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नैना ने कहा वो नेत्रहीन है, पर सोचने के लिये दिमाग है। सारी ग्रन्थियाँ, और स्वाद, आवाज़, स्पर्श, सब अच्छे से महसूस कर सकती है वह।
नैना नाम था, पर नैनों में भगवान ने रोशनी ही नहीं दी थी। नैना नेत्रहीन पैदा हुई, पर सुंदरता में परी थी। नैना के पिता आर्मी में थे। नैना की माँ और पिता, नैना का बहुत ध्यान रखते थे।
दोनों उसको कुछ काम नहीं करने देते कि कहीं वह नहीं कर पायी तो? वह गिर जाएगी, उसके चोट लग जाएगी, नैना पूरी तरह अपने माँ और पिता पर निर्भर हो गई थी। लाड-प्यार में पता ही नहीं चला कि नैना बारहवीं कक्षा में आ गई।
एक दिन, नैना के पिता के कुछ दोस्त आए और उन्होंने नैना के पिता सूरज को समझाया कि तुम दोनों हमेशा उसके साथ तो नहीं रहोगे, तो उस को आत्मनिर्भर बनने दो।
नैना के पिता ने कहा, “मुझे और नैना की मां, किरण, दोनों को नैना की बहुत चिंता रहती है। हम पूरी ज़िंदगी तो उसके साथ नहीं रह सकते, पर क्या करें? वो कुछ कर भी तो नहीं सकती।”
सूरज के दोस्त ने कहा, “बारहवीं पूरी हो रही है? कंथारी में एक ट्रेनिंग सेंटर है, वहाँ उसका एडमिशन करा दो। लीडरशिप की ट्रेनिंग और आत्मनिर्भर बनाएगी।”
सूरज ने बिना देर किये तुरंत उसका एडमिशन कंथारी में करा दिया। पर उन दोनों को हमेशा यह चिंता रहती थी कि नैना, जो एक गिलास पानी तक ख़ुद नहीं पीती, वहाँँ हॉस्टल में अकेले कैसे रहेगी? बहुत दिक्कतें आयेगीं।
पर वहाँ बहुत सीखने को मिला। नैना को वहाँ पर एक छड़ी मिली जिससे उसे चलना सिखाया गया। छड़ी उसकी चलने में सहायता करती। नैना को लगा उसे एक दोस्त मिला।
वहाँँ नैना हॉस्टल में कपड़े धोना, पानी लेना और छोटे-छोटे अपने काम करने लगी थी। धीरे-धीरे नैना पूरी तरह अपने काम करने लगी और आत्मविश्वास से भर गई। नैना ने छोटे-बडे़ सब काम करने सीख लिए थे।
नैना अपने वहाँँ के संस्थापक से बहुत प्रभावित थी क्योंकि वह गरीबों के लिए, दृष्टिहीनों के लिए बहुत काम करते थे। कम्पयूटर सिखाते, ब्रेल पढ़ाते, पर्सनल स्कि्ल्स भी सिखाते थे।
नैना ने सब सीखा। उसने बी.एड. किया और अध्यापिका बन गई। तब तक वह आत्मविश्वास से भरपूर थी। वह अपने जैसे नेत्रहीनों के लिए कुछ करना चाहती थी। वहाँ उसके व्यवहार के लिए सब उसे बहुत पसंद करते थे। किसी को ब्रेल सिखाती, किसी को कम्पयूटर, जहाँँ जिसको ज़रुरत होती वह जाकर उनकी मदद करती।
टिफ्फनी का उदाहरण उसके सामने था। उसने मोबाइल ज्योर्तिगमय की शुरूवात की थी।
एक दिन उसको किसी काम से बाहर जाना था और वहाँ उसकी दोस्ती मोहन से हुई। मोहन बहुत बिगड़ा हुआ था । शादीशुदा था पर नैना को बताया कि वह अविवाहित है। लड़कियों को बहलाना-फुसलाना ही काम था उसका।
