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आंटी मत कहो ना, यह हमारी अपनी पहचान नहीं है

एक ग्रहणी वैसे भी बुआ, मौसी, चाची या ताई के रिश्तों में अपना नाम पहले ही कहीं पीछे छोड़ कर, स्वयं की पहचान खो देती है।

एक ग्रहणी वैसे भी बुआ, मौसी, चाची या ताई के रिश्तों में अपना नाम पहले ही कहीं पीछे छोड़ कर, स्वयं की पहचान खो देती है।

मैं बहुत खुश थी क्योंकि जब सभी ओर सोशल मीडिया पर ‘विमेंस वीक’ का शोर था, उसमें मेरी भी एक ज़िद्द या यूँ कहिये मेरी ‘आंटी मत कहो ना’ कहने की इच्छा पूरी हो गई।

हमने अपने नए घर में शिफ्ट किया था। बिल्डिंग भी नई थी तो सभी एक दुसरे के लिए नए और अनजान थे। रात के दस बजे अचानक घंटी बजी, ‘इतनी रात कौन हो सकता है?’ सोचते हुए दरवाज़ा खोला तो एक तीस वर्ष के करीब की महिला थी। उसने अपने बारे में कहा कि, ‘मैं फ्लैट 803 में रहती हूँ। कल शाम सभी महिलाओं की इंट्रोडक्शन मीटिंग है। प्लीज, आप टाइम पर आ जाना, मैं कॉल नही कर पाऊँगी, अभी नंबर नहीं है। कल हम एक दूसरे से नंबर भी एक्सचेंज  कर लेंगी। अभी मैं जल्दी में हूँ, कल मिलते हैं।ओके! गुड नाईट आंटी । वो जल्दी जल्दी बोल के चली गयी ।

मैं ‘आंटी’ सुन कर स्तब्ध सी खड़ी रह गई। सोचते-सोचते अपने कमरे मैं आई। सब सो गई थे और  मैं बिस्तर मैं करवटें बदल रही थी ।

ना ना! आप ने गलत समझा। यहाँ पर, ये नज़रिया कि ‘आंटी शब्द उम्र दर्शाता है’, वो कारण बिल्कुल नहीं था। यहाँ सभी उम्र की महिलाएं हैं, छोटी भी और बड़ी भी। ये ही संगी सहेली बनने जा रही हैं। उम्र भर के लिए, रात-दिन का साथ होगा। इन सबके बीच, अपना नाम खोने का डर सताने लगा। जो अपनी स्वयं की पहचान है वो ‘1001 वाली आंटी’ बनाने की शुरुआत थी, जो मुझे परेशान कर रही थी।

एक ग्रहणी वैसे भी बुआ, मौसी, चाची या ताई के रिश्तों में अपना नाम पहले ही कहीं पीछे छोड़ देती है। संगी-सहेलियों के बीच भी अगर अपना नाम नहीं होगा, तो अपनी स्वयं की पहचान खो जाएगी। फिर कब नींद आई पता ही नहीं चला।

निर्धारित समय पर मैं मीटिंग में पहुंच गई। सबने अपने बारे में बताना शुरू किया कि वो किस फ्लैट से हैं और वो मिसेस ‘ये’ हैं। मैं भी उन सब में नई थी पर उनकी पहचान फ्लैट नंबर से मेरे गले नहीं उतर रही थी।

हिम्मत जुटा के मैंने कह दिया, ‘सबके अपने नाम हैं, प्लीज़ उसी से ही बुलाइये। यही हमारी अपनी पहचान है।’

सभी बड़ी व छोटी महिलाओं ने मेरी यह बात ह्रदय से स्वीकार की। बड़ी महिलाएं सभी प्रसन्न थीं अपने पीछे छुटी हुई पहचान को पा कर। साथ ही हमसे जो 10-15 वर्ष छोटी युवा पीढ़ी थी, वो हमारी भावनाओं को अच्छे से समझ पाई।

यह हम सभी के लिए, पहली और बहुत ही यादगार मीटिंग रही, जिससे हम सब एक दूसरे के  करीब आ गए।

हमें अपने नाम की पहचान, ‘विमेंस वीक’ में एक यादगार तोहफे की तरह मिली।

मूलचित्र : Pixcove 

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