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"आओ मिल कर इक नए समाज का, नया त्योहार मनाते हैं।" हमारे त्योहारों में छुपा है एक जीवन सन्देश-ये कविता एक प्रयास है उस सन्देश को समझ कर जीने का।
“आओ मिल कर इक नए समाज का, नया त्योहार मनाते हैं।” हमारे त्योहारों में छुपा है एक जीवन सन्देश-ये कविता एक प्रयास है उस सन्देश को समझ कर जीने का।
इस देश में, मान्यताओं की कमी नहीं है, त्योहारों की सूची यहाँ, इतनी लम्बी खड़ी है। भिन्न प्रान्त, भिन्न स्वभाव, भिन्न हो चाहे वेश-भाषा, मना लो एक त्योहार, जब भी कोई हँस के है मिलता।
इस भागती भीड़ में लगे हैं, सब पाने कोई सपना, जो सुन ले सुख-दुःख दो पल, वो मानो अपना। अपनापन, नहीं समझता कोई जीत या हार, मेरे अपनो के चेहरे की, मुस्कान ही है मेरा त्यौहार।
ना जाने क्या पाने की चाह में, भागे चले जा रहे हैं, कुछ लम्हे रुक कर समझो, हम क्या चाह रहे हैं। जिस काम में मन नहीं, उसे कैसे निभा पाओगे, कैसे दिल और दिमाग, साथ में लगा पाओगे।
मनाओ तो हर दिन, ये जीवन जो मिला है, गवाँ दोगे नहीं तो हसीन पल, जो तुम्हारे लिए लिखा है। यूँ फिसल कर निकल जाएगा, वक़्त दामन से, फिर ना सोचना, क्यूँ चाँदनी रूठ गयी मेरे आँगन से।
ये त्योहार तो बस, एक बहाना है, सोचो अपनों के साथ, कुछ वक़्त बिताना है। मौसम बदल रहा है, हवा में वो ख़ुशबू आ गयी है, देखो हर घर में, दीए की लौ जगमगा रही है- एक तरफ़, चल रही ताश की बाज़ी, दूसरी ओर, हो रही आतिश बाज़ी।
ऐसे में दो पल, ये भी ग़ौर कर लेना, एक राम सरहद पर भी खड़ा है, लेकर विशाल सेना। हमारी सुरक्षा ही है, उनके दीपक की बाटी, घर से आए ख़त की नमी, है उसकी लौ जलाती। वो वनवास तो पता नहीं, कब ख़त्म होगा, ना जाने कितने वीरों का, अग्नि से मिलन होगा।
नम होती हर कौशल्या की आँखें, जब उनके राम आते हैं, आओ हम भी थम कर, दो पल चैन से साथ बिताते हैं। कुछ कह-सुन, कर लें मन भावों से हल्का, पीछे छोड़ फ़िक्र, कि क्या होगा कल का। शुक्रिया मनाएं, कि ये देह चल रही है, निःस्वार्थ किसी की, खुशी का कारण बन रही है।
अहम् पर हम की, मद पर एकमत की, अमानवता पर प्यार की, स्वार्थ पर परमार्थ की, अंधविश्वास पर कर्म की, अन्याय के हार की, अपनों के प्यार की, हर त्योहार विजय हो।
क्रोध में जलते आज की, लोभ में भागते समाज की, मोह में पड़ी देह की, ईर्षा से जल रही मैं की, राम के नाम के व्यापार की, भीड़ में अकेलेपन की मार की, मन के अंदर जल रही लंका की, परायों की बुरी नज़र की, हर महिषासुर पर दुर्गा की, हर दिन सत्य की विजय हो।
कहते हैं बुराई पर, अच्छाई की जीत हो जाती है, ठंडे हनेरे (अँधेरा) के बाद, सवेरे से प्रीत हो जाती है। आशा है मेरे अपनों के, दिन यूँ ही रोशन रहें, रातें जो काली भी हों तो, प्यार की चाँदनी से जगमगाती रहें।
आओ ये प्रण लें कि, इस जीविका को सम्पन्न बनाते हैं, बड़ा या छोटा, सबको आदर का पात्र बनाते हैं। वृध को आश्रम नहीं, दिल से आश्रय दिलाते हैं, अनाथ को दान नहीं, नया जीवन दिलाते हैं। ना पोंछ सकें अगर आँसू किसी के, तो दिल भी नहीं दुखाते हैं, आओ मिल कर इक नए समाज का, नया त्योहार मनाते हैं।
A Creative Writer by choice and an IT person by profession, Shruti likes to make use of her writings to reach more and more people & help make a difference to the way society has been read more...
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