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हर बात के लिए औरत ही दोषी क्यों?

आज भी हमारे समाज में विधवा औरतों को शुभ कार्यों से दूर रखा जाता है, उन्हें अशुभ करार दिया जाता है। सुहागन और अभागन बनना किसी के हाथ में नहीं होता।

आज भी हमारे समाज में विधवा औरतों को शुभ कार्यों से दूर रखा जाता है, उन्हें अशुभ करार दिया जाता है। सुहागन और अभागन बनना किसी के हाथ में नहीं होता।

महिमा ने सुना कि चाची बहुत बीमार हैं तो महिमा दूसरे ही दिन मायके गयी और चाची को ज़बरदस्ती अपने घर ले आयी। आखिर माँ के बाद चाची ही तो थीं जो उसे बेटी की तरह प्यार करती थीं, लेकिन चाची बेटी-दामाद के घर का पानी पीना भी उचित नहीं समझती थीं। लेकिन इस बार महिमा के ज़िद के कारण वो पहली बार उसके घर आईं। चाचाजी अब इस दुनिया में नहीं थे। दिल की भली थीं चाची, जब भी कोई उन्हें नि:संतान कहता तो मैं झट से उनके पास आकर बोल उठती, “मैं अपनी चाची की बेटी हूँ।” और वो भाव-विभोर होकर मुझे गले से लगा लेती।

आज मेरा घर देखकर उनका रोम-रोम पुलकित हो गया। बहुत खुश हुईं मेरा घर-परिवार देखकर। दूसरे दिन डाॅक्टर को दिखाया गया और उसके बाद वो घर जाने की ज़िद करने लगीं। मैंने कितना रोका, लेकिन वो न मानीं और कहने लगीं, “बेटी के घर नहीं रहते, तेरे सास-ससुर क्या कहेंगे? मुझे जाने दे।” उनके कहने पर मैंने हामी भर दी और वो बहुत सारा आशीर्वाद देकर चली गईं।

मैं उनको छोड़कर जैसे ही घर के अंदर आई, मेरी सास ने कहा, “चाची जिस कमरे में ठहरी थी उसकी चादर बदल दे बहू और वो यहां बैठी थी तो सोफे की कवर हटा दे और एक बार पूरा घर गंगाजल डालकर शुद्ध कर दे।”

“ये आप क्या कह रही हैं माँ जी? कल ही तो उस कमरे की चादर और सोफे की कवर बदली थी और आप कह रही हैं कि उसे निकाल दे? और घर शुद्ध क्यों करना है? मैं आपकी बातों का मतलब नहीं समझी?”

“अरे बहू तेरी चाची विधवा है, तो अपशकुन होता है। इसलिए मैं तुझे ये सब करने के लिए कह रही हूं।”

“माँ जी आपके ऐसे विचार हैं? मुझे तो यकीन नहीं हो रहा, खुदा न खास्ता अगर आपके या मेरे साथ कुछ ऐसा हो जाए फिर आप क्या करेंगी? और इसमें चाची की क्या गलती है? अच्छा हुआ जो वो चली गई, नहीं तो उनके रहते आप ये सब कहतीं तो बेचारी यहीं प्राण त्याग देतीं।”

“बस बहू, तू मेरे लिए ऐसा सोचती है? मैं तो सुहागन ही जाऊंगी। तू अपना सोच।”

“माँ जी कोई नहीं जानता कि कौन सुहागन जाएगा और कौन अभागन! ये तो भगवान ही जानते हैं। और अगर किसी का पति मर जाए तो इसमें उसकी पत्नी को दोषी क्यों ठहराना, उसने क्या किया जो लोग उसे अपशकुनी मानने लगते हैं!” माँ जी बड़बड़ाते हुए अपने कमरे में चली गई।

दोस्तों, आज भी हमारे समाज में विधवा औरतों को शुभ कार्यों से दूर रखा जाता है, उन्हें अशुभ करार दिया जाता है। सुहागन और अभागन बनना किसी के हाथ में नहीं होता। ये तो भगवान के हाथ में होता है, लेकिन जो जीवित है उसके साथ गलत व्यवहार नहीं करना चाहिए। आज भी हमारे देश में ऐसी सामाजिक कुरीतियां व्याप्त हैं, इसका हमें मिलकर विरोध करना चाहिए।

मूलचित्र :

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Pragati Tripathi

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