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डायरी का एक पन्ना-ज़िन्दगी, मुझे इंतज़ार है तुम्हारा

ज़िन्दगी तेरे उन लम्हों के नाम, जो इम्तिहान लेते हैं-"ज़िन्दगी जब भी मिलना, पूरी तैयारी से मिलना क्योंकि इम्तिहान इस बार तुम दोगी। जवाब इस बार तुम दोगी।"

ज़िन्दगी तेरे उन लम्हों के नाम, जो इम्तिहान लेते हैं-“ज़िन्दगी जब भी मिलना, पूरी तैयारी से मिलना क्योंकि इम्तिहान इस बार तुम दोगी। जवाब इस बार तुम दोगी।”

जब-जब ज़िन्दगी तुम मुझे हाशिये पे धकेलती हो, मुड़कर एक ही बात पूछती हूं, “क्यों करती हो इतना प्यार मुझे? क्यों नहीं जी पाती मेरे बिना?”

ये प्यार ही है ना तुम्हारा, जो मुझे हर दिन, एक नए इम्तिहान में डाल देती हो? मेरी माँ नहीं है। शायद इसलिए, ये जिम्मा तुमने ले लिया है। हर दिन, कुछ ना कुछ, सीखा जाती हो मुझे। कितना अजीब है न, लोग सलाह लेते हैं और तुम इम्तिहान। बार-बार! पर पता है तुम्हें? ऐसा करते-करते तुमने मुझे क्या दे दिया है? एक ऐसा जज़्बा, जो चाहे कितना भी बेघर हो, यतीम नहीं होता। एक ऐसा हौसला, जो कितना भी टूट जाए, ज़मीन नहीं होता। और, एक ऐसा यकीन, जो कितना भी नामुमकिन हो, वजूद नहीं खोता। इसीलिए, मुझे यकीन है कि तुम, एक न एक दिन, कहीं ना कहीं, ज़रूर मिलोगी, मुझे।

हर बार, जब भी तुम्हें आवाज़ दी है मैंने, तो तुमने सुना है मुझे, और इसीलिए, अक्सर तुम अपने होने का अहसास कहीं न कहीं करा जाती हो। कभी किसी किताब के पन्नों में, तो कभी किसी शाम के एक कोने में, कभी सुबह के आलस में, तो कभी बारिश के संगीत में, और कभी हवाओं के शोर में पा जाती हूं तुम्हें।  कभी रास्तों की आवारगी में नज़र आती हो तुम और ना जाने कितनी ही चीज़ों में यहां-वहां दिखती रहती हो तुम। शायद तुम्हारा कोई रूप, रंग नहीं है, आकार नहीं है। तुम हर जगह हो सकती हो और नहीं भी। ये बस महसूस करने की बात है और यही वो चीज़ है जो मुझे सबसे ज़्यादा ज़िंदा रखती है, जीने का हौसला देती है। पता है क्यों? क्यूंकि रूप, रंग, आकार, व्यवहार, ये सब बदल जाते हैं समय के साथ। अच्छे से बुरे और बुरे से बदतर हो जाते हैं ज़्यादातर। पर जिसका आकार ही ना हो, कोई रंग-रूप ही ना हो, वो कभी बदल ही नहीं सकता। और इसीलिए अच्छा है, बहुत अच्छा है, कि तुम निराकार हो और मुझे हर उस चीज़ में दिख जाती हो, जो निश्चल होती है, जो अविरल होती है, जो निष्काम होती है। और शायद, कोई नाम भी नहीं, जो सबके लिए हो सकती है, हर जगह हो सकती है, एक अहसास की तरह, जो आजकल अक्सर मेरे साथ होने लगा है। ये भर देता है मुझे रोशनी और सुकून से कि कम से कम मैं तुम्हें महसूस तो कर पाती हूँ। टुकड़ों में ही सही, जी तो पाती हूँ।

