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"साथ मिलकर गाई, बेसुरी ग़ज़लों में; तेरे लिए लिखी कविता की,अधूरी पंक्तियों में", तेरे साथ बिताये हर लम्हे में, तू तो नहीं पर तेरी एक याद बाकी है।
“साथ मिलकर गाई, बेसुरी ग़ज़लों में; तेरे लिए लिखी कविता की,अधूरी पंक्तियों में”, तेरे साथ बिताये हर लम्हे में, तू तो नहीं पर तेरी एक याद बाकी है।
मेरे कमरे की खिड़की पर लटकी, हवा की मनमानियों से खनकती, विंडचाइम में;
तेरे दिए तोहफे के, सहेज के रखे हुए, रैपिंग पेपर की सिलवटों में;
जनवरी की ठण्ड में सड़क किनारे, साथ ली चाय की चुस्कियों में;
तेरे हाथ के बने, मफलर की गर्माहट में;
तेरे साथ तय किए, ऊंचे- नीचे रास्तों की थकान में;
लकड़ी के उस बैंच पर बैठकर, घंटों की बेतुकी बातों में;
साथ मिलकर गाई, बेसुरी ग़ज़लों में;
तेरे लिए लिखी कविता की, अधूरी पंक्तियों में;
और हर लम्हा तेरे, इंतज़ार की चुभन में;
हाँ… तेरी एक याद अब भी बाकी है!
प्रथम प्रकाशित
मूल चित्र: Pexels
I writer by 'will' , 'destiny' , 'genes', & 'profession' love to write as it is the perfect food for my soul's hunger pangs'. Writing since the age of seven, beginning with poetry, freelancing, scripting and read more...
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