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दृष्टिकोण – कुछ है या कुछ भी नहीं है

ना से बाहर आकर देखिए, ज़िन्दगी बहुत खूबसूरत है,  ये दुनिया बहुत खूबसूरत है - "हर रोज़ गिरकर भी मुकम्मल खड़े हैं, ऐ ज़िन्दगी देख मेरे हौसले तुझसे भी बड़े हैं।" 

ना से बाहर आकर देखिए, ज़िन्दगी बहुत खूबसूरत है,  ये दुनिया बहुत खूबसूरत है – “हर रोज़ गिरकर भी मुकम्मल खड़े हैं, ऐ ज़िन्दगी देख मेरे हौसले तुझसे भी बड़े हैं।” 

दृष्टिकोण, शब्द एक छोटा सा मगर प्रभाव इतना बड़ा, आपके जीवन पर, कि आप सोच भी नहीं सकते। ग्लास आधा भरा है या खाली, बात सिर्फ इतनी सी नहीं है। बात, इससे कहीं ज़्यादा बड़ी है।

आपको, पहली बार देखने पर क्या दिखता है, क्या बिना किसी कोशिश के दिखता है, आपका व्यक्तित्व बनाने में ये बहुत ज़्यादा मायने रखता है ।

यकीन मानिए, आपकी यही बिना किसी कोशिश किए, देखने की कला, आपके जीवन की दिशा निर्धारित करती है, आपके जीवन का आकार, आपके जीवन का रंग- रूप सब कुछ निर्धारित करती है।

हम सभी का जीवन दुख, परेशानियों, चुनौतियों से भरा पड़ा हुआ है। यहाँ कोई भी अपवाद नहीं है। किसी के पास दो वक़्त की रोटी का संघर्ष है, तो किसी के पास एक छत का, किसी को जॉब मनचाही नहीं मिली, तो किसी को मनचाहा पार्टनर नहीं मिला, हर किसी के पास कुछ ना कुछ नहीं है।

पर, इसके बाद भी ऐसा बहुत कुछ है, जो है। जो हमारे पास है, उसे हम कितना देखते हैं, कितना महसूस करते हैं? ये एक बहुत बड़ा सवाल है, जो हमारे जीवन को आकार देता है। इसीलिए, दुनिया में कुछ लोग अपने जीवन को साकार कर लेते हैं और कुछ लोगों  का जीवन निराकार ही रह जाता है।

एक छोटी सी बात है, अगर आप गौर करें-जो नहीं है, वो हमारे दिलो-दिमाग पर छाया रहता है, और इसीलिए, पहली नजर में, या बिना किसी कोशिश के, ग्लास आधा खाली ही दिखता है। तकरीबन यही अप्रोच हमारी दूसरों के लिए भी होती है। हम बिल्कुल बराबर और बिल्कुल बिंदास होकर लोगों में क्या कमी है या तो ढूंढ लेते हैं  या देख लेते हैं। पर, असल में वो क्या हैं, ये नहीं देख पाते और इसीलिए हम पहले उनसे नाखुश होते हैं, और फिर, फिर यही नजरिया आस-पास के माहौल के लिए भी होने लगता है। और, कब अपने खुद के लिए भी हो जाता है पता ही नहीं चलता।

बात बिल्कुल सीधी सी है, जब तक आप सामने वाले में, अपने आस-पास के माहौल में, अपनी परिस्थितियों में, “क्या है, क्या नहीं है, से आगे जाकर नहीं देखेंगे, तब तक आपका खुद का नजरिया आपके खुद के लिए पॉज़िटिव नहीं होगा। और, जब तक ऐसा होता रहेगा तब तक आप खुद को एक ऐसे सुख से वंचित करती रहेंगी, दूर करती रहेंगी जो आपका हो सकता है। यकीन मानिए, “क्या है” इस फिलोसोफी में सुखी जीवन का सार समाया है।

इतिहास भरा पड़ा हुआ है ऐसे उदाहरणों से, जहां लोगों ने जमीन से आसमान तक का सफर किया है इसी जज़्बे के साथ, इसी दृष्टिकोण के साथ। मेरी कॉम, अरुणिमा सिंह, धीरूभाई अंबानी, अब्दुल कलाम, अक्षय कुमार, रजनीकांत कितने ही ऐसे लोग हैं, जिन्होंने ये सफर तय किया। ये वो सारे लोग हैं जिन्हें ज़िन्दगी ने बेहद कम दिया था। शायद ये उनका नज़रिया और जज़्बा ही था जो उन्हें इतनी दूर सफलतापूर्वक ले आया। ये दोनों चॉयसेस उनके पास भी थीं-कुछ है या कुछ भी नहीं है।  यकीनन कुछ तो है मेरे पास, इस यकीन ने ही उन्हें उस मकाम तक पहुंचाया है जहां वो पहुंचे या जहां वो आज हैं।

शायद, कहना आसान है और करना बहुत मुश्किल, है ना?

खुद में झांककर देखें अगर, तो ऐसे कई किस्से याद आ जाएंगे जहां हमने लोगों को ग़लत समझा, उनकी कमियों को ही देखा, उनकी अच्छाइयों को नहीं। और, ऐसे बहुत सारे अहसास भी जो इस बात को और पुख्ता करते रहे हैं कि, “मेरे पास ये नहीं है, वो नहीं है”। हालांकि, इस भीड़ में कुछ ऐसे भी पल ज़रूर होंगे जब आपने कुछ “होने को” महसूस किया होगा। और यही वो पल हैं जो आपको जिन्दगी देते हैं, आपमें  नई जान भरते हैं, आपको धीरे-धीरे ही सही, पर पूरा करते हैं।

यकीन मानिए, “क्या है पास मेरे”, इसका अहसास, इसकी समझ, इसकी ताकत, “क्या नहीं है मेरे पास”, इस से, बहुत बड़ी है। तो क्यों नहीं हम ये सोचना शुरू करते कि, जिन्दगी ने क्या दिया है हमें। कि, हम कितने खुशनसीब हैं। कि, हमारे पास थोड़ा तो है।  कि, जो हमारे पास है वो बेस्ट है।  हम ऐसा क्यों नहीं समझ सकते? जो हमें मिला वही हम बेस्ट डिजर्व करते हैं।  ऐसा क्यों नहीं सोचते हम?

न, नहीं और नकारात्मकता, हर जगह सबसे पहले टकराने वाले ऑप्शन्स हैं, क्योंकि ये संक्रामक/ कंटेजियस होते हैं। दिमाग को अपनी गिरफ्त में बड़ी तेजी से लेते हैं। इनसे बचिए। करना सिर्फ इतना है कि, “क्या है”, उस पर ध्यान देना है।  और, इन्हीं पलों पर यकीन करते-करते ज़िन्दगी तरफ बढ़ना है।

ना से बाहर आकर देखिए, ज़िन्दगी बहुत खूबसूरत है। आपके आस-पास के लोग बहुत खूबसूरत हैं। ये दुनिया बहुत खूबसूरत है। और, सबसे बड़ी बात, जीना भी तो है ना। तो, क्यों ना ये सोचकर जिया जाए कि सब कुछ भरा-भरा सा है, ग्लास भी और हम भी।

बड़ी सटीक है ये दो लाइनें, जो किसी शायर की हैं-
हर रोज़ गिरकर भी मुकम्मल खड़े हैं,
ऐ ज़िन्दगी देख मेरे हौसले तुझसे भी बड़े हैं। 

मूल चित्र: Pixabay

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Sherry

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