देखा है मैंने लोगों को, जो अपने चारों तरफ फैली रोशनी के ढेर पर भी आँखें मूंदे बैठे हैं और अंधेरों को पास आने के लिए कोसते रहते हैं। ये लोग तुम्हें सामने खड़ा देखकर भी नहीं पहचान पाते। पर मैं, मैं शायद ऐसी नहीं। तुमने बनने ही नहीं दिया मुझे होनेस्टली। तुम्हारी शुक्रगुज़ार हूँ, क्योंकि आज भी हर हाल में तुम मुझे हर रोज़ दिख ही जाया करती हो, किसी न किसी रूप में। उन सब में जो, जो सबके लिए हैं, जो हमारे चारों तरफ हैं। सूरज, चाँद, सितारे, हवा, आकाश, फूल-पत्तियाँ, हर एक में तुम हो।

तुम दिख जाती हो, महसूस हो जाती हो। पर, अगर ऐसा है, तो ऐसा क्यों है कि मुझे तुम्हारा इंतज़ार है? क्यों मुझे लगता है कि तुमसे मिलना अभी भी बाकी है? कहीं इसलिए तो नहीं कि तुम मुझे मिलती तो ज़रूर हो, पर हमेशा टुकड़ों में? शायद, इसीलिए मेरी प्यास बनी रहती है। तुमसे मिलकर भी तुमसे मिलने का इंतजार बना रहता है। पर टुकड़ों में जो मिलती हो तो मेरे इस अहसास को ज़िंदा बनाए रखती हो, और मुझे जवान।

जब भी सोचती हूँ कि तुमसे मिलना बाकी है अभी, तो और जान आने लगती है। जब भी सोचती हूँ कि अभी तुम्हारी आँखों में आँखें डालना बाकी है तो सपने आने लगते हैं। कहीं किसी रोज़, क्या पता! इस इंतजार की वजह से सांस लेने और जीने में फ़र्क समझ पाई हूँ मैं। जीना सीख पायी हूं मैं। हर बार जब भी तुमसे हारी तो ख़ुद को ये समझा पाई कि शायद ये मेरी ख़ुशनसीबी है, क्योंकि मेरे नसीब में तुमने इससे कुछ अच्छा लिखा है और वो मुझे समय आने पर ज़रूर मिलेगा। इतना बड़ा राज़ तुम्हारा कौन और कितने लोग समझ पाए हैं? पर, मैं समझी हूँ। हाँ, मैं समझी हूँ! तो सुनो! सुनो तुम! तुम्हें मिलना होगा मुझे पूरा! तुम्हारा पूरा मिलना बनता है मुझसे!

आओ, कभी सामने मेरे, दो पल बैठो। पूरे वजूद में। पूरे होश में। देखो मुझे, तुम्हारा ही अक्स हूँ। आँख में आँख डालकर तुमसे हर सवाल का जवाब लूँगी और तुम्हारे हर सवाल का जवाब दूँगी। और, देखूँगी कि खुश ज़्यादा कौन होता है, तुम या मैं। जीतूँगी मैं ही, किसी भी हाल में। क्योंकि, मैंने अपने सारे वादे निभाए हैं। तुम्हारा हाथ कभी नहीं छोड़ा। तुम्हें संभाला है। टुकड़ों में ही सही, जीती रही तुम्हारे साथ। तो अब, जब भी मिलो, पूरी तैयारी से मिलना क्योंकि इम्तिहान इस बार तुम दोगी। जवाब इस बार तुम्हें देना होगा।

अब, बस इतनी सी ही ख़्वाहिश है कि, जब इस बार मिलो तो पूरा मिलो, हाशिए पे नहीं। तब तक, मेरा वादा है तुमसे, मैं उम्र ढलने नहीं दूंगी, ख़ुद को मरने नहीं दूंगी। और हां, एक और बात, कोई भी हारे या जीते, जीत मेरी ही होगी क्योंकि हार कर जीतना मैं सीख चुकी हूँ।

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Sherry

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