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कई बार ज़िक्र हुआ, कई बार बहस हुई, ढेरों लेख लिखे गए, लेकिन हर घर में कभी ना कभी ये ज़रूर सुनाई दिया है, "ये कुछ नहीं करती!"
कई बार ज़िक्र हुआ, कई बार बहस हुई, ढेरों लेख लिखे गए, लेकिन हर घर में कभी ना कभी ये ज़रूर सुनाई दिया है, “ये कुछ नहीं करती!”
मॉल में जाने पर कभी-कभी हॉलिडे कूपन मिलते हैं, और ऐसे ही एक कूपन को जीता था अनामिका ने। दो दिन बाद, पति के साथ उस कूपन को लेने पहूँची, तो वहाँ मौजुद सेल्समैन ने नाम, उम्र, काम की जानकारी भरनी शुरू की, और उसने बतानी।
काम के बारे में पूछने पर, उसके बोलने से पहले ही उसके पति ने कहा, “ये कुछ नहीं करती, हॉउस वाइफ हैं।”
बात सही थी, फॉर्म में भर दी गई किन्तु फॉर्म पर चलने वाली कलम उसके दिल पर तलवार सी चल रही थी।
‘कुछ नहीं करती’, ये सोच-सोच कर उसे जाने कैसे-कैसे ख्याल आ रहे थे। गुस्सा, खीज और रह-रह कर आँख भर जाती।
घर पहूँच कर काम निपटाते हुए उसे साढ़े दस बज गए, लेकिन उलझन खत्म नहीं हुई और उसने टीवी देखते हुए अपने पति से पूछ लिया, “आपने ऐसा क्यों कहा कि मैं कुछ नहीं करती?”
“तो? क्या कहता?”
“अब तुम महिला मुक्ति वाला भाषण ना देना! अरे घर में रहती हो तो कह दिया कुछ नहीं करती।”
ये कहते हुए वो सोने चल दिये और अनामिका कल के कामों की फेहरिस्त बनाती रह गई।
ऐसा बहुत सी महिलाओं ने महसूस किया होगा शायद। किसी ने बोला होगा और किसी ने नज़रंदाज़ कर दिया होगा। कई बार ज़िक्र हुआ, बहस हुई, ढेरों लेख लिखे गए, लेकिन हर घर में कभी ना कभी ये ज़रूर सुनाई दिया है, “ये कुछ नहीं करती!”
देश की आधी आबादी में से ज्यादातर पढ़ी-लिखी महिलायें घर संभालती हैं। हाल ही में हुए एक सर्वे के अनुसार 131 देशों में से भारत 120वे पायदान पर आता है। ये सर्वे कामकाजी महिलाओं की गिनती का था।
तो अमुमन भारत में रहने वाली ज्यादातर महिलायें “कुछ नहीं करती”, और ये तीन शब्द उनके आत्मविश्वास को झकझोरने के लिये काफी हैं। सालों साल ये सुनते हुए, और घर के महत्वपूर्ण फैसलों के लिये मात्र सलाहकार (कभी-कभी वो भी नहीं ) की भूमिका निभाते हुए, वो भी भूल जाती हैं कि वो क्या करती हैं।
अगर एक घर सँभालने वाली महिला का दिन देखें तो अक्सर सुबह 4 से 6 के बीच शुरू होता है। बच्चों का स्कूल और पति का ऑफिस, इन दोनों की तैयारी अक्सर एक दिन पहले ही शुरू हो जाती है। इन दोनों की दिनचर्या, घर संभालने वाली के हाथों में होती है, या यूँ कहें, कि अगर ये सुबह ना कराएं तो सुबह ना हो।
इनके जाने के बाद तो कोई काम ही नहीं रहता। बस घर की साफ-सफाई, जिसे बिखेरने का काम दो या तीन लोगों ने किया है। पूरे घर के कपड़े, धुलाई और प्रेस करना, और साथ ही डस्टिंग बस! बड़े शहर की बात ना करें तो आज भी अधिकतर घर में, ये काम घर की स्त्रियाँ ही करती हैं।
सबके पसंद का खाना-नाश्ता, बस दिन में तीन से चार बार! और बच्चों की पढ़ाई का ध्यान और बड़े बजुर्गों की सेहत का ख्याल, आने-जाने वाले दोस्तों की ख़ातिरदारी और समय-समय पर रिश्तेदारों की खोज-खबर लेना। स्कूल के दिये प्रोजेक्ट करने से ले कर त्योहार पर सबके लिये तोहफे खरीदने तक, और मेहमानों के चाय-नाश्ते से ले कर, घर आने वाले रिशतेदारों को शहर घुमाने का काम, सब इस “कुछ ना करने” वालों के कंधे पर होता है।
बाहर के काम तो बस, राशन-सब्जी लाने, बिजली के बिल भरने, स्कूल की फ़ीस और ज़रूरत पड़ने पर बैंक के काम। बस और क्या? अब इतने से काम, कुछ नहीं में ही तो आते हैं।
वो बात अलग है की साफ-सफाई के लिये, 3-5 हज़ार, कुछ भी लग सकते हैं, आपके शहर के अनुसार। खाना बनाने वाली भी असानी से मिलती है, चार लोगों का 4-6 हजार, बस ज़्यादा मीन-मेख न निकालियेगा, वरना उसके पास दूसरे घर हैं। बच्चों को पढ़ाने तो घर तक आयेंगे, पर उन्हें दुलार नहीं करेंगे और उनके भविष्य के सपने नहीं देखेंगे। और, बाकि छोटे-मोटे काम तो हो ही जाते हैं।
तो बस इतना सा काम, कामों मे नहीं आता। वो भी तब, जब मुफ्त में काम हो रहा है, क्योंकि भावना की कोई कीमत तो होती नहीं। अब, कुल मिला कर बात तो सही हुई कि “वो कुछ नहीं करती!”
अब ज़रा दो पल के लिये सोचिये कि बचपन से आज तक, ये कुछ ना करने वाली, अगर ना होती तो क्या होता? हम सोच भी नहीं सकते, क्योंकि हर पल ये साथ रही हमारे, हमारे जीवन पथ को दिशा देती हुई बिना किसी आभार के और नाम के।
एक अन्य सर्वे के अनुसार, भारत महिला ख़ुशी के मापदंड में भी काफी पीछे है। इसका कारण? शायद इनका “कुछ ना करना” है। एक औरत, जब परिवार के इर्द-गिर्द अपनी ज़िन्दगी बना लेती है, तो ये तीन शब्द उसके अस्तित्व पर ही प्रश्न उठा देते हैं और ज़ाहिर सी बात है, ये उसे ख़ुशी तो नहीं देंगे।
किसी भी घर, समाज और देश की प्रगती में, इन “कुछ न करने” वाले हाथों का बड़ा योगदान है। हर सफल आदमी और औरत के पीछे, एक “कुछ नहीं करने” वाली ज़रूर होती है जिसका सम्मान करना और अभार मानना बेहद ज़रुरी है, अपनी और उसकी ख़ुशी के लिये।
आइये, अपने आसपास हर शक़्स को इस बात का एहसास कराएं, और “कुछ ना करने” वाले हाथों को दो पल के लिये थाम कर शुक्रिया कहें।
मूलचित्र : Pixabay
Founder KalaManthan "An Art Platform" An Equalist. Proud woman. Love to dwell upon the layers within one statement. Poetess || Writer || Entrepreneur read more...
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