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सेक्सुअल रिलेशन बनाने से बदनामी लड़की की ही क्यों होती है, लड़के की क्यों नहीं? ज़ाहिर तौर पर या तो बदनामी दोनों की होनी चाहिए या फिर किसी की नहीं।
क्या तुम चाहते हो कि तुम्हारी अपनी माँ, बहन या बेटी जब भी स्कूल, कॉलेज या कहीं भी जाने के लिए घर से बाहर निकलें, तो गंदी नज़र वाले, गुंडे रूपी मानसिकता रोडवेज़ वाले लड़के उन्हें बसों में (जो कि अक्सर देखने को मिलता है) या स्कूल-कॉलेज में, गंदी नियत से ताड़ें, बुरी नज़रों से देखें। उनके आने-जाने का हिसाब रखें कि वो कहां जाती हैं? किसके साथ जाती हैं? क्यों जाती हैं? अगर कोई लड़का उनके साथ है तो क्या वह उनका भाई है? उनका दोस्त है? उनका बॉयफ्रेंड है? या कोई भी है?
क्या लड़कियां, लड़कों से बोल नहीं सकती? क्या वो लड़कों के साथ कहीं जा नहीं सकती? क्या वो लड़कों से मिल नहीं सकती?
क्या तुम चाहते हो कि लड़कियां ऐसा ना करें और मर्दों के अनुसार ही सब काम करें, तो मेरे साथियों, अगर ऐसी ही तुच्छ सोच आपकी भी है तो अपनी मां को, बहन को और शादी के बाद अपनी बेटी को भी मार देना। अगर तुम उन्हें एक सुरक्षित और बराबरी का माहौल नहीं दे सकते, उन्हें आज़ादी नहीं दे सकते, और ख़ुद के अनुसार जिंदगी जीने का अधिकार नहीं दे सकते, तो तुम्हें कोई अधिकार नहीं है, एक बेटी से बाप कहलवाने का, किसी मां से बेटा कहलवाने का, किसी बहन से भाई कहलवाने का या अपनी बीवी से पति कहलवाने का।
यकीन मानना, ऐसे-ऐसे किस्से देखे और सुने हैं कि सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। लड़के, लड़की को प्यार का झांसा देते हैं, फिर शारीरिक संबंध बनाने को मजबूर करते हैं, फिर उसका वीडियो भी बना लेते हैं या कोई आपत्तिजनक फोटो ले लेते हैं, फिर उसी फोटो या वीडियो को अपने दोस्तों को दिखाते हैं, उसे WhatsApp या Facebook पर शेयर करते हैं। लड़की को ब्लैकमेल किया जाता है और उसी आपत्तिजनक वीडियो या फोटो वायरल करने की धमकी के नाम पर उसका अनेक बार रेप किया जाता है। नि:संदेह लड़की की मर्ज़ी के खिलाफ, ब्लैकमेल के मकसद से बनाया गया शारीरिक संबंध रेप ही होता है। उन्हें लगता है कि यह उन की मर्दानगी है, उन्होंने कोई नेक काम किया है।
हद तो तब हो जाती है, कुछ % नमूने ऐसे भी होते हैं कि लड़की को प्यार का प्रस्ताव रखते हैं, अगर लड़की मना कर देती है तो भी उसका बदला उसे झूठा बदनाम करके लेते हैं या फिर लड़की दोस्ती कर ले और लड़का गलत मकसद रखे उसके प्रति और दोस्ती टूट जाए तो वह इसका बदला लेने के लिए या तो लड़की का नंबर बाटेंगे लड़कों में, या उसे बदनाम करेंगे जगह-जगह पर।
यह बात मुझे आज तक समझ नहीं आई कि सेक्सुअल रिलेशन बनाने से बदनामी लड़की की ही क्यों होती है, लड़के की क्यों नहीं? जाहिर तौर पर या तो बदनामी दोनों की होनी चाहिए या फिर किसी की भी नहीं। इसमें कोई रॉकेट साइंस नहीं है क्योंकि अगर यह गलत है तो फिर दोनों के लिए ही गलत है और सही है तो फिर दोनों के लिए ही सही है।
बाकि, जितनी मुझे कानून की समझ है, उस हिसाब से एक वयस्क लड़का और लड़की जिनकी उम्र 18 वर्ष से अधिक हो अपनी मर्जी से शारीरिक संबंध बना सकते हैं। यह गैर कानूनी नहीं है, यह सबका व्यक्तिगत और बहुत ही निजी फैसला होता है। यकीनन हमारे परिवार यह सब स्वीकृत नहीं करते और ना ही हमारा समाज। फिर भी, स्वतंत्र भारत में सबको अपनी जिंदगी लोकतांत्रिक तरीके से जीने का अधिकार है।
