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दोनों लड़कियाँ! ओह! ऑपरेशन तो नहीं करवाया ना

जिन्हें हमारी चिता की अग्नि की चिंता है तो वो भी हमारी बेटियां कर लेंगी। केवल दो बेटियों के परिवारों को परेशान करना छोड़ दिजिए।

जिन्हें हमारी चिता की अग्नि की चिंता है तो वो भी हमारी बेटियां कर लेंगी। केवल दो बेटियों के परिवारों को परेशान करना छोड़ दिजिए।

गर्मी की छुट्टियों में ससुराल की कुछ गलियों से, मायके के कुछ दिन तक का सफर बहुत प्यारा लगता है। हर साल तो लंबा समय नहीं निकाल पाती, पर इस साल ज़रूर निकाला। कुछ ऐसे लोग मिले जो वार्षिक जंयती जैसे साल में एक बार ही मिलते हैं। और कुछ ऐसे भी जिन्हें हमारे बारे में पूरी जानकारी होती है, बाल-बच्चे, नौकरी-चाकरी, शहर और शायद जितना वेतन हमें हमारा नहीं पता हो, वो भी उन्हें पता होता है। ये भी रंग है दुनिया के।

पर पिछले पाँच सालों में अपनी यात्राओं में सबसे ज़्यादा जिस सवाल का मुझे सामना करना पड़ता है वो हैं –

‘कितने बच्चे हैं?’

सामने वाला कभी-कभी खुद ही जवाब दे देता है क्योंकि उसे पता होता है, ‘अच्छा दो?’

अगला जवाब भी बहुत सारे लोगों को पता होता है फिर भी बोलेंगे, ‘दोनों लड़कियाँ?’

‘ओह! ऑपरेशन तो नहीं करवाया ना?’

और यकीन मानिये, इस तीसरी लाईन के बाद जो दिमाग का दही होता है, वो मैं ही जानती हूँ, फिर केवल सिर हिलता है।

यदि गलती से सिर ऊपर से नीचे हिला, अर्थात स्वीकृति, ‘अरे तीसरा क्यों नहीं सोचा? इतनी जल्दी क्या थी आँपरेशन की? ख़ैर, अब क्या कर सकते हैं।

और, यदि गलती से सिर दाएं से बाएं हिला, अर्थात अस्वीकृति, ‘अच्छा हुआ नहीं करवाया। तीसरे की कोशिश तो करनी ही चाहिए। एक बेटा तो होना चाहिए। भाई तो बहुत ज़रूरी है बहन के लिए।’ जैसे ये लोग, संतान बेटा होगा या बेटी इसकी गांरटी लेकर घूमते हैं। ख़ैर…

हे शुभचिंतकों,

हमें केवल दो संतान चाहिए थीं, जो हमेशा एक दूसरे की खुशियों की चाबी बनकर रहे। अगर वो केवल बेटियां हैं, इसमें हमें और हमारे परिवार को कोई समस्या नहीं हैं। इसलिए आप लोग व्यर्थ में चिंता करके अपना खून मत जलाईए। बेटा और बेटी बराबर होते हैं, ये केवल हम मानते नहीं, जानते हैं। जिन्हें भी रक्षाबंधन की समस्या है वो दोनों एक दूसरे की कलाई पर राखी भी बाँध सकती हैं और रक्षा भी कर सकती हैं।

जिन्हें भी इस बात से समस्या है कि बुढ़ापे में हम दोनों का क्या होगा, वो भी परेशान ना हों। हम आपके पास नहीं आएँगे। जिन्हें सरनेम के खत्म हो जाने का भय है, तो मेरे साथ मेरे पापा का सरनेम जुड़ा है, मेरी बेटियों के साथ भी जुड़ा रहेगा और हम अपनी आखिरी प्रजाति नहीं हैं। जिन्हें हमारी चिता की अग्नि की चिंता है तो वो भी हमारी बेटियां कर लेंगी।

केवल दो बेटियों के परिवारों को परेशान करना छोड़ दिजिए।

मूलचित्र : Pixabay 

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