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हर उस एक में है 'अलेबली' जिसके पास अपना बारहमासा, अपनी धुन, अपने ही राग हैं। इनसे मिलकर बनी है अपराजिता शर्मा की अलबेली की दुनिया, 'अलबेली दुनिया'।
हर उस एक में है ‘अलेबली’ जिसके पास अपना बारहमासा, अपनी धुन, अपने ही राग हैं। इनसे मिलकर बनी है अपराजिता शर्मा की अलबेली की दुनिया, ‘अलबेली दुनिया’।
कला की भाषा एक ऐसी भाषा है जिसे शब्दों की दरकार नहीं।
वे रेखाएँ जिनके ज़रिए जटिल से जटिल विषय को हम आसानी से समझ पाते हैं, उन्हें ही बनाना किसी भी कलाकार के लिए आसान नहीं होता।
1951 में आर. के. लक्ष्मण, जिस कॉमन-मैन का परिचय देश की कॉमन जनता से कराते हैं, वह बिना लंबे-चौड़े भाषणों के, समसामयिक मसलों पर लगभग पांच दशकों तक बेहद प्रभावी ढंग से अपनी बात रखता रहा है।
आज 2019 में, जब हम पीछे पलटकर देखते हैं तो कहीं न कहीं हमें यह कमी महसूस होती है कि हमारे सामने कॉमन-मैन का नैरेटिव या विवरण तो था, लेकिन देश, समाज और राजनीति के मुद्दों पर एक स्त्री क्या सोचती है, उसका किरदार, उसके विचार, उसके अपने मसलों से हम अनजान रहे हैं।
पर अब समय बदल चुका है, हम जेंडर-बैलेंस या लैंगिक-संतुलन पर ख़ासा ज़ोर देते हैं। अब कॉमन-मैन ही नहीं हमें कॉमन-वुमन भी चाहिए।
मौजूदा समय में मोनिका टाटा, तारा आनंद, सोनाक्षा अयंगर, प्रियंका पॉल, कृतिका सुसरला, आदि जैसे कई नाम हैं जो डिजिटल स्पेस पर जेंडर, सेक्शुएलिटी या लैंगिकता, मानसिक स्वास्थ्य, पीरियड्स से जुड़े पूर्वाग्रहों और रूढ़ियों पर, देश और राजनीति से जुड़े मसलों पर एक स्त्री क्या सोचती है, उसका स्टैंड या दृष्टिकोण क्या है, उसके किरदार, उसके विचार को हमारे सामने रख रहें हैं।
ऐसा ही एक और नाम है अपराजिता शर्मा का, जिनकी किरदार ‘अलबेली’ वर्तमान समय की आधुनिक, शिक्षित और जागरूक स्त्री होने के साथ ही उदारवादी मूल्यों और राजनीतिक मसलों की समझ भी रखती है। इसके अलावा ललमुनिया, एक नन्ही-सी चिड़िया का साथ अलबेली के किरदार को और भी रोचक और अलमस्त बना देता है।
अलबेली एक ऐसा पात्र या करैक्टर है जिससे हर औरत ख़ुद को जोड़ सकती है या फ़िर जोड़ना पसंद कर सकती है क्योंकि ये स्त्री मन के विभिन्न पहलुओं को अभिव्यक्त करती है।
पेशे से प्रोफेसर, अपराजिता शर्मा ने देसी चैट-स्टिकर्स ‘हिमोजी’ बनाए थे, जिनकी मुख्य किरदार अनन्या है। अनन्या, जिसकी सारी मस्ती और अभिव्यक्ति हिंदी की ‘कूलनेस’ और देसीपन से भरी हुई है।
हिमोजी के बाद डॉ. नीलिमा चौहान की किताब ‘पतनशील पत्नियों’ के नोट्स के लिए जो चित्र उर्फ़ इलस्ट्रेशन्स उन्होंने बनाए, वे बेहद दिलचस्प तोे हैं ही, साथ ही साथ किताब की तंजिया भाषा से इतर, खुशमिज़ाजी और ज़िंदादिली से लबरेज़ उनकी अपनी एक भाषा है जिसके बारे में शायद उतनी चर्चा नहीं हुई जितनी होनी चाहिए थी।
