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"नहीं समझ पाओगे ये तुम, जानती हूँ मैं ये बात भी, टूटे धागे टूटकर जुड़े हैं कभी, ना हुआ, ना होगा कभी", फिर भी एक आस है, तुम्हारा इंतज़ार है।
“नहीं समझ पाओगे ये तुम, जानती हूँ मैं ये बात भी, टूटे धागे टूटकर जुड़े हैं कभी, ना हुआ, ना होगा कभी”, फिर भी एक आस है, तुम्हारा इंतज़ार है।
सुनो ना, कुछ कहना था मुझे आज तुमसे, क्या सुनोगे मगर तुम वो बातें आज मन से?
चीख कर मैं नहीं चाहती करना बयाँ शब्दों में, मेरी खामोशियाँ सुन सकोगे क्या बस मन ही में?
या फिर अपना ही सुकून खोजने आओगे यहाँ, बेबसी है मेरी, देखना रोज़ प्यार को मरते यहाँ।
“सिर्फ मेरा”, “सिर्फ मैंं”, क्यों नहीं हैं हम अब ‘हम’, बता दो, खोल दो अब राज़, ताकि न रहे कोई गम।
मैंने था शब्दों को पिरोया बंद घुटन भरे कमरों में, मैंने जिया वो सूनापन, वो रंज-ओ-गम अकेले में।
और पिए थे दर्द के कुछ कड़वे घूँट दिल ही दिल में, नहीं आए थे तुम बाँटने पीड़ा को तब भी इस जीवन में।
नहीं समझ पाओगे ये तुम, जानती हूँ मैं ये बात भी, टूटे धागे टूटकर जुड़े हैं कभी, ना हुआ, ना होगा कभी।
नाराज हूँ, हताश हूँ, बेहद, तुम्हारे ना आने से भी, और हैरान फिरती हूँ, तुम्हारे न समझ पाने से भी।
बीती जिंदगानी, बीते सुहावने सुबह-शाम साथ में, अब तुम सुन-समझ नहीं पाते चाहे कहूँ-ढालूँ शब्दों में।
फिर भी ना जाने कौन सी आस में यूँ मैं फिरती हूँ, फिर धड़कने एक होंगी हमारी, दुआएं माँगा करती हूँ।
मूल चित्र: Pexels
Hi, I am Smita Saksena. I am Author of two Books, Blogger, Influencer and a Freelance Content Creator. I love to write Articles, Blogs, Stories, Quotes and Poetry in Hindi and English languages. Initially, it read more...
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