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"जब सीख लिया तेरी सीख सेतू उड़ चला पंख तना पसार, झांका तो होता एक बार ही अरमानों की उठी थी बयार"- समय बड़ा बलवान है परंतु किसी के लिए नही रुकता।
“जब सीख लिया तेरी सीख सेतू उड़ चला पंख तना पसार, झांका तो होता एक बार ही अरमानों की उठी थी बयार”- समय बड़ा बलवान है परंतु किसी के लिए नही रुकता।
ऐ वक़्त, ठहर जा ज़रा, समा लूँ चंचल रूह में, हठ त्याग तू बढ़ जाने की, विद्रोह की, प्रतिकार की।
माना आज नई सुबह है नए हौसले और आशाओं की, चले जाने दूँ कैसे तुझे मैं, मुझे उत्साह नहीं विदाई की।
रुक्ष बन क्यों तू चल पड़ा प्यार का समुद्र लांघ, यादों को झटक दुरदुरा बेघर कर, उसकी पोटली बांध।
कैसे मुख मैं फेर लूँ तेरे ज्ञान के विस्तार से, कृतज्ञ हूं और सदा रहूँ, फिर क्यों तू चल-चला चिन्तन के अभाव से।
संज्ञान तो ले जज्बात का गए मेरे ये नयन तरस, मुख फेर तू बस बढ़ गया, उपदेश का शंख नाद कर, और कह चला- “मृगतष्णा त्याग, तू बन सरस”!
जब सीख लिया तेरी सीख से तू उड़ चला पंख तना पसार, झांका तो होता एक बार ही अरमानों की उठी थी बयार।
बीते लम्हे धीरे चल जरा उन पलों को समेट तो लूँ, कुछ रुह में, कुछ सांस में, कुछ शब्दों की गीत माला में।
कुछ मान से सम्मान में, कुछ परिवार-संग एहसास में; कुछ प्रयत्न में, समर्थ से, और असंख्य फरियाद में।
मन की पीड़ा टोह लूँ जरा उठती टीस को सहला तो लूँ, कुछ प्यार में, स्वाभिमान से, और दबे अरमान में।
जो मन बना लिया चले जाने का तो दृढ़ बन और विनीत बना, सबक तो लूँ विफलताओं से और स्वीकार्य चलूँ यादें बना।
जो होता इतना सरल तो ये उठ जाती विफल प्रयास से, कुछ अभाव में, कुछ भाव से, और बढ़ जाने के स्वभाव में।
रुक देख तो ले बस एक बार, आगोश में फिर ले एक बार, थोड़ी खुश्की हो, पर आशा से, ना जाने की अभिलाषा से।
जो चल दिए तो पलट देख ज़रा, क्या रह गया क्या भूल हुई; कुछ गर्व में, सामर्थ्य से, और स्वयं-संघर्ष में।
ऐ वक़्त, ठहर जा ज़रा, समा लूँ मेरे चंचल रूह में, हठ त्याग तू बढ़ जाने की, विद्रोह की, प्रतिकार की।
मूल चित्र : pexels
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