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सीख यही है मेरे जीवन की, सीखने के लिए कभी खुद को रोकना नहीं

जब मानव समाज के नियमों का ताना-बाना बुन रहा था, तो बुद्धिमत्ता वाले काम पुरुष के हिस्से में रखे, और शरीरिक क्षमता वाले काम स्त्रियों के हवाले कर दिये। 

जब मानव समाज के नियमों का ताना-बाना बुन रहा था, तो बुद्धिमत्ता वाले काम पुरुष के हिस्से में रखे, और शरीरिक क्षमता वाले काम स्त्रियों के हवाले कर दिये। 

औरतों की एक सबसे बड़ी दुविधा ये है कि वो दूसरों की जिंदगी अच्छी बनाने के लिए उनकी जिंदगी को अपना मान बैठती हैं। फिर एक दिन जब हर कोई अपनी जिंदगी में व्यस्त हो जाता है, तो वो एकदम से खाली और अकेली हो जाती हैं, और तब तक, उनकी खुद की, आधे से ज्यादा जिंदगी निकल गयी होती है। लेकिन, जब जागो तभी सवेरा वाली कहावत पे यकीन किया जाये, तो शायद हर वो औरत अपने सपने को फिर से सच कर सकती है जो सपने देखना ही भूल गयी हो।

आश्चर्य की बात ये है कि प्रकृति ने जब जीवन के लिए नियम बनाए तो वो सबके लिए एक ही जैसे थे। फिर, मानव ने सामाजिक ताने-बाने की नींव रखी और नियमों में बदलाव आने लगा। हम अगर संसार के किसी भी प्राणी को देखें तो हम पाएंगे कि वो कभी भी अपनी जीविका के लिए दूसरों पे आश्रित नहीं होता। हाँ! परवरिश के लिए बच्चे कहाँ, माँ और कहीं पिता पर आश्रित रहते हैं। लेकिन मानव जाति में पुरुष हमेशा से स्त्री पे आश्रित रहा है।

जब मानव समाज के नियमों का ताना-बाना बुन रहा था तो उसने सारे बुद्धिमत्ता वाले काम पुरुष के हिस्से में रखे और सारे शरीरिक क्षमता वाले काम स्त्रियों के हवाले कर दिये। जबकि उसका खुद का मानना है कि स्त्री की शारीरिक क्षमता पुरुषों की तुलना में कम होती है। शायद इसलिए क्योंकि कहीं न कहीं उसे डर था अपने प्रभुत्व के खोने का और खुद के यूँ ही बर्बाद होने का। और दुनिया के इस कटु सत्य से तो हर कोई वाकिफ़ है कि जब शासन पे राज करने की बात आती है तो राज वही करता है जिसकी बुद्धिमत्ता ज्यादा है ना कि शारीरिक क्षमता।

लेकिन इस का ये मतलब तो नहीं की कुछ बदल नहीं सकता या कुछ बदला नहीं है। कहते हैं जहाँ चाह है वहाँ राह है और इस बात को ही मैंने नीचे लिखी कविता के माध्यम से बताने की कोशिश की है-

सीख यही है मेरे जीवन की कि सीखने के लिए कभी खुद को रोकना नहीं,
सपनें जो मन में लिये बैठी हो ना तुम, उसको कभी भी धूल में झोंकना नहीं।
दुनिया का क्या है आज तुम्हारी है, कल किसी और की प्यारी होगी,
आज तुम पर वारी है, कल किसी और पर बलिहारी होगी।
इस दुनिया के लिए कभी खुद का मन मसोसना नहीं,
सीख यही है मेरे जीवन की, कि सीखने के लिए कभी खुद को रोकना नहीं।
चलो वादा करो खुद से, जिस प्यार को तुमने बिखेरा है, अपने घर के कोने-कोने पर,
उस प्यार में खुद भी भीगोगी, चाहे मौसम कैसा भी हो, जीवन के सफर सलोने पर।
और जो भँवरों में फँसना, तो घबरा कर नदिया में खुद को डुबोना नहीं,
सीख यही है मेरे जीवन की, कि सीखने के लिए कभी खुद को रोकना नहीं।

मूलचित्र : Pixabay

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Sunidhi Dixit

Sunidhi Dixit is a Certified Phonics Trainer,Freelance Writer,Storyteller & Voice Over Artist. read more...

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