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जिंदगी की कई बारीकियों से तब मैं अंजानी थी-"जिंदगी बदलती है हर पल, पर न सोचा कि तू बदल जायेगा, ऐसे कैसे कोई अपना, सामने से पलट जायेगा?"
जिंदगी की कई बारीकियों से तब मैं अंजानी थी-“जिंदगी बदलती है हर पल, पर न सोचा कि तू बदल जायेगा, ऐसे कैसे कोई अपना, सामने से पलट जायेगा?”
जब जुड़ी थी तुमसे, तो माना बचपना था, नादानी थी, जिंदगी की कई बारीकियों से तब मैं अंजानी थी। सोचा था लम्बा सफर है, सीख लूंगी सब, पर मैं भी कितनी दीवानी थी। जिंदगी बदलती है हर पल, पर न सोचा कि तू बदल जायेगा, ऐसे कैसे कोई अपना, सामने से पलट जायेगा?
सोचती थी सब है अपार, हमारी खुशियां, हमारा प्यार, ऐसे कैसे सिमट गया, तेरा-मेरा घर-संसार? अब जब दस्तक देता है समय दरवाज़े पर, देखती सब, और अंधकार हूँ, अभी भी अवाक् हूं, घबराई, सिमटी बैठी, बदहवास हूँ। कल तक थे जो राही एक मंज़िल के, आज कैसे गुमराह हो गए, हम-तुम, जाने ऐसे कैसे, इतने बेपरवाह हो गए।
वो लम्हे, वो साथ, वो हंसी, वो खिलखिलाट, वो बातें, वो यादें, कब कैसे कहां विलुप्त हो गए। अब दम घुटने लगा है, इस असमंजस में, यूँ बिलखते-रोते, और सिसकने में। हो अगर संग, तो साथ दो, नहीं तो खुले आसमानों मे, उड़ने का साहस दो।
My name is Indu. I am a computer engineer by profession and qualification. I am also a very analytical person and have interests in analyzing the things from a different perspective which convince me to read more...
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