पाठ्य उर्फ़ टेक्स्ट के साथ चित्र को फिलर मान लेना, हिंदी की दुनिया में एक बड़ी समस्या है जिस पर अपराजिता बात करती रहीं हैं। इसके साथ ही उनके सामने यह दिक्क़त भी आती रही है कि उनके बनाए हिमोजी की अनन्या और अलबेली को एक ही मान लिया जाता है। अलेबली का अपना अस्तित्व है और उसकी दुनिया की बारीकियों को समझने के लिए जल्दबाज़ी नहीं, वक़्त की ज़रूरत है।
हमारे समाज में लड़कियों पर ‘फेयर एंड लवली’ दिखने का जो दबाव होता है और सांवली लड़कियों को जिस उपेक्षा का शिकार होना पड़ता है, यह कोई छिपी बात नहीं है। पर अलबेली इस दबाव को पीछे छोड़ते हुए अपने होने का जश्न मनाती हुई दिखाई देती है। वह अपने प्राकृतिक रूप से खुश, संतुष्ट है, और अपनी सकारात्मक ऊर्जा से सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ रही है।
इससे जुड़े टैबूज़ के विरोध के साथ ही सैनिटरी नैपकिन टैक्स फ्री रहें, यह अलबेली और हर औरत की ज़रूरत है।
स्त्री को ‘महान’ होने का तमगा देना दरअसल उससे ‘इंसान’ होने का हक़ छीन लेने की धूर्तता है।
वह देश और समाज के ज़रूरी मुद्दों पर भी अपनी प्रतिक्रिया देती है, चाहे महंगाई हो, पर्यावरण में घुलते प्रदूषण का ज़हर या फ़िर सोशल मीडिया पर बढ़ता ट्रोलिंग का चलन। अलबेली जागरूक स्त्री है, इसीलिए परेशान भी है क्योंकि समस्याओं को अनदेखा कर देना उसकी प्रकृति नहीं।
किसी भी तरह के विकार उर्फ़ डिसऑर्डर से जूझ रहे इंसान के लिए ज़िन्दगी बेहद मुश्किल हो जाती है और अपने आप को संभालने के लिए, भावनात्मक रूप से मज़बूत होने के लिए बहुत हिम्मत चाहिए होती है। ऐसी स्थिति में समाज की असंवेदनशीलता और पूर्वाग्रहों का सामना करना एक और बड़ी चुनौती बन जाती है।
कृष्ण के जन्म के दिन ही उनकी बहन योगमाया का भी जन्म होता है लेकिन उनका जन्मदिन किसी उत्सव की तरह नहीं मनाया जाता। एक तरह से भारतीय समाज में आज भी बेटियों की जो उपेक्षा की जाती है, यह उसी का प्रतीक है। हम योगमाया को भूल जाते हैं, ठीक उसी तरह जैसे अपनी बेटियों को जिनका जन्म हमारे लिए उत्सव या ख़ुशी का विषय नहीं बल्कि दुःख का कारण है।
अपराजिता अलबेली की दुनिया को एक कैलेंडर का रूप भी दे चुकी हैं। उनके अपने शब्दों में-अलबेली होना यानी सहजता, कर्म, उल्लास, निर्बाधता और एक नई मुकम्मल स्त्री होना है। हम में से हर उस एक में है अलेबली जिसके पास अपना बारहमासा, अपनी धुन, अपने ही राग हैं। इन सबसे मिलकर बनी है अलबेली की दुनिया, “अलबेली दुनिया”।
मूलचित्र : लेख में उपयोग किए गए सभी इलस्ट्रेशन्स इलस्ट्रेटर की अनुमति से लिए गए हैं।
Trying to digitize language and literature. I am a - Writer/Editor/AEM at Pratilipi - a product of Nasadiya Technologies. Founder : Literary Vlog read more...
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