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दुःख की बात है कि कंगना रनौत आज तक जिन मुद्दों के खिलाफ रही हैं, आज खुद ही उन मुद्दों की 'पोस्टर गर्ल' बन गयी हैं।
दुःख की बात है कि कंगना रनौत आज तक जिन मुद्दों के खिलाफ रही हैं, आज खुद ही उन मुद्दों की ‘पोस्टर गर्ल’ बन गयी हैं।
अनुवाद : प्रगति अधिकारी
कंगना रनौत और उनकी बहन, रंगोली चंदेल, उग्र नारीवादी के प्रतीक के रूप में अपनी विश्वसनीयता खो रही हैं क्योंकि वे खुद को किसी भी प्रकार की आलोचना से परे समझती हैं, बात-बे बात अपनी धौंस जमाती रहती हैं, और गलत मुद्दों का समर्थन करती हैं।
कंगना रनौत के उत्थान की कहानी, वास्तव में प्रेरणादायक है। एक ‘आउटसाइडर’ होने के बावजूद उन्होंने बॉलीवुड में अपनी खुद की एक पहचान बनाई और ये साबित किया कि वह सही मायनों में ‘क्वीन’ हैं। उन्होंने साहसपूर्वक बॉलीवुड में बसे ‘नेपोटिस्म’ का आह्वान किया। उन्हें कई मर्तबा ‘विच’ कहा गया, लेकिन उन्होंने इस टैग को अपनी सूझ-बुझ और साहस से अपने सर का ताज बना लिया।
ऐसे ही, एसिड अटैक सर्वाइवर उनकी बहन और मैनेजर, रंगोली चंदेल का संघर्ष उनकी ताकत का एक वसीयतनामा है। ये दोनों बहनें एक अजेय शक्ति का प्रतीक रही हैं। अन्य अभिनेत्रियों का कई मर्तबा समर्थन कर कंगना की प्रतिबद्धता सिर्फ अपनी बहन रंगोली तक ही सिमित नहीं रही।
यही कारण है कि अब दोनों का ‘बुलीज़’ जैसा ये व्यवहार एक विश्वासघात सा लगता है। उन्हें उनके गुस्से के कारण दोष नहीं दिया जा रहा – गुस्सा करने का उन्हें पूरा हक़ है। संभवतः उनकी ये नाराज़गी वाजिब भी है। गलत है, तो इस गुस्से को व्यक्त करने का तरीका – दूसरों को नीचा दिखाना अस्वीकार्य है। हालांकि, हम पूर्णतः ये नहीं जान सकते कि कंगना को अपनी सफलता तय करने में किन-किन समस्याओं का सामना करना पड़ा, इसके बावजूद, उनका दूसरों पर बात-बे बात शब्दों का वार किस हद तक सही है? माना कि ‘बुली’ अक्सर ख़ुद ‘विक्टिम’ होता है, पर इसका मतलब ये तो नहीं कि ‘बुलिंग’ सही है।
आए दिन, कंगना या रंगोली की कोई नई कहानी या ट्वीट होता है, जो ज़्यादातर नकारात्मकता से भरपूर होता है। दीपिका पादुकोण पर, उनके डिप्रेशन वीडियो के ‘सोशल मीडिया रीच’ का जश्न मनाने के लिए, हमला करना, कंगना की आने वाली फिल्म ‘जजमेंटल है क्या’ के पूर्व शीर्षक, ‘मेंटल है क्या’ के खिलाफ, दीपिका पादुकोण की ‘लिव लव लाफ फाउंडेशन’ की आपत्ति जताने पर, बदला लेने जैसा लगता है। यह मांग कि वरुण धवन और तापसी पन्नू, अपनी ट्वीट में, ना सिर्फ इस फिल्म की बल्कि कंगना की विशेष रूप से प्रशंसा करें, कितना जायज़ है? चाहे कंगना की फिल्म मणिकर्णिका को लेकर पत्रकार जस्टिन राव के साथ, हाल ही में हुई, बदसूरत बहस या फिर आलिया भट्ट पर किए गया भद्दे शब्दों का वार, सब कुछ बेहद नकारात्मक है। कंगना अब एक अहंकारी ‘एंटाइटिल्ड दीवा’ की छवि का चित्रण कर रही हैं, जिसकी अतीत में उन्होंने खूब आलोचना की है।
