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अब हम छोटी लड़कियों जितने अल्हड़ तो नहीं रह गए हैं, पर इतने उम्रदराज़ भी नहीं हुए हैं कि ज़िन्दगी से बेज़ार हो जाएँ।
बीते कल में देखती हूँ तो सोचती हूँ, पिछले कुछेक सालों में बहुत कुछ बदल गया है, ज़िंदगी कहाँ से कहाँ आ गई मेरी। बहुत कुछ अच्छा और यादगार, और कुछ न याद रखने लायक भी घटा, पर क्या इन सालों में मैंने कुछ सीखा है, अच्छे और बुरे दोनों ही समय से?
इन सालों में उम्र तो अपनी गति से बढ़ती रही है और वक़्त के साथ-साथ थोड़ी ज़्यादा समझदार और ज़िम्मेदार भी हो ही गई हूँ। पहले की अपेक्षाकृत खुद का भी ध्यान रखने लगी हूँ। ये सोच कर भी खुश हूँ कि स्वस्थ हूँ और शुक्रगुज़ार हूँ कि कइयों से कुछ ज़्यादा ही हैं मेरे पास खुशियों की वजह।
कुछ चीज़ें जो मैंने अब जानी हैं, सीखी हैं, आप सभी के साथ बांटना चाहती हूँ।
अपने शरीर से शर्मसार मत होइए: ये मेरा खुद का अनुभव है। बेटी के होने के बाद, जब मैं थोड़ी मोटी हो गई और मेरा वजन बढ़ गया था, मैं तब भी स्वस्थ ही थी, पर पड़ोसी और रिश्तेदारों ने कहना शुरू किया, ‘जिम जाओ भई! वजन कम करो! इस उम्र में इतना वजन! आगे क्या होगा!’ उफ़! मेरी इतनी चिंता!
मैंने अपना दिमाग न लगाकर जिम ज्वाइन कर लिया, क्रैश डाइट के साथ। नतीजा, पहले एकदम स्वस्थ थी, और जिम ज्वाइन करने के बाद, दो महीने के अंदर ही इतनी तबियत बिगड़ी कि लम्बे समय के लिए दवाइयां चली। क्या फायदा हुआ? सच, हेल्थ वाला चैप्टर मैं फिर से खोल पाती, तो ज़रूर वापस जाकर जिम का चैप्टर ही ज़िंदगी की किताब से फाड़ के फेंक देती और जैसी स्वस्थ थी वैसी फिर हो जाती।
पर ऐसा कोई और न करे इसलिए ये अनुभव बांटा मैंने। चाहे मोटी हो, लम्बी हो, काली हो, जैसी भी हो, अगर आईने में खुद को देख कर अच्छा फील करती हो और एकदम स्वस्थ हो, तो खुद को बदलने की कोशिश न करो, कम से कम दूसरों के लिए तो बिलकुल नहीं। अच्छा स्वास्थ्य बड़ी नियामत है जो सबको नहीं मिलती, सो सहेज कर रखें इसे।
थोड़ा कम आलोचनात्मक बनें: उम्र के जिस पायदान पर हम लोग हैं, वहां से हम हर किसी को सही-गलत के पैमाने से और बड़ी आसानी से आलोचनात्मक रवैये से देख डालते हैं। कभी दुसरे के नज़रिये से नहीं सोचते। जैसे कि, लड़कियां छोटे कपड़े पहनने से छेड़खानी का शिकार होती हैं, या लड़के ने आपकी तरफ देखा भर और आपने सोच लिया छेड़ने के लिए ही आया है। या पड़ोसन जो ज़्यादा बात नहीं करती, कितनी घमंडी है। पर ये कयास लगाने से पहले, कभी ये भी सोचना चाहिए कि हर बात पर आलोचना करना ठीक है क्या? दूसरों का नज़रिया या परिस्थिति जानने का प्रयास भी करें।
बोलने से अधिक सुनना सीखें: हम औरतें वैसे तो बोलने के लिए बदनाम हैं, पर ये भी सच है कि बोल कर और एक दूसरे से बात कर के ही हम अपना तनाव कम कर लेते हैं। पर, कभी-कभी चुप रहकर दूसरे की भी सुनने की कोशिश करें। हर जगह परिस्थिति को ‘फिक्स’ करने की जरूरत नहीं होती है। अपनी सलाह हर समय, खासकर के बिना मांगे, मत दें। कभी-कभी किसी की दुःख-तकलीफ सिर्फ सुन लें तो इतने से भी दुसरे को फर्क पड़ जाता है कि हाँ, कोई मुझे भी शांति से सुनने वाला है, जो बिन वजह सलाह नहीं दे रहा। दुःख तब ज़्यादा होता है जब पूरी बात सुने बिना ही लोग सलाह दे डालते हैं, ‘ऐसा कर लो’, ‘ऐसा कर लेती तो ऐसा न होता।’
