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माँ..

माँ के निश्छल प्रेम को दर्शाती एक कविता 

माँ के निश्छल प्रेम को दर्शाती एक कविता 

 

वो हाथ पकड़ चलना सिखाए भी,

राह भटकने से बचाये भी|

ग़ुस्सा कर ग़लती का एहसास कराए भी,

उदास हो जाऊँ तो लाड़ लड़ायें भी।।

 

हम आए तो वो माँ कहलायी,

उससे ना कभी हो पाऊँ मैं परायी।।

जिससे है हर पल हमारी चिंता सताई,

वो साथ है तो मैं जीत जाऊँ हर लड़ाई|

जग रूठ जाये चिंता नहीं,

माँ रूठ जाये तो उससे बड़ी निंदा नहीं।।

 

सब जानते हैं इनके कितने किरदार हैं,

गिनने  लगो तो ख़ूबियों भरपार हैं|

ये बहन भी हैं भाभी भी, जेठानी भी और सास भी|

ये ग्रहणी भी है और कामकाजी भी,

तो अपने बच्चों के लिए महत्वकांशी भी।।

 

सदा तुम्हें हमारे लिए ही जीते देखा है,

एक छोटी सी मेरी खरोंच पर भी घबराते देखा है|

तुम हर दिन कुछ नया सिखाती हो,

विचलित हो जो मन तो साहस बढ़ाती हो।।

 

एक वो भी हैं शक्ति जो शेर पर सवार हैं,

जिनकी कृपा से ये लिखना साकार है,

और एक है वो हस्ती जो माँ रूप साक्षात् है

उन्ही के क़दमों में मेरे सफल जीवन का आकार है।।

 

मूल चित्र : pixabay

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Shruti (Mehendiratta) Choudhary

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