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ससुराल में कदम रखते ही सास ने कहा,"बहु बनके चलो घर मैं", तब एहसास हुआ ज़िन्दगी पलट गई। अब बेटी का प्यार नहीं, बहु के नियम निभाने थे।
ससुराल में कदम रखते ही सास ने कहा,”बहु बनके चलो घर मैं”, तब एहसास हुआ ज़िन्दगी पलट गई। अब बेटी का प्यार नहीं, बहु के नियम निभाने थे।
वो बहुत देर से खिड़की की तरफ मुँह करके बैठी थी। न जाने कौन से ख्यालों में गुम। सहसा ज़ोर-ज़ोर से ढोल की आवाज़ सुनाई दी, पड़ोस वाली आंटी के घर बहु विदा होकर आई थी।
सब खुश थे, नाच-गाना, ढोल-नगाड़ा, मस्ती, सभी कुछ मस्ताना था। पर वो लड़की जो अभी ही किसी की बहू बनी थी, वो अपना मायका क्या सोचकर छोड़कर आई थी।
वो मस्ती, वो बचपना, वो अठखेलियाँ, वो आँगन, वो अलमारी, वो क्यारी, वो ज़िद्द, वो माँ का प्यार, माँ से रुठना, वो पापा के घर आने पर दुनिया भर की बातें, सभी कुछ तो छोड़ आई थी वो।
वो आज बड़ी हो गई थी। अब उसे बेटी का प्यार नहीं, बहु के नियम निभाने थे। बेटी की बढ़ी सी बात को जहाँ माँ दबा जाती थी, वहाँ अब उसी बेटी से बनी बहू की छोटी से छोटी बात को गलत बता कर सब में फ़ैलाया जाएगा। उसे बात-बात पर अपमानित किया जायेगा।
यही सब सोचते-सोचते वो बहुत पीछे पहुंच गई, जब वो खुद विदा होकर आई थी और माँ, भाई, पापा सबको छोड़कर आई थी। खुद अंदर से रो रही थी, पर सबको हँस कर दिखा रही थी। ससुराल में कदम रखते ही सास ने कहा था, “बहु बनके चलो घर मैं। यह क्या हँसे जा रही हो।” तब एहसास हुआ ज़िन्दगी पलट गई थी।
सभी मेहमान चले गए थे, तब ससुराल के सभी लोग बैठकर नाश्ता कर रहे थे। अचानक सासुजी बोली, “यह महारानी तो अपनी माँ के घर के कौले भी ठंडे करके नहीं आई। (कौले मतलब मायके से रो-रो कर सब के कलेजे ठंडे करके आना।)
उसने पहली विदाई पर जाकर माँ से पूछा, “माँ कौन से कौले ठंडे होने है।” माँ को सासु-माँ की कही बात बताई। तब माँ हँस पड़ी क्योंकि वो सासु-माँ की बात समझ ही नहीं पाई थी। सासु-माँ के कहने का मतलब था कि मायके से आई थी तो रोना ज़रूरी था। पर वो कैसे रोती, जानती थी कि अगर रोइ तो घर से सब लोग बहुत रोयेंगे। बस इसलिए, आंसू अंदर दबाये, होंठो पे मुस्कुराहट लिये ससुराल की ओर चल पड़ी थी। बिना जाने कि आगे का जीवन कैसा होने वाला है।
सोचते-सोचते पता ही नहीं चला कब एक बज गया और गेट की घंटी बजी। तभी उसकी तंद्रा टूटी, शायद स्कूल से बच्चे आ गए होंगे। उसका सारा चेहरा आंसुओं से भीगा था। और वो गेट की ओर चल दी।
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