कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं? जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!
परवरिश ने कभी जिसके ख़्वाब नहीं समझे, समाज ने कभी जिसकी काबिलियत नहीं समझी, वो सज़ा भुगतती रही लड़की होने की।
‘तेरे भाई के लिए लाए हैं छोटा है न वो’, परवरिश ने कभी जिसके ख़्वाब नहीं समझे।
छह साल या आठ महीना, इक्कीस या साठ, हैवानियत ने कभी जिसकी उम्र न देखी।
गोरी, लम्बी, घरेलू, तो कभी, मॉर्डन, शिक्षित, कामकाजी, रिश्तों ने कभी जिसके गुण नहीं जांचे।
जेवर, कपड़े, सौगातें, फर्नीचर, उपहार, शगुन, तराज़ू ने कभी जिसका स्नेह नहीं तोला।
चाय बना ली? खाने में क्या है? मेरी शर्ट कहाँ है? सब्ज़ी ले आई? ससुराल ने कभी जिसके शौक नहीं पूछे।
आँखों की लाली, बदन के निशान वापिस ना जाने की ज़िद मायके ने जिसे ब्याह उसके हालात नहीं देखे।
नौकरी छोड़ क्यों नहीं देती? तुम्हे क्या ज़रूरत है? बच्चों को किसके पास छोड़ती हो? समाज ने कभी जिसकी काबिलियत नहीं समझी।
आप शादीशुदा हैं? बच्चे हैं? आप कर पाओगी? साक्षात्कार ने कभी जिसकी प्रतिभा नहीं पूछी।
वो सज़ा भुगतती रही लड़की होने की उसने कभी अपनी गलती नहीं पूछी।
Poet | Writer | Coach - English Grammar & Test preparation प्यार मुझे, मुझसे ही हो जाता है बार-बार अब बात मेरे जैसी किसी में है कहाँ| - प्रिय (डॉली शर्मा) read more...
Please enter your email address