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जिस कलेजे के टुकड़े को रात-रात भर जाग कर, पाल-पोस कर इतना बड़ा किया, आज उसे माता-पिता से दूर जाने में ज़रा सा भी अफ़सोस नहीं था।
“कार्तिक पता करो ना, मम्मी-पापा आजकल कहाँ है? अब मेरी छुट्टी भी खत्म होने वाली है। तुम्हें तो पता है ना मेरी नौकरी में सिर्फ एक महीने ही मैटरनिटी लीव मिली है, और तुम तो जानते ही हो मेरा नाम प्रमोशन की लिस्ट में है। अगर जॉइन नहीं किया तो ख़त्म मेरा करियर।”
काजल अपने पति को बार-बार ज़ोर देकर बोल रही थी और गोद में एक महीने का शुभ रोये जा रहा था।
कार्तिक चुप था कोई जवाब नहीं दिया उसने। वो तीन साल पहले के समय में चला गया जब काजल से उसकी सगाई तय हुई थी। कितनी ख़ुश थी कार्तिक की माँ बार-बार काजल की बलैया लिए जा रही थी,” कितनी सुंदर है मेरी बहू। इसे नजर ना लगे।” यह कहकर माँ ने अपनी आँख से काजल निकाल कर बहू के माथे पर लगा दिया।
“अरे कार्तिक की माँ तुम तो अभी से बहू पर फ़िदा हो गयी,” कार्तिक के पापा ने छेड़ते हुए कहा।
कार्तिक अपने माता-पिता का इकलौता बेटा था।
सगाई के कुछ हफ्ते बाद कार्तिक और काजल की शादी हो गयी। नई बहू घर आ गयी।
काजल अपने माता-पिता की लाडली थी। अपने मायके में किसी भी काम को हाथ नहीं लगाया, फिर किचन में जाना तो दूर की बात थी। दस दिन हनीमून के बाद अब कार्तिक की भी छुट्टियाँ ख़त्म हो गयी थीं। आज वो शादी के बाद पहली बार ऑफिस जा रहा था। काजल आराम से सोई थी, सुबह के आठ बज गए।
कार्तिक ने काजल को उठाया, “उठो ना काजल, मुझे ऑफिस के लिए देरी हो रही है, जाओ मेरा टिफ़िन बना दो और ब्रेकफास्ट भी।”
नींद में काजल बड़बड़ाई, “पहले कौन बनाता था ?”
“माँ बनाती थीं, पर अब तो तुम आ गयी हो ना।”
“अरे कार्तिक, प्लीज़ सोने दो ना। माँ ही बना देंगी।”
तभी कार्तिक की माँ ने आवाज लगाई, “बेटा टिफ़िन तैयार है जल्दी आजा।”
“अरे माँ आपने क्यों बनाया? काजल आने ही वाली थी,” कार्तिक ने झेंपते हुए कहा। पर माँ ने बेटे का चेहरा पढ़ लिया और कहा, “अरे बेटा सोने दे उसे। कुछ दिन बाद सब उसे ही करना है। अभी उसे क्या पता कौन सी चीज़ कहाँ है, धीरे-धीरे सीख जाएगी।”
ऐसे ही दिन बीत रहे थे। काजल घर का कोई काम नहीं करती बस सारा दिन फोन पर चैटिंग करती या दोस्तों के साथ शॉपिंग करने निकल जाती। उसे घर के काम से कोई मतलब नहीं था। शादी को दो महीने हो गए, काजल ने एक कंपनी में जॉब के लिए अप्लाई कर दिया और जॉब भी लग गयी।
उसने काल लेटर दिखाते हुए कार्तिक से कहा, “कल से मैं भी ऑफ़िस जाऊँगी।”
“काजल मुझे तुम्हारे ऑफ़िस जाने से कोई प्रॉब्लम नहीं है पर मम्मी बेचारी सारा दिन काम करती हैं किचन में। तुम भी तो कुछ किया करो।” तभी काजल मुँह बनाते हुए बोली, “सिर्फ़ खाना ही तो बनाती हैं मम्मी और काम के लिए तो मेड है। पहले भी तो वही करती थीं। तुम्हें ज़्यादा ही चिंता है तो मैं कुक भी लगा लूँगी।”
काजल की बात सुनकर कार्तिक बोला, “अब खाना भी कोई बाहर वाला आकर बनाएगा। कोई मजबूरी हो तो ठीक भी है। हम चार लोग हैं घर में, मम्मी-पापा कैसे खायेंगे? उनको तो आदत नहीं है, तुम्हें पता है ना कुक कैसा खाना बनाती है।
कार्तिक की बात सुनकर काजल भड़क गई, “मुझसे नहीं बनता खाना-वाना, अगर इतनी ही प्रॉब्लम है तो हम अलग रह लेंगे।”
काजल के ये तेज़ स्वर कार्तिक की माँ के कान में पड़े। वो तुरंत दोनों के कमरे में आई और बोली, “तुम दोनो क्यों झगड़ा कर रहे हो? अभी दिन ही कितने हुए हैं शादी को? और ये क्या काजल, तुम अलग रहने की बात कर रही हो?”
