वाली, ना मांगती अब मैं तुमसे चूड़ी लाल-हरे रंग वाली। बस विनती इतनी कि जब देखो तन पर हरा-लाल रंग, माँ-बहन समझ झुका देना सम्मान में नज़र। जब देखो क्षत-विक्षत तन और मन ओढ़ा देना उसको लाल-हरा चुनर का दामन।
बस करो!
ना करो!
मेरी लाज का सौदा हरे रंग के नोट पे, जख़्म बड़े गहरे लगते हैं लाल रंग की चोट पे…..
मूल चित्र : Pixabay
Myself Pooja aka Nirali. 'Nirali' who is inclusion of all good(s) n bad(s). Not a writer, just trying to be outspoken. While playing the roles of a daughter, a wife, a mother, a read more...
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