कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

यह सही था या गलत पता नहीं, पर थीं ख्वाइशें अपनी-अपनी

हम वापस आ गए, पर समझ नहीं आ रहा था, यह सही था या गलत। हाँ, यह ज़रूर समझ आ रहा था कि दोनों की ख्वाइशें पूरी हो गई थीं।

हम वापस आ गए, पर समझ नहीं आ रहा था, यह सही था या गलत। हाँ, यह ज़रूर समझ आ रहा था कि दोनों की ख्वाइशें पूरी हो गई थीं।

कुछ दिन पहले गर्मियों की छुट्टियों में मायके गई हुई थी। तब आस-पड़ोस, रिश्तेदारों की बातें होने लगीं।

मैंने पापा से पूछा कि रमेश अंकल कैसे हैं? उनका परिवार कैसा है? तब मम्मी ने बताया कि उनका बेटा जो इंजीनियरिंग कर रहा था, वह नहीं रहा। यह बहुत बड़ा झटका था क्योंकि वह हमारे साथ ही बड़ा हुआ। अंकल जी के दो बेटे थे एक जो नहीं रहा और एक बेटा जिसकी मानसिक स्थिति अपनी उम्र से चार साल छोटे बच्चे की थी।

उसकी तरफ से अंकल-आंटी हमेशा परेशान दिखते थे। वह अपना सब काम कर लेता था, सबको पहचान लेता था पर तब भी बिजनेस या सर्विस करने लायक नहीं था तब। धीरे-धीरे थोड़ी समझदारी आ रही थी। एक आशा की किरण थी कि शायद चार साल के बाद वह सब समझने लगेगा। यह सब बातें एकदम आंखों के सामने आ गईं।

तभी पापा ने बताया कि उनकी छोटे लड़के की शादी है। यह बहुत अचंभे वाली स्थिति थी कि उसकी शादी कैसे कर सकते हैं? भले ही उस बात को चार-पांच साल हो गए। वह थोड़ा समझदार भी हो गया होगा। मन में बहुत उथल-पुथल थी और अंकल ने बहुत बार फोन पर भी कह दिया कि बेटी को साथ ही लाना है। ना जाने का कोई सवाल ही नहीं था।

पहले अंकल जी ने बताया, जब पापा-मम्मी मिलने गए थे कि उन्हें चिंता थी कि राजन को कौन संभालेगा, ‘हम दोनों की भी एक उम्र हो चली है और आगे का कोई भरोसा नहीं। रिश्तेदार भी कोई ऐसा नहीं है