तुम, मैं या समाज के ठेकेदार, कोई नहीं होते हैं यह डिसाइड करने वाले कि किसी को अपनी जिंदगी कैसे जीनी है। ऐसे-ऐसे दरिंदे भरे पड़े हैं, हमारे चारों तरफ़, जिनका काम ही यही होता है, आसपास की लड़कियों पर नजर रखना कि वह कहां गई हैं, किसके साथ गई हैं और हद तो तब हो जाती है जब वो वहशी दरिंदे लड़की को बदनाम करने के मकसद से सभी हदें पार कर देते हैं। मतलब, ऐसे लोग गांव, गली, मोहल्ले में, ताश खेलते हुए, शराब पीते हुए या महफिल में बैठे हुए, किसी भी लड़की का चरित्र प्रमाण-पत्र बना कर दे सकते हैं, ‘फलां की लड़की ऐसी है या फलां की लड़की वैसी है।’
वाह रे! तुम तो मर्द हो, इसका मतलब? अब कौन समझाए इनको कि असली मर्दानगी लड़कियों को सुरक्षित माहौल देने में होती है, उनकी इज़्ज़त करने में होती है, उन्हें लड़कों के बराबर अधिकार देने में होती है, उन्हें खुद के साथ कंधे से कंधा लगाकर चलने में सक्षम बनाने में होती है।
अब सवाल यह उठता है कि ज्ञान तो तुमने बहुत पेल दिया, तो अब उपाय भी बता दो कि क्या किया जाना चाहिए कि लड़के लड़कियां समान अधिकारों के साथ जिएं।
पहली बात, लड़कियों को केवल एक सेक्स ऑब्जेक्ट के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। वे भी इंसान ही हैं हमारी तरह और यकीनन पुरुषों से ज़्यादा समझदार होती हैं। ज़ाहिर सी बात है, वह भगवान द्वारा बनाई गई सबसे खूबसूरत संरचनाओं में से एक हैं।
दूसरी बात, माता-पिता या बड़े बहन-भाई को चाहिए कि वह अपने बच्चों या छोटे भाई-बहनों को, थोड़ा सदाचार सिखाएं, सही संस्कार दें ताकि उन्हें सही गलत का पता लग सके l
तीसरा, शिक्षा संस्थानों को, को-एज्युकेशन को बढ़ावा देना चाहिए। अब मैं और मेरे जैसे अनेक भाई ऐसी शिक्षा संस्थानों में पढ़े हैं जहां लड़के-लड़कियों को अलग-अलग बैठाया जाता है। एक तरफ क्लास में लड़के बैठते हैं तो दूसरी तरफ लड़कियां, और यकीनन कई जगह तो लड़के-लड़कियों को आपस में बोलने या साथ बैठे देखे जाने पर भी रोका-टोकी की जाती है l को-एजुकेशन को बढ़ावा देना चाहिए, ताकि लड़के-लड़कियों को आपस में अचंभा ना लगे, वे एक दुसरे को जान सकें और उन्हें लगे कि वह एक ही तरह के इंसान हैं l
चौथा, बुरी मानसिकता, या लड़कियों के लिए बुरी नियत रखने वाले लड़के एवं पुरुषों को यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि उनके घर में भी मां, उनकी बहन या बेटी हैं जो कि स्त्री ही हैं। जैसा अन्य औरतों का जिस्म होता है बिल्कुल उसी तरह का जिस्म उनका भी है, क्या वो उनके साथ भी इसी तरह का व्यवहार सहन कर लेंगे ? अगर नहीं, तो उन्हें दूसरों की मां, बहन और बेटियों के साथ भी दुर्व्यवहार नहीं करना चाहिए।
पांचवा, यह बात आज के समाज को भी समझनी चाहिए और पुरानी सोच वाले माता-पिता को भी कि आज की 21 वीं सदी में लड़के-लड़कियां सब बराबर हैं। अगर उनको एक बेहतरीन शिक्षा दोगे तो उसके समांतर यह भी होगा कि इंटरनेट के जमाने में उनकी आपस में चैटिंग भी होगी, संपर्क भी होगा, लड़के-लड़की मॉडर्न कपड़े भी पहनेंगे। और क्यों ना पहने? सुंदर दिखना भला किसको अच्छा नहीं लगता? उनके दोस्त भी होंगे, गर्लफ्रेंड -बॉयफ्रेंड भी होंगे, उनके आपस में फ्रेंड-सर्कल भी होंगें। यकीनन, इन सब में कुछ गलत भी नहीं है। मुझे खुद को पोस्ट-ग्रेजुएट होते-होते अनुभव हो गया है कि यह सबका एक निजी विषय है।
छठा, लड़कियों और महिलाओं को अपने अधिकारों का ज्ञान होना चाहिए l कानून में उनकी सुरक्षा और उनके हित को लेकर बहुत से नियम और कानून बनाए गए हैं जिनका उपयोग वह जरूरत पड़ने पर कर सकती हैं।
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