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फेसबुक के मुखौटे

यह कविता कहती है कि फ़ेसबुक  पर जो दिखता है वह हमेशा सच नहीं होता और हमें  उससे ज़्यादा प्रभावित नहीं होना चाहिए। 

यह कविता कहती है कि फ़ेसबुक  पर जो दिखता है वह हमेशा सच नहीं होता और हमें  उससे ज़्यादा प्रभावित नहीं होना चाहिए। 

 

कौन कहता है लोग फेसबुक पर फेस दिखाते हैं, मुखौटा ओढ़  कर, सच-झूठ की खिचड़ी पकाते हैं,

घूम-घूम कर आते हैं देश-विदेश, फोटोस  लगा-लगा कर घर में हमारे अशांति मचाते हैं,

 

कौन कहता है लोग फेसबुक पर फेस दिखाते हैं।

बंटता है ज्ञान यहॉं हर एक पोस्ट पर, जाने कितना सच, कितना अज्ञान फैलाते हैं,

 

कौन कहता है लोग फेसबुक पर फेस दिखाते हैं।

पेरेंट्स डे, डॉटर्स डे, टीचर्स डे, ना जाने कौन-कौन से उत्सव मनाते हैं,

 

घरों में झांक कर देखो तो, सब रिश्तों को तन्हा ही पाते हैं,

कौन कहता है लोग फेसबुक पर फेस दिखाते हैं।

 

जो धर्म-अधर्म की पोथी खोल कर बैठते हैं यहॉं पर, अक्सर वही सबसे ज़्यादा अहिंसा फैलाते हैं,

कौन कहता है लोग फेसबुक पर  फेस दिखाते हैं, मुखौटा ओढ़ कर सच-झूठ की खिचड़ी पकाते हैं

कौन कहता है लोग फेसबुक पर फेस दिखाते हैं।

 

मूल चित्र: pexels 

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Indu Grover

My name is Indu. I am a computer engineer by profession and qualification. I am also a very analytical person and have interests in analyzing the things from a different perspective which convince me to read more...

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