नैना को एक स्कूल में ट्रेनिंग के लिए जाना होता था। नैना जहाँँ से बस लेती और जहाँँ तक जाती, वहाँ उसकी नई सहेलियां बन गई थीं। वहाँ पर रोज़ वह मोहन से मिलती और धीरे-धीरे बातें शुरू हो गईं। मोहन ने नैना को बताया कि वह उसकी तरह ही नेत्रहीन है। मोहन भी पास में वहीं-कहीं पर पढ़ाने के लिए जाता था।
रोज़ाना आने-जाने से पंद्रह दिनों में ही दोनों में अच्छी दोस्ती हो गई। वह हमेशा कहता, “नैना तुम्हारी आंखों में रोशनी नहीं, लेकिन कोई यह बता नहीं सकता। तुम बहुत सुंदर होगी, क्योंकि तुम इतनी तो आत्मविश्वास से भरी हो।” नैना अपनी तारीफ़ सुन कर मुस्कुरा देती।
एक दिन मोहन ने नैना के सामने शादी का प्रस्ताव रखा। नैना ने उसे समझाया कि वह देख नहीं सकती और पंद्रह दिन बहुत कम हैं एक दुसरे को जानने के लिये। और वैसै भी घर वाले इस बात को पसंद नहीं करेगें। पर मोहन मानने वाला नहीं था। मोहन ने उससे वादा किया कि वह अपने घर वालों से बात करेगा और जल्दी ही वे शादी के बंधन में बंध जाएंगे। नैना भी मोहन के सपने देखने लग गई।
नैना की माँ-बाप बहुत खुश थे। लेकिन उसकी हाँ के बाद नैना को मोहन का व्यवहार अलग सा लगने लगा। मोहन उसका हाथ पकड़ता तो नैना हाथ हटा लेती। मोहन हमेशा बातों-बातों में उसे छूने की कोशिश करता। नैना को अजीब महसूस हो रहा था। पर उसे लगा कि ये उसके बात करने का तरीक़ा होगा।
बहाने से एक दिन मोहन उसको अपने घर ले गया। नैना ने मना किया तो मोहन ने कहा, “थोड़ी ही देर का काम है, फिर तुम्हें कॉलेज छोड़ दूँगा।”
घर पहुँचकर मोहन ने बताया कि वह वहाँँ पर अकेला रहता है। उसके माँ-बाप दूसरे शहर में हैं। नैना ने कहा, “मुझे नहीं पता था कि तुम यहाँ अकेले रहते हो और तुम्हारे माँ -बाबा दूसरे शहर मेंं।”
मोहन ने कहा शायद उसने सुना नहीं होगा, उसने ठीक से बताया था। एक दिन वो नैना को उनसे मिलायेगा।
मोहन ने दरवाज़ा खोला। जैसे ही नैना ने पैर अंदर रखा, वह लड़खड़ा गई पर जमीन पर हाथ टिका कर संभल गयी। मोहन ने भी नैना को संभाला।
मोहन ने चप्पल को साइड में करते हुए कहा, “अरे मैं अकेला रहता हूँ ना, इसलिए जूता इधर-उधर पड़ा रहता है। इसी में तुम्हारा पैर अटक गया था।”
नैना अंदर गई और मोहन चाय बनाने के लिए रसोई में चला गया और उसने चाय में नशे की गोलियाँ मिला दीं। नैना इधर-उधर कमरे में टहलने लगी। मोहन चाय लेकर आ गया।
नैना का हाथ एक कपड़े पर पड़ा, “ये साड़ी है क्या?”
“नहीं-नहीं! यहाँ साड़ी का क्या काम? सिल्क की चादर है। तह बनाकर रखी थी। उठाना भूल गया।”
मोहन नेत्रहीन है, ये एक मिनट को वह भूल गया। मोहन ने कहा, “तुम्हे रंग कौन सा पसंद है?”
“अजीब सवाल है!” नैना ने चौंकते हुये कहा।
मोहन घबरायी आवाज में बोला, “अरे! बस ऐसे ही मज़ाक था।”
नैना को चमेली के फूलों की खुशबू आई तो पूछा, “यहाँ गजरा रखा है क्या?”
