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ये दहेज प्रथा कब तक चलेगी?

हम नवचेतन युग के नवयुवक हैं मां, ये दहेज प्रथा कब तक चलेगी? इस पर अंकुश लगाने के लिए हमें ही कदम बढ़ाना होगा।

हम नवचेतन युग के नवयुवक हैं मां, ये दहेज प्रथा कब तक चलेगी? इस पर अंकुश लगाने के लिए हमें ही कदम बढ़ाना होगा।

पात्रों के नाम-

लड़के की दादी का नाम-जानकी देवी

लड़के की माता का नाम-सुशिला देवी

लड़के पिता का नाम-रामनारायण

लड़के का नाम नवकिशोर

लड़की की माता का नाम-प्रभा देवी

लड़की के पिता का नाम-परशुराम लड़की की सहेली का नाम-शिखा

लड़की का नाम-नीलम

नाटक की भूमिका यूं है कि लड़के के माता-पिता गांव में पले-बड़े हैं तो शहर में आकर भी उनकी सोच ज्‍यों की त्‍यों है, और साथ में दादी भी, पर हां लड़का जो है, शहर में ही पला-बड़ा और एक कंपनी में मैनेजर है।

लड़की के माता-पिता नौकरी पेशा हैं और लड़की  बैंक में नौकरी करती है और उसकी सहेली बचपन से ही उसके साथ है और  प्राईवेट कॉलेज में प्रोफेसर है।

नाटक का मुख्‍य रूप यह है कि लड़के वाले लड़की वालों के यहां लड़की देखने जाते हैं, तब उनके बीच जो संवाद होता है, वो इस नाटक के जरिये प्रस्तुत है।

नवकिशोर के यहां का दृश्‍य 

जानकी देवी: अरे सुशिला कहॉं चली गयी ? मेरे न, पांव बहुत दुख रहें हैं, जरा तेल तो लगा दे।

सुशिला देवी: आयी माँजी, गरम करके लाती हूं तेल, अच्‍छा रहेगा।

इतने में रामनारायण जी का प्रवेश होता है, जो नीलम के पिता से बात करके आते हैं और नीलम को देखने जाने की तिथि निश्चित करके आते हैं।

रामनारायण: अरी भाग्‍यवान कहां हो, एक अच्‍छी खबर देनी है, जल्‍दी आओ।

सुशिला देवी: हांजी आ गए आप? कौन सी अच्‍छी खबर है जी जल्‍दी बताइए न।

रामनारायण: मैं प्रभा देवी एवं परशुरामजी से उनकी बेटी नीलम से अपने नवकिशोर के विवाह की बात करके आया हूं, भाग्‍यवान। एक बार माताजी, तुम और नवकिशोर, नीलम को देखे लेते, अगर पसंद आ गई तो बात आगे बढ़ाएंगे। परिवार तो बहुत अच्‍छा है। नीलम बैंक में नौकरी करती है, सो, नवकिशोर का जीवन भी संवर जाएगा।

जानकी देवी: क्‍या हुआ बेटा? बात पक्‍की हुई या नहीं?

रामनारायण: अरे अम्‍मा, अभी कहां, अभी तो अपन सभी रविवार को नीलम को देखने जाएंगे। उस दिन उसे व नवकिशोर को छुट्टी जो रहती है।

जानकी देवी: अरे बेटा बात पक्‍की ही कर आता न। हमारे ज़माने में तो लड़का-लड़की का देखने-दिखाने का रिवाज ही नहीं था, बेटा। बस, बुजुर्गों की अनुमति से शादी कर ली जाती थी।

रामनारायण: अरे अम्‍मा अब न ज़माना बदल गया है, और सही भी है, अपना नवकिशोर नीलम को देख भी लेगा और इसी बहाने देने-लेने की बात भी हो जाएगी न अम्‍मा।

जानकी देवी: तो फिर ठीक है बेटा। सुशिला फलदान की सारी तैयारी कर लेना।

इतने में नवकिशोर का प्रवेश होता है, “मां कहां हो सब लोग बहुत ज़ोरों की भूख लगी है।”

सुशिला देवी: हां बेटा। आ गया तू काम से? हाथ-मुँह धो ले बेटा। मैं खाना परोसती हूं। तेरी पसंद के भरवां बेंगन बनाएं हैं।

नवकिशोर: हाँ माँ, जल्‍दी परोसो। दादीजी, पिताजी को भी बुला लो न माँ, अपन सभी साथ में भोजन करते हैं।

इस अंतराल में सभी के साथ भोजन करते हुए नवकिशोर को पिताजी द्वारा नीलम को देखने के संबंध में सारी बातें बताई जाती हैं, पर लेन-देन का जिक्र नहीं किया जाता है। तो फिर रविवार को नीलम के घर जाना निश्चित हो जाता है।

नीलम के यहां का दृश्‍य 

परशुराम: बिटिया शिखा, तैयार हो गई क्‍या नीलम? नवकिशोर का परिवार आता ही होगा, हमारे यहां।

शिखा: जी अंकल, नीलम भी तैयार है और मैंने प्रभा चाची के साथ मिलकर नाश्‍ता भी बना लिया है।

परशुराम: अच्‍छा किया बेटा। अजी सुनती हो?

