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शमा का #MeToo: अपनी “मैं” की पहचान

"गरीब हैं। लेकिन, इतना समझते हैं, गलत को सहते जाएंगे तो हमेशा सहते ही रहेंगे।" #Me Too का सही अर्थ शमा ने आज मेरे को सिखाया।

“गरीब हैं। लेकिन, इतना समझते हैं, गलत को सहते जाएंगे तो हमेशा सहते ही रहेंगे।” #Me Too का सही अर्थ शमा ने आज मेरे को सिखाया।

“आज शमा आई नहीं, पांच बज गए।” घड़ी की ओर देखते मैं शाम के खाने की तैयारी करने लगी।

तभी दरवाज़े पर घंटी बजी। दरवाज़े की ओर लपकते हुए तनी भौंहों से दरवाज़ा खोला और बोलने ही वाली थी कि उसका सूजा हुआ लाल चेहरा देख थोड़ी ठिठक गयी।

“आज थोड़ा देर हो गया भाभी! बस अभी कर दूंगी” (अक्सर वो अपनी सारी मालकिन को “मैडम” कहकर पुकारती पर मुझे भाभी कहती। शायद अपनेपन का पता मिला होगा उसे)

चुन्नी की एक ओर गांठ लगाकर, सलवार थोड़ी ऊपर कर बालकनी धोने चली गयी।

आज चेहरे पर वो रौनक नहीं देखी जो रोज़ हुआ करती है। सोचा पूछ लूँ पर लगा क्या पता कहीं दिल में बुरा ना लगा ले।

मैं सब्जी काट रही थी और वो अंदर के कमरे साफ़ करती हुई बाहर आ गयी। आज कुछ बोली भी नहीं, चुपचाप काम किए जा रही थी।

मुझसे रहा ना गया। पूछ लिया, “बच्चों को तो छुट्टी होगी आज?”

“हाँ भाभी! आज दोनों घर पर ही हैं।”

“ये चेहरे पर क्या हुआ? सूजा सा लग रहा है।” मैंने मन की जिज्ञासा पर विराम लगाने के लिए पूछ ही लिया।

“कल बहुत मारे हमारे मरद हमें। नशे में।”

“सब्जी बनाते समय हमारे हाथ से मिर्च का पाउडर लेकर हमारे आँख में डाल दिए। पूरी रात जलता रहा।”

“दो-तीन दफे नहा लिए हैं, फिर भी जलन जाती नहीं।”

“सर में पूरा सूजन है, पर काम पर आने के लिए मना करें तो किस-किस को करें। एक नहीं, नौ घर में काम करते हैं हम।”

दिमागी तरंगों ने चलना जैसे बंद कर दिया था। कुछ सुन्न हो गया था थोड़ी देर के लिए। एक अजीब सा सन्नाटा पसर गया हम दोनों के बीच। हिम्मत नहीं जुटा पाई  उससे कुछ कहने की।

वो भी चुपचाप बर्तन साफ़ करने चली गई।

अपने लिए चाय बनाते समय उसके लिए भी अक्सर मैं चाय बना दिया करती हूँ।

चाय के उबाल को चीरती आँखों से देखती किसी सोच में खोयी थी कि आवाज़ आई, “भाभी! कल भी हम थोड़ा लेट आएंगे। बच्चों को स्कूल छोड़ने जाना पड़ेगा। वो तो भाग गया अपने गाँव, हमें ऐसे ही छोड़कर, बच्चों की ज़िम्मेदारी से भागकर।”

“पर क्यों? हुआ क्या?” मैंने पूछा।

“काम नहीं करना है उसे। और, कभी टेंट लगाने का, पेंट करने का पैसा मिल भी गया तो पीने में उसे खर्च करके ही घर लौटता है। हमसे सिर्फ उसका एक ही काम है।” और, वो थोड़ा रुक गयी।

“रोज़ का यही काम है हमारा। बच्चों का पढ़ाई-लिखाई, घर का खर्च, सब हम ही देखते हैं। कल ही नशे में कहीं फ़ोन गिरा आया। बच्चों के स्कूल जाकर गालियां देता है।”

“चाली वालों ने धमकाया तो दो दिन अक्ल आई। फिर, तीसरे दिन से वही सब।”

“फिर कल रात को हमने कह दिया, अगर ज़िम्मेदारी नहीं  उठानी है तो जाओ अपने माँ-बाप के यहाँ, वो करेंगे तुम्हारी सेवा। तुम्हारा नखरा वो झेलें, तुम्हारी मार वो खाएं।”

“मेरे बच्चे ऐसे माहौल में नहीं रहेंगे। हमें कुछ नहीं आता, पढ़ना-लिखना नहीं आता। गरीब हैं। लेकिन, इतना समझते हैं, गलत को सहते जाएंगे तो हमेशा सहते ही रहेंगे। हम जानते हैं सब हमें बहुत बुरा बोलेगा कि पति को बाहर निकाल दिया, लेकिन हम हमारे बच्चों और हमारे ज़मीर को बचाने के लिए बुरा बनें तो भी कोई बात नहीं।”

और, कहते-कहते एक आंसू की बूँद उसके गाल पर गिर गयी।

“गेट बंद कर लो भाभी। कल थोड़ी देर हो जाएगी।”

पल भर में फिर अपने व्यक्तित्व में आने में समय नहीं लगा उसे। लेकिन, मुझे बहुत दूर ले गई अपने व्यक्तित्व से।

शायद यही है असली #MeToo

अपने अस्तित्व की रक्षा।

अपनी आबरू का सम्मान।

अन्याय का विरोध।

और, अपनी  “मैं” की पहचान।

प्रथम प्रकाशित 

मूल चित्र: Pixabay

About the Author

Shweta Vyas

Now a days ..Vihaan's Mum...Wanderer at heart,extremely unstable in thoughts,readholic; which has cure only in blogs and books...my pen have words about parenting,women empowerment and wellness..love to delve read more...

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