“जी मम्मी जी! मेरी जॉब लग गयी है कंपनी में, आने-जाने में बहुत टाइम लगेगा, तो हमने डिसाइड किया है कि वहीं पास में फ्लैट ले लेंगे।”
माँ ने कार्तिक का मुँह देखा, वो मौन था। कार्तिक की माँ बहू-बेटे से बिना कुछ बोले अपने कमरे में आ गयी। आँखों से आंसुओं की धारा बह निकली। जिस कलेजे के टुकड़े को रात-रात भर जाग कर, पाल-पोस कर इतना बड़ा किया, आज उसे माता पिता से दूर जाने में ज़रा सा भी अफ़सोस नहीं था।
कार्तिक और काजल एक हफ्ते बाद घर छोड़कर अलग रहने चले गए। कुछ दिनों तक तो कार्तिक और काजल माता-पिता से मिलने आते रहे पर धीरे-धीरे वो भी कम हो गया।
शादी को एक साल हो गया। अब तो कार्तिक माता-पिता को फ़ोन भी कभी-कभी करता था। ऐसे ही तीन साल बीत गए। कार्तिक को तो पता भी नहीं चला कि इन तीन सालों में उसके माता-पिता दिल्ली से दूर मुंबई में एक ओल्ड ऐज होम में जाकर रहने लगे थे। ये बहुत ही आधुनिक सुविधाओं वाली सोसाइटी थी।
सोसाइटी में ही एक हॉस्टल था जहाँ अनाथ बच्चे रहते थे। जिसमें एक साल से लेकर पंद्रह साल तक के बच्चे थे। ओल्ड एज होम के सभी लोग इन बच्चों के साथ खूब खेलते और उनको पढ़ाते। ये एक पूरा परिवार था। छोटे-छोटे बच्चे जब अपनी तोतली आवाज़ से कार्तिक की माँ को दादी कहते तो वो अपना सारा दुःख भूल जाती। उसे तो अब कार्तिक की यादें भी धुँधली लगने लगी थीं। उसे यहाँ पूरा परिवार जो मिल गया था।
आज ओल्ड एज होम में बहुत रौनक थी। पूरी सोसाइटी को मोगरे के फूलों से सजाया गया था। आज कार्तिक की माँ वसुधा की शादी की पचासवीं सालगिरह थी। एक बड़ा सा केक लाया गया। सभी बच्चे हाथों में गुलाब के फूल लिए खड़े थे, “दादी काटो ना केक।” पास खड़े पाँच साल के छोटे से दीपू ने वसुधा की साड़ी खींची, “अरे बेटा अभी दादू को तो आने दो। आज भी तैयार होने में मुझसे ज्यादा वक़्त लगाते है।”
तभी सारे बच्चे चिल्लाए, “दादू आ गए दादी।” सफेद कुर्ते में अलग ही चमक रहे थे वसुधा के पति(कार्तिक के पापा)। दोनों ने केक काटने के लिए चाकू उठाया ही था कि तभी वसुधा का मोबाइल बजा। स्क्रीन पर इतने दिनों बाद कार्तिक का नंबर देखकर वसुधा की आँखें नम हो गयीं, ” हैलो कौन? वसुधा भरे गले से बोली।”
“माँ, मैं कार्तिक। पहचाना नहीं? कहाँ हो आजकल आप?”
“मैंने तो पहचान लिया बेटा शायद तुझे ही हमें याद करने में देर लग गयी,” वसुधा कड़े स्वर में बोली। बता कैसे फ़ोन किया।”
“माँ आप दादी बन गयी हो, एक प्यारे से बेटे की। यही खुशखबरी सुनाने के लिए मैंने आपको फ़ोन किया। आप और पापा कहाँ गए बिना बताए?”
“बेटा, हम अपने परिवार के साथ हैं।”
“पर कहाँ माँ?”
“मुंबई।”
“अरे इतनी दूर? आपने बताया नही?”
“तूने कभी पूछा भी तो नही बेटा।”
“माँ मैं आपको लेने आ रहा हूँ। आप अब अपने पोते के साथ खूब खेलना।”
“बेटा तुझे आने की कोई ज़रुरत नहीं। और हाँ, मेरी तरफ से मेरे पोते को प्यार कर देना।”
तभी दीपू ज़ोर से चिल्लाया, “दादी फ़ोन रखो ना, मुझे केक खाना है।”
वसुधा ने कार्तिक से कहा, “बेटा, मेरा परिवार मेरा इंतज़ार कर रहा है, मैं फोन रखती हूँ।”
आज वसुधा की आंखों में नमी भी ख़त्म हो गयी थी क्योंकि आज एक मतलबी रिश्ता हमेशा के लिए ख़त्म हो गया था। वसुधा का नया परिवार उसके साथ था।
13 वर्ष की उम्र से लेखन में सक्रिय , समाचार पत्रों में कविताएं कहानियां लेख लिखती हूँ। एक टॉप ब्लागर मोमस्प्रेसो , प्रतिलिपी, शीरोज, स्ट्रीमिरर और पेड ब्लॉगर, कैसियो, बेबी डव, मदर स्पर्श, और न्यूट्रा लाइट जैसे ब्रांड्स के साथ स्पांसर ब्लॉग लिखती हूँ मेरी कहानियां समाज में फैली कुरीतियों को दूर करने के लिए होती है रिश्तों के उतार चढ़ाव मेरे ब्लॉग की मुख्य विशेषता है read more...
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