फिर खुशबू को महसुस करती हुई खुली अलमारी तक पहुँची। वहाँ पर पड़ा गजरा पकड़ कर कहा, “ये रहा।”
मोहन को अंदाजा भी नहीं था कि खुशबू से गजरे तक पहुँच जायेगी नैना।
“अरे नहीं! यहाँ पड़ा था क्या? ये माला है फूलों की। भगवान भक्त हूँ।”
‘कुछ तो गड़बड़ है’, नैना अच्छे से समझ गयी।
नैना ने ऐसे दिखाया जैसै वो कुछ ना जानती हो। मोहन ने चाय दी तो नैना ने कप जान कर गिरा दिया।
“ओह !माफ करना।”
मोहन बोला, “कोई नहीं दूसरी बनाकर लाता हूँ।” कहकर वह अंदर गया।
नैना अपनी छड़ी उठाकर जल्दी बाहर निकल गयी और रास्ते में उसने चैन की साँँस ली। फ़ोन करके उसने अपने पापा को सारी बात बतायी तो सूरज उसी समय पुलिस लेकर मोहन के घर पहुँच गया।
मोहन ने कहा, “किस आरोप मे पकड़ेगें? नैना कुछ नहीं कह सकती।”
पर नैना बोली, “कमरे में आते ही मैं जान गयी थी कि मोहन झूठ बोल रहा है।”
सुरज ने पूछा, “कैसे?”
नैना ने बताया, “कमरे में मैं गिरते-गिरते बची जब मैं किसी चीज से टकरायी। तब सभंलने के लिये जैसे ही जमीन पर हाथ लगाया, तब वहाँ किसी लड़की की चप्पल थी। मैं छूकर बता सकती हूँ कि जूता है या चप्पल। जबकि, मोहन ने कहा जूता था। तब एकदम से घर नहीं जा सकती थी क्यूंकि मोहन समझ जाता।”
“जब मेरा हाथ साड़ी पर पड़ा, तब मोहन ने कहा सिल्क चादर है। पर जब छुआ तो किनारी बारिक मोती की थी, और इत्र की खुशबु भी थी जो कि लड़की लगाती है। और जब गजरे को माला कहा, तो अगर माला होती तो ऐसे ही पड़ी नहीं होती , मन्दिर में या कागज़ के पैकैट में होती। छुने से भी गजरा और सुगंध पता चल रही थी।”
“यही नहीं, फिर मोहन ने पसंद का रंग भी पूछा और घबरा भी गया कि गलती से पूछा, क्यूंकि वो नेत्रहीन नहीं था, होता तो कभी भी रंग नहीं पूछेगा। और उसकी काफी सारी बातों से मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा था।”
शादी-शुदा होते हुए भी मोहन लड़कियों का गलत फायदा उठाता। पता चला कि उसकी पत्नी मायके गयी है कुछ दिन के लिये। और वो नैना को अंधा समझकर ले आया, सोचा था कि उसको घर मे कुछ नहीं दिखेगा। और वहाँँ लैपटॉप में और भी आपतिजनक फाइल मिली। वह लड़कियोंं को बेच देता था। फोन पर नम्बर से और भी लोग पकडे़ गये।
नैना ने कहा वो नेत्रहीन है, पर सोचने के लिये दिमाग है। सारी ग्रन्थियाँ, स्वाद, कान, स्पर्श, सब अच्छे से महसूस कर सकती है वह।
नैना का दिल तो दुःखा, पर वो टूटी नहीं। उसने आगे पढ़ाई की और संस्थापक के साथ स्कुल का आगे र्निमाण कराया। घर-घर जा कर शिक्षा दी। और एक होनहार से शादी भी हुई।
नेत्रहीन निर्भर नहीं आत्मनिर्भर होते हैं। बस उन्हें थोड़े से सहयोग की आवश्यकता होती है। नैना जैसै दृष्टिहीन होकर भी दूर की दृष्टि रखते हैं।
इसका एक उदाहरण है टिफ्फनी, जो एक नेत्रहीन है और जिसने अपने सह-संस्थापक के साथ ज्योतिर्गमय मोबाइल, अंधों के लिए एक स्कूल, खोला। जो नेत्रहीन पढ़ने नहीं आ सकते, वे उनके पास जाकर उन्हें सिखाकर आत्मनिर्भर बनाते हैं। साल 2001 तक उन्होंने कॉलेज खोले जिनमें 40,0000 नेत्रहीन पढ़ते थे।
दृष्टिहीन अयोग्य नहीं बस उनको ज़रुरत है धैर्य, साहस और सकारात्मक सोच की।
मूलचित्र : Pexel
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