उनका ये नारीवाद, पितृसत्तात्मकता पर आधारित लगता है। रणनीतिक रूप से, वह सिर्फ खुद को बढ़ावा दे रहीं हैं। बॉलीवुड की अन्य महिला सदस्यों को पीछे छोड़ कर, यूँ नीचा दिखा कर, उन्होंने बॉलीवुड में बसी असमानता को बरकरार रखा है।
रंगोली ने विवेक ओबेरॉय के समर्थन में ट्वीट किया, और जब राष्ट्रीय महिला आयोग ने अभिनेता के खिलाफ, ऐश्वर्या राय के बारे में आपत्तिजनक मेम साझा करने के लिए, नोटिस जारी किया तो रंगोली ने कहा कि नारे लगाने वाली ये महिलाएं, ‘महिलाओं से ईर्ष्या करती हैं और विमेन हेटर्स हैं।’
वह कबीर सिंह के निर्देशक संदीप रेड्डी वांगा के समर्थन में भी आगे आईं, जिन्होंने हाल ही में एक इंटरव्यू में फिल्म की ‘टॉक्सिक मस्क्युलेनिटी’ का महिमामंडन किया था।था
उन्होंने 1951 की फिल्म आवारा के एक दृश्य को ट्वीट किया, इसमें राज कपूर को नरगिस को थप्पड़ मारते हुए दिखाया गया है। रंगोली ने दावा किया कि क्यूंकि संदीप रेड्डी दक्षिण भारत से हैं, इसलिए कबीर सिंह के खिलाफ नाराज़गी चयनात्मक थी। निश्चित रूप से ऐसा नहीं है। यह कहना गलत नहीं होगा कि राज कपूर की फिल्म एक ऐसे युग में आई थी, जहां इस तरह के मुद्दों के बारे में जागरूकता दुर्लभ थी, और सोशल मीडिया भी मौजूद नहीं था। जब से नारीवाद और संबंधित विषयों के बारे में जागरूकता आई है, भारतीय सिनेमा के कुछ खास पैटर्न्स की लगातार आलोचना हुई है, फिर चाहे फिल्म देश की किसी भी भाषा में क्यों ना हो।
आलिया भट्ट को एक बार फिर नीचा दिखाते हुए, रंगोली यह भी दावा किया कि फिल्म ‘गली बॉय’ में उनका किरदार ‘सफ़ीना’, कबीर सिंह से भी ज्यादा हिंसक और अपमानजनक है। हमें इस बात को पूरी तरह समझना चाहिए कि जहां एक ओर ‘सफ़ीना’ के किरदार का कोई भी सौंदर्यकरण नहीं किया गया और इसे किरदार की कमज़ोरी दिखाया, वहीं दूसरी ओर, कबीर सिंह की हिंसा और शराबबंदी को, अपमानजनक व्यवहार नहीं, बल्कि ‘भावुक प्रेम’ के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
उदार नारीवादी और नारीवादी कारणों की लगातार काट-छाँट में, कंगना रनौत और उनकी बहन, बॉलीवुड में गलतफहमी और सेक्सवाद के ध्वजवाहक बन गई हैं। कुछ समय पहले, इन सब मुद्दों की ही वे आलोचना करती थीं।
हॉलीवुड फिल्म ‘द डार्क नाइट’ की एक पंक्ति दिमाग में आती है, ‘यू ईदर डाई अ हीरो, और लिव लॉन्ग इनफ टू सी योरसेल्फ बिकम अ विलन’ अर्थात, ‘आप या तो नायक मरें, या खुद को खलनायक के रूप में देखने के लिए लंबे समय तक जीवित रहें।’ ऐसा लगता है कि, अन्याय के खिलाफ लड़ाई में, कंगना ने अपना रास्ता खो दिया और नाम मात्र की फ़ेमिनिस्ट बन गयी हैं।
मूलचित्र : YouTube
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