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लड़कियां भी इंसान होती हैं, कोई वस्तु नहीं, जिनका दान हो, पुरानी परंपराएं और कुछ पुराने शब्द भी अब हमें बदलने होंगे, कृपया हमारा कन्यादान न करें।
बात कुछ साल पहले की है। मेरी फ्रेंड के घर पर बहुत परेशानियां थी। उसके पापा का एक्सिडेंट हो गया, भाई की तबीयत बिगड़ गई, मां भी भीतर से बहुत कमजोर हो गई। उस वक़्त उसने और उसकी बहन ने ही सब कुछ संभाला। नाते-रिश्तेदार आते और अपनी बातों से और डराकर चले जाते, पर उसने हिम्मत नहीं हारी।
एक रिश्तेदार आए थे जिन्होंने उसकी मां को कहा, “लगता है शनि–मंगल का प्रकोप है। बहुत भयानक समय लग रहा है। ऐसा न हो किसी को अपने साथ ही ले जाए।” उसकी मां इन बातों से घबरा गई और उन्होंने पंडित जी को बुलाकर सबकी कुंडलियां दिखाई। पंडित जी ने जाने कौन–कौन से रत्न, जड़े, जौ दान, छाया दान इत्यादि बताए, फिर भी स्थिती में कोई भी सुधार नहीं हुआ। दवाई और डॉक्टर की फीस पर तो रूपए ख़र्च हुए ही, ये उपाय कराने वालों ने भी खूब अच्छी कमाई की।
जब इसके बाद भी उनकी स्थिती नहीं सुधरी, तब उनका अंतिम उपाय था कन्यादान, अर्थात् उसकी शादी। पर वह कोई वस्तु तो थी नहीं जो उसका दान हो। दान तो निर्जीव वस्तुओं के होते हैं। ये कन्यादान क्या होता है? उसने अपनी मां को बहुत समझाया। ख़ैर…
आखिरकार, उनकी परीक्षा की घड़ी खत्म हुई और ज़िन्दगी वापस अपनी पटरी पर लौटने लगी।
पर तब से मुझे कन्यादान शब्द से ऐतराज होने लगा। लड़कों की तरह लड़कियां भी इंसान होती हैं, कोई वस्तु नहीं, जिनका दान हो। पुरानी परंपराएं और कुछ पुराने शब्द भी अब हमें बदलने होंगे। लोगों को समझना होगा कि लड़कियां कन्यादान से नहीं, स्वेच्छा से जाना स्वीकार करती हैं।
मैंने सुभद्रा कुमारी चौहान जी के बारे में कहीं पढ़ा था कि उन्होंने अपनी बेटी का कन्यादान करने से मना कर दिया था क्योंकि उन्हें यह लगता था की लड़कियां कोई वस्तु नहीं होती जिनका दान हो। उनकी यह सोच उनके विस्तृत दायरे को दर्शाती है।
मूल चित्र : Pixabay
First published at author’s blog
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