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"सांवला होना कोई अपराध नहीं और ना ही अभिशाप। आइये, अब हम भी यह मान लें कि ख़ूबसूरती रंग-रूप की नहीं, बल्कि आप कैसे व्यक्ति हैं उससे झलकती है।"
“सांवला होना कोई अपराध नहीं और ना ही अभिशाप। आइये, अब हम भी यह मान लें कि ख़ूबसूरती रंग-रूप की नहीं, बल्कि आप कैसे व्यक्ति हैं उससे झलकती है।”
ख़ूबसूरती किसको नहीं अच्छी लगती। हर कोई यही चाहता है कि वह अपनी ज़िन्दगी को ख़ूबसूरत बना सके। पर, क्या एक ख़ूबसूरत चीज़ या व्यक्ति सब के लिए उतना ही सुंदर होता है? एक माँ के लिए उसका हर बच्चा ख़ूबसूरत होता है, चाहे दुनिया की नज़र में वह कैसा भी हो।
लोग चाहे काला कहें या गोरा, लम्बा कहें या छोटा, दुनिया की बनाई ऐसी कितनी ही परिभाषाएं हैं, जिसके मुताबिक जो उसमें समाया वही सुंदर कहलाता है। जो कोई भी उस दायरे के बाहर हुआ, उसको ख़ूबसूरत कह पाना बेहद मुश्किल लगता है।
और इन सब मापदंडों में बेहद ही महत्त्व का है, आपका रंग। अगर, भगवान् ने आपको गोरा बनाया, तो आप समाज में सुंदर ही कहलाएंगी। रंग सांवला या काला हो तो फिर आप विश्व के किसी भी अनोखे काम में सफलता प्राप्त कर लें, आपको अपनी आलोचला सुननी ही पड़ेगी। क्यों? क्योंकि, आप सांवली हैं।
कमाल है, समाज के दायरे भी ऐसे हैं जो पल भर में किसी को भी फेल कर दें। अगर बच्चा सांवला है, तो उसको गोरा करने के उबटन बताये जाएंगे। अगर आप गर्भवती हैं, तो आपको केसर का दूध पीने की हिदायतें दी जाएंगी, ताकि बच्चा गोरा पैदा हो। और, बाजार तो भरा पड़ा हैं, आपकी चमड़ी का रंग बदलने के लिए। वजह बस इतनी की आप सुंदर दिखें, या एक गोरा इंसान ही सुंदर दिख सकता है। या फिर यह कहिये कि एक इंसान का सारा वजूद उसकी चमड़ी में ही है। उसकी सोच, उसकी पढ़ाई-लिखाई, उपलब्धियों का कोई मोल नहीं? शायद हर किसी को एक ख़ूबसूरत बहु की तलाश रहती है, जो सुंदर होनी बहुत ज़रूरी है। रंग-रूप में कोई कमी नहीं होनी चाहिये।
पर, अगर सोचें तो यह ख़्याल आए कहाँ से? शायद इसलिए कि बेटियों का एक मात्र लक्ष्य था शादी करना। उनके परिवार के लिए यह जानना कभी ज़रूरी नहीं था कि उनकी बेटी के लिए गोरा होना बिलकुल भी मायने नहीं रखता। उनको समाज के तानों की भी ज़रुरत नहीं। उनको अपने रंग-रूप में, अपने को सक्षम और अच्छा महसूस करना ही सबसे बड़ा कार्य था।
सांवला होना कोई अपराध नहीं और ना ही अभिशाप। आइये, अब हम भी यह मान लें कि ख़ूबसूरती रंग-रूप की नहीं, बल्कि आप कैसे व्यक्ति हैं उससे झलकती है। आपका व्यक्तित्व कैसा है और आप अपने आप में कितने हैं। एक ख़ूबसूरत दिल शायद बाहर से न दिखे, पर वही होती है असली ख़ूबसूरती। बाक़ी सब सिर्फ़ इस चमकती दुनिया का छलावा है। कुदरत की बनाई हर चीज़ ख़ूबसूरत है और हर किसी में एक अलग ख़ूबी है। बस अपने को पहचानें और दुनियावालों की सलाहों से दूर रहें।
मैं भी उन्ही सांवली लड़कियों में से एक थी। गोरे होने की फ़रमाइश मैंने भी बहुत सुनी है। अजीबो-गरीब से नाम होते हैं जो आपके सांवले होने पर वैसे ही पड़ जाते हैं। आप किसी को सुंदर नज़र ही नहीं आते, फ़िर चाहे आप टॉपर क्यों न हों अपने स्कूल में। बेसन के उबटन तो जैसे आपके लिए ही बने हों और गोरा करने वाली क्रीम का मुनाफ़ा, आप जैसे ही लोगों से ही जुड़ा हो। आख़िर, साँवली बहु ढूंढ़ता ही कौन है!
ख़ैर, मैंने कभी उनक सब की परवाह नहीं करी और ना ही मेरे घर वालों ने मुझे वह क्रीम खरीद कर दी। पति मिला जो मेरे रंग के बिलकुल विपरीत। दिल मिलने चाहिए, बस वही जरूरी है। शुरू से ही सशक्त थी, यह भी सीख लिया कि हर हिदायत सुनने लायक नहीं होती।
कुछ बातें तो हमारे बच्चे ही हमको सीखा देते हैं। एक दिन मैं काजल लगा रही थी तो मेरी छोटी बेटी बोली, “आप काजल क्यों लगा रही हो?” मैंने भी बोल दिया, “हाँ, थोड़ा अच्छे दिखते हैं और सुंदर भी।” वो तपाक से बोली, “पर आप तो मुझे हमेशा ही सुंदर दिखते हो, चाहे आप कैसे भी रहो।” और यह सुनकर मेरा दिल बाग़-बाग़ हो गया। कितना अच्छा होता है यह बचपन, जो सिर्फ प्यार देखता है, ना दिखावा और ना छल-कपट। काश, सभी लोग एक इंसान के मन की सुंदरता देख पाते, न कि रंग-रूप की तुलना से उसको किसी से कम समझते।
अपने दिल की सुनें-जो कहता है, “आप ख़ूबसूरत हो!”
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