प्रभा देवी: जी कहिए, मैं तैयारी करके न अभी आयी। देखो जी हमारी बिटिया रानी साड़ी में कितनी सुंदर दिख रही है, है न शिखा बेटी?

शिखा: जी हां चाची जी। मेरी सखी है, मेरे साथ ही रहती है, तो लगेगी ही खूबसूरत।

नीलम: ये तुम सब मेरे बारे में क्‍या कह रहे हो? माताजी और पिताजी आपने उनको अपनी आर्थिक स्थिति के बारे में सब बता दिया है, तो अच्‍छी बात होगी। बाद में किसी को धोखा ना हो।

परशुराम: अरे नहीं बेटी। ऐसा कुछ भी नहीं होगा। मैंने उनको सब बता दिया है। वे बहुत अच्‍छे घराने से हैं।

इतने में नवकिशोर के परिवार वाले आते हैं। परशुरामजी, शिखा और प्रभा देवी द्वारा उनका स्‍वागत किया जाता है।

जानकी देवी: घर तो बहुत अच्‍छा है, आपका।

परशुराम: जी हाँ माताजी। पसंद आया आपको, इससे बड़ी बात और क्‍या हो सकती है। बस, हमारी बिटिया को भी पसंद कर लीजिए, फिर चट मंगनी पट ब्‍याह रचाएंगे।

रामनारायण: शिखा बेटी तुम नीलम के साथ ही हो?

शिखा: जी हां चाचाजी, मैं बचपन की सहेली हूं नीलम की।

प्रभा देवी: चलो शिखा बेटी, नाश्‍ता लगाते हैं और नीलम बेटी को लेकर आते हैं।

नीलम अपनी सखी शिखा के साथ नाश्‍ता लेकर आती है और सभी को प्रणाम करती है।

जानकी देवी रामनारायण और सुशिला देवी को पास बुलाती हैं और तीनों की लेन-देन के संबंध में चर्चा होती है।

नवकिशोर: नीलम जी से मैं आपसे कुछ अकेले में बात करना चाहता हूँ।

नीलम अपने माता-पिता की आज्ञा से नवकिशोर से बात करने जाती है और अपनी आर्थिक स्थिति से अवगत करा देती है। दोनों आपस में बोलते हैं कि हमारे बीच केवल प्‍यार ही रहेगा और सभी संवाद हम स्‍पष्‍ट रूप से करेंगे तो हम खुशहाल जीवन व्‍यतीत कर पाएंगे। दोनों की रज़ामंदी के बाद वे वापस आते हैं और शिखा को भी बताते हैं।

रामनारायण नवकिशोर को बुलाते हैं। नवकिशोर अपनी दादी और माता-पिता को बताता है कि नीलम उसे पसंद है और वह उससे शादी करना चाहता है।

नवकिशोर: अच्‍छा घर होने से ज़्यादा पिताजी नीलम पढ़ी-लिखी है, नौकरी भी करती है, और ये लोग भी हमारे जैसे मध्‍यम परिवार के हैं तो हमारी और इनकी खूब जमेगी भी और निभेगी भी।

जानकी देवी: अरे नवकिशोर, रामनारायण को लेने-देने की बाते कर लेने दे बेटा, तभी तो सुशिला फलदान करेगी।

नवकिशोर: आप सभी लोग सुन लें अच्‍छे से, मुझे और नीलम को अपना नया संसार बसाना है, हमारी रज़ामंदी भी हो चुकी है। मां शुभ-मुहुर्त निकला जा रहा है, फलदान कर बात पक्‍की कर दे माँ। तू भी आई थी गांव से, नानाजी ने भी दहेज दिया था। तू उस प्रथा से सहमत है माँ, पर हम नवचेतन युग के नवयुवक हैं मां, ये दहेज प्रथा कब तक चलेगी? इस पर अंकुश लगाने के लिए हमें ही कदम बढ़ाना होगा। आईए सभी, इस नवीन प्रकाश रूपी दीपक को प्रकाशित करते हुए हम फलदान करें।

मूलचित्र : Pixabay 

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