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जब भी मेरा दिल धड़का, जब भी मैं कमज़ोर पड़ी, तुमने अपने नन्हे-नन्हे हाथ-पाँव से मुझे एहसास दिलाया, 'माँ, मैं तुम्हारे पास आऊँगा। माँ मैं ठीक हूँ!'
जब भी मेरा दिल धड़का, जब भी मैं कमज़ोर पड़ी, तुमने अपने नन्हे-नन्हे हाथ-पाँव से मुझे एहसास दिलाया, ‘माँ, मैं तुम्हारे पास आऊँगा। माँ मैं ठीक हूँ!’
कुछ अनुभव ऐसे होते है और भावनाएं उनसे ऐसे बँध जाती हैं कि किसी को बताना या बाँटना बहुत मुश्किल होता है।
कुछ ऐसा ही हुआ था जब मैं माँ बनी। खुशी, ग़म, चिंता, डर, प्रेम, न जाने कितने भाव आए मेरे अजन्मे बच्चे के प्रति। दो गुलाबी रेखाओं को देखने के लिए हमने पूरे तीन साल, दो महीने और पाँच दिन यानी कि एक हज़ार एक सौ साठ दिन या 27,840 घंटे का लंबा इंतजार किया। उस ख़ास दिन जब मैंने ये दो रेखाएं तुम्हारे पिता को दिखाईं थीं, तुम्हारे पिता की आँखों में तुम्हारे लिए प्यार, और मेरे लिए ख़ास परवाह देखी थी। दो महीने कैसे देखते-देखते चले गए। दादा-दादी, नाना-नानी, बुआ, चाचा, मामा सब तुमसे मिलने को बेकरार थे।
जैसे पूर्णिमा के चाँद को ग्रहण ढककर, आसमान को काली, अंधेरी रात में बदल देता है ठीक वैसी ही काली रात मेरे जीवन में भी आई जब लगा कि काल तुम्हें मुझसे छीन ले जाएगा। वो रात मेरे जीवन की सबसे डरावनी काली रात थी। मैं अपने शरीर को सिकोड़े सिर्फ भगवान से प्रार्थना करती रही। तुम्हारे पिता डॉक्टरों के पास तुम्हारे जीवन के लिए संजीवनी ढूंढते फिर रहे थे।
दो दिन तक मृत्युंजय महामंत्र का जाप करती, ढेर सारी दवाइयों में तुम्हारे जीवन के क्षण बढ़ाती, इंजेक्शन्स के दर्द सहती, सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी सलामती चाहती रही। दो दिनों के बाद अल्ट्रासाउंड करवाने का दिन था। उस रिपोर्ट से तय होना था कि तुम हमारे जीवन में रहोगे या नहीं। धड़कते दिल से तुम्हारे पिता और मैं एक दूसरे को समझाते, ढांढस बंधाते उस रूम तक गए।
अविश्वसनीय रूप से तुम्हारी सांसों के स्वर और स्पंदन के सुर मेरे कानों में पड़े। ये दुनिया का सबसे सुंदर संगीत है जो मैंने अब तक सुना है। उस स्पंदन की लय को मैं आज तक भूल नहीं सकती। सांसों की झंकार, जो ये विश्वास दिला रही थी, ‘माँ, मैं हूँ तुम्हारा फाइटर! अब तुम्हें भी लड़ना है आने वाली चुनौतियों से!’ तुम्हारे पिता और मैं बहुत देर तक एक दूसरे से लिपटे रहे, महसूस करते रहे तुम्हारी सांसों को तुम्हारे धड़कते हुए नन्हें से दिल को।
अब हमें और भी ध्यान रखना था तुम्हारा। पूरे नौ महीने लेटे रहने की सज़ा मिली मुझे। साथ ही तुम्हारी चिंता भी। लेकिन जब भी मेरा दिल धड़का, जब भी मैं कमज़ोर पड़ी, तुमने अपने नन्हे-नन्हे हाथ-पांव से मुझे एहसास दिलाया, ‘माँ मैं तुम्हारे पास आऊंगा। माँ मैं ठीक हूँ!’
तुम्हें मुझसे मिलने की इतनी जल्दी थी कि आठवें महीने में ही तुम मेरी गोद में आ गए। तुम्हारी पलकें भी नहीं बनी थीं। तुम्हारे नाखून भी अविकसित थे। लेकिन तुम सचमुच फाइटर हो। पूरी जिजीविषा के साथ तुमने हर एक बाधा को दूर किया।
तुम्हारे होने से मेरा वजूद है। तुमने न सिर्फ मुझे माँ बनाया अपितु मुझे मुश्किलों से लड़ना सिखाया, तभी कहती हूँ मेरे बेटे तुमने मुझे जन्म दिया।
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