चीज़ों और रिश्तों को उलझाएं नहीं: ये रिश्ते बड़े नाजुक होते हैं, इन्हें भी पालना-पोसना पड़ता है, इन्हें बेवजह उलझाएं नहीं। जहाँ बहस ज़रूरी हो जाये, आपके आत्म-सम्मान की बात हो, वहाँ पर ज़रूर बोलें, पर जहाँ इस तरह का इतना बड़ा मुद्दा न हो, वहां बिना कुछ सोचे झुक जाएँ, क्योंकि, रिश्ते तोड़ने बड़े आसान होते हैं पर इन्हें बनाए रखना बड़ा मुश्किल। अगर कोई चिल्ला रहा है और बहुत गुस्से में है, और आप भी चीखने लगेंगे, तो बात सिर्फ बढ़ेगी, कम नहीं होगी। अगर इतनी बड़ी बात नहीं है, तो शांत बैठें, चुप रहें, अगले को चिल्लाने दें, कितनी देर चिल्लायेगा वो ? थक जाये तो एक गिलास पानी दें, उनका गुस्सा ज़रूर ठंडा होगा, कुछ हद तक पानी से और कुछ हद तक आपके शांत स्वभाव से।
स्वयं को व्यस्त रखें, योग करें, टहले, दरकिनार की हुई अपनी हॉबीज़ को फिर से शुरू करें: अगर हमारे बच्चे कुछ हद तक अपने हाथ-पैर के हो चुके हैं और खाली समय है हमारे पास, तो क्यों न छूटे हुए शौक ही पूरे कर लिए जाएँ? तो नाचिये, गाइये, पौधे लगाइये, पढ़िए, लिखिए, कुछ समाज सेवा कर लीजिये। कुछ भी ऐसा जो आपके मन को सुकून और ख़ुशी दे वही करिये।
मैंने ऐसा ही किया है और अब “मैं हैप्पी-हैप्पी हूँ।” टहलें, घूमें, योग करें, दोस्त बनाएं, मन की बातें करें और खुश रहने के नए बहाने रोज़ खोजें, वही बहाने जो आपके हमारे मन के भीतर ही मिलेंगे।
पतिदेव, बच्चों और घरवालों को बताइये, समय-समय पर जताइए कि आप उनको कितना प्यार करती हैं। वो आपके दिल के अंदर नहीं देख सकते पर आप बोलकर और अपने व्यवहार से ज़रूर जता सकती हैं कि वो सभी आपके लिए कितने जरूरी हैं और क्या मायने रखते हैं।
आप अगर कुछ नया शुरू करना चाहें, जिसे आप कब से टालती आ रही हैं, तो देर न करें। अभी भी कोई देर नहीं हो गई है। शौक को ही अपना करियर बना सकते हैं। कहने दो जी जो कहता रहे बस आप तो शुरू कर लो, आपको ज़रूर सफलता मिलेगी। हर जगह और हर व्यक्ति से कुछ नया सीखने को मिले तो हमेशा सीखने को तैयार रहें।
तो ये थीं कुछ बातें जो मैंने सीखीं। कुछ के लिए अफ़सोस है, और कुछ नयी चीज़ें जो मैंने अब करनी शुरू की उनके लिए मुझे ख़ुशी भी बहुत है। मेरा ये मानना है कि हमें गरिमामयी रूप से ये बात स्वीकार कर लेनी चाहिए कि अब हम छोटी लड़कियों के जितने अल्हड़ तो नहीं रह गए हैं, पर दूसरी तरफ इतने उम्रदराज़ भी नहीं हुए हैं कि ज़िंदगी से बेज़ार हो जाएँ। अभी तो बहुत कुछ पड़ा है ज़िंदगी में बुद्धि, चातुर्य और जोश से करने को। तो मज़े-मस्ती और प्यार से ज़िन्दगी जियें ताकि कभी अफ़सोस न करना पड़े कि काश डोरेमॉन की टाइम मशीन हमें मिल जाती और अतीत का बिगड़ा हुआ सब ठीक कर आती।
जो है आज है, कल जैसा कुछ नहीं होता, या तो कल आने वाला होता है, या फिर जा चुका होता है। गया समय और आने वाला कल, दोनों ही हमारे हाथ में नहीं होते। हमारे हाथ में सिर्फ हमारा आज होता है, जिसको बनाना हमारे खुद के ही हाथ में है।
मूलचित्र : Unsplash
Hi, I am Smita Saksena. I am Author of two Books, Blogger, Influencer and a Freelance Content Creator. I love to write Articles, Blogs, Stories, Quotes and Poetry in Hindi and English languages. Initially, it read more...
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