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ले कर्ज सबका सर पर भारी, वो जमीन से अलविदा हो गए, कुछ खास ही थे वो चेहरे, जो देश की मिट्टी में ही खो गए।
कुछ कहानियाँ खामोश हो गईं, कुछ सपने मायूस हो गए; अरमानों से सजी थी जिंदगी जिनकी, वे चेहरे ना जाने कहाँ खो गए।
मां ने हर चोट पे जिसकी, आँख से आँसू बहाया होगा, जुग-जुग जिए मेरा लाल, बस यही मन में आया होगा; आज, लहू-लुहान उस लाल को देख, उसका दिल तो पथराया होगा।
पिता ने काँधे पर अपने लाल को घुमाया होगा, बेटे का भविष्य, बूढ़े बाप की आँख में सिमट आया होगा; फिर, किस तरह उस बाप ने, बेटे की निर्जीव देह को उठाया होगा?
राखी-भैयादूज हर बार, बहन ने बल्लैयां ली होंगी, भाई करेगा मेरी रक्षा, ऐसी ही उम्मीदें की होंगी; चढ़ेगा घोड़ी मेरा भैया, ऐसा सपना देखा होगा, तिरंगे में लिपटा शव देखकर, उसका दिल कितना रोया होगा।
प्रेम-कहानी पूरी होगी, स्वप्न दोनों ने सजाए होंगे, टूटी-चूड़ियां, बिखरा-सिंदूर, देख उस निर्जीव को कितना लजाए होंगे; शुरु ही हुई थी जो कहानी, बस अर्ध-विराम पर ही पूरी हो गई।
ले कर्ज सबका सर पर भारी, वो जमीन से अलविदा हो गए, कुछ खास ही थे वो चेहरे, जो देश की मिट्टी में ही खो गए; कुछ खास ही थे वो चेहरे, जो देश के लिए कुर्बान हो गए।
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