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वेदना-दिल की बात, कोई मुझसे तो पूछे

"पर कोई मुझसे तो पूछे, कि सच नहीं ये जीवन मेरा, ये तो बस एक कहानी है"- ज़रूरी नहीं कि जो दिखे वही सच्चाई है। कई मर्तबा जो नज़र आता है वह हक़ीक़त से कहीं परे होता है। 

“पर कोई मुझसे तो पूछे, कि सच नहीं ये जीवन मेरा, ये तो बस एक कहानी है”- ज़रूरी नहीं कि जो दिखे वही सच्चाई है। कई मर्तबा जो नज़र आता है वह हक़ीक़त से कहीं परे होता है। 

यह सच नहीं है जन्म मेरा,
यह तो सिर्फ एक भ्रांति है।
जिस संसार में मैंने जन्म लिया,
उस संसार में तो अशांति है।
इस संसार में जन्म लेकर,
क्या खोया क्या पाया है।
यह संसार है सिर्फ सपनों का,
यहां झूठ से मिलती शांति है।
जन्म लेकर मैंने ख़ुद को खोया,
अब मर कर ज़िन्दगी पानी है। 
यहां बिखरी जन्म लेकर मैं,
बस अब ज़िन्दगी सिमटानी है।
आक्रोश ही आक्रोश है जीवन में,
यह ज़िन्दग़ी नहीं बस एक कहानी है।
दिल में भरे जज़्बात मेरे,
और आँखों के आँसू, 
दुनिया की नज़रों में बस पानी है,
मर-मर कर ज़िन्दगी जी रही मैं,
घुट-घुट कर ज़िन्दगी कट जानी है। 
यह सच नहीं है जन्म मेरा,
यह तो बस एक कहानी है।

माँ ने जन्म देकर मुझको पाला,
बोली पराये घर तुझको जाना है।
इस घर से दूर जाकर तुझको,
दूजा घर अपनाना है।
दूजे घर में जाकर नारी,
बस दासी बन जाती है। 
दासी बन घर के चरणों में,
वो तो बस मिट जाती है।
उसी तरह मैं भी जाकर,
घर ही घर में घुट गई। 
दुनिया बोले बहुत मस्ती से,
मेरी ज़िंदगी कट गई।
‘जब भी मिलो नीलम  से,
देखो वो कितनी मस्तानी है,
भगवान् ज़िन्दगी सबको देना,
जैसी नीलम की ज़िन्दगानी है।’
पर कोई मुझसे तो पूछे,
कि सच नहीं ये जीवन मेरा,
ये तो बस एक कहानी है।

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