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मिलन होगा, ओ मन थोड़ी धीर धरो

कभी-कभी हम इतने स्वार्थी हो जाते हैं कि सिर्फ अपने ही बारे में सोचने लगते हैं, लेकिन हमें दूसरों के बारे में भी सोचना चाहिए।

कभी-कभी हम इतने स्वार्थी हो जाते हैं कि सिर्फ अपने ही बारे में सोचने लगते हैं, लेकिन हमें दूसरों के बारे में भी सोचना चाहिए।

मोना की पहली होली थी। शादी को अभी छः महीने ही हुए थे। रोहित कलकत्ते में इंजीनियर था और होली के लिए वो भी घर आ रहा था। मोना को रोहित के आने की खबर सुनकर मन में गुदगुदी सी हो रही थी। हो भी ना क्यों, रोहित पूरे तीन महीने बाद जो आ रहा था। बीच में एक बार आया था, लेकिन सिर्फ दो दिन के लिए। इस बार पूरे दस दिन की छुट्टियां लेकर आ रहा था। मोना तरह-तरह के पकवान बनाने की तैयारियों में लग गई, सोचा अभी सारे काम निपटा लेगी तो रोहित के साथ वक्त बिता पाएगी।

मोना बाज़ार से जाकर सारा सामान खरीद लाई। दूसरे दिन दही-बड़े की तैयारी की, मठरी, नमकीन, शक्कर-पारे बनाए। ये सब करते-करते दिन कब निकल गया, उसे पता ही नहीं चला। शाम को खाने की तैयारी में जुट गई, रोहित की पसंदीदा खाना बनाया। आख़िर मिलन की वो घड़ी आ ही गई जिसका उसे इंतजार था। रोहित रात के आठ बजे घर पहुंचा और मां-बाबूजी के साथ बरामदे में ही बैठ गया और बातें होने लगी। इधर मोना का दिल ज़ोरों से धड़क रहा था। वो नये-नये सपने बुनने लगी, एक मन  करता कि जाकर रोहित के गले लग जाए…

इसी सोच में पड़ी हुई थी तभी सासू-माँ की आवाज आई, “बहू, रोहित के लिए पानी ले आ।” इतना सुनते ही, मोना का दिल और ज़ोर से धड़कने लगा, न जाने उसे रोहित के सामने जाने में शर्म आ रही थी। पानी और मीठे की ट्रे मांजी को पकड़ाकर, वापस कमरे में भाग आई। कुछ देर बाद सासू-माँ मोना के कमरे में आई और बोली, “बहू यहाँ क्या कर रही है? अपने ससुर और रोहित के लिए खाना बैठक में ही लगा दे, आज बाप-बेटे साथ में ही खाएँगे।”

इतना सुनते ही मोना के अरमानों पर पानी फिर गया, उसने सोचा था कि आज पति-पत्नी साथ में खाना खाएँगे, खूब बातें करेंगे, साथ में समय बिताएँगे, लेकिन यहां तो उल्टी गंगा बह निकली। ख़ैर, पति की एक झलक देखने के लिए बेचैन मोना ने बैठक में ही दोनों के लिए खाना लगाया और शर्म के मारे रोहित की तरफ देखा भी नहीं। आज सर पर पल्लू रखना उसे अच्छा लग रहा था। इधर रोहित भी मोना से मिलने के लिए अधीर हो रहा था और मोना को प्रेम भरी नज़रों से घूरते जा रहा था, लेकिन दोनों का मिलना शायद इतना आसान नहीं था।

दूर रेडियो पर गाने की आवाज आ रही थी, ‘दुल्हन से तुम्हारा मिलन होगा, ओ मन थोड़ी धीर धरो.. बांहों में……….ओ मन धीर धरो।’

दोनों के खाने के बाद, मोना ने सास को खाना खिलाया और उनके खाने के बाद ख़ुद खाने बैठ गई।  रात के ग्यारह बज गए थे, मोना ने जल्दी-जल्दी रसोई घर साफ किया और कमरे में आकर लेट गई। राह तकते-तकते बारह बज गए। घड़ी की तरफ देखते-देखते ना जाने कब आँख लग गई। तभी पैरों पर कुछ सरसराहट सी महसूस हुई घबराकर उठी तो देखा की रोहित था। उसे देख वह तनिक भी रोमांचित नहीं हुई क्योंकि उसका इंतज़ार करते-करते सारा रोमांस खत्म हो गया था। एक दूसरे की शिकायतों का सिलसिला शुरू हुआ और फिर दोनों अपने मिलन के बीच पैदा हुई परिस्थितियों के बारे में सोचकर हँसे बिना नहीं रह सके।

“तुमने बुरा तो नहीं माना कि मैं तुम्हारे पास देर से आया और न ही तुम्हारे साथ खाना खाया? सोचा तो मैंने था, लेकिन बाबूजी की साथ खाने की इच्छा को नहीं टाल सका, तुम समझ रही हो ना?” रोहित ने कहा।

“मैंने सोचा तो यही था कि मैं भी तुम्हारे साथ खाना खाऊँगी, बहुत सारी बातें करुँगी, लेकिन फिर माँ और बाबूजी के चेहरे पर बेटे के आने की खुशी, एक तसल्ली, गर्व को देखा तो मैं अपने आपको खुशनसीब समझने लगी।”

“रोहित कभी-कभी हम इतने स्वार्थी हो जाते हैं कि सिर्फ अपने ही बारे में सोचने लगते हैं, लेकिन हमें दूसरों के बारे में भी सोचना चाहिए।”

रोहित को मोना की बातें सुनकर तसल्ली ही हुई की उसे इतनी समझदार बीवी मिली है। दूसरे दिन दोनों होली और एक दूसरे के प्यार के रंगों में रंग गए।

मूलचित्र : Pixabay

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Pragati Tripathi

This is Pragati B.Ed qualified and digital marketing certificate holder. A wife, A mom and homemaker. I love to write stories, I am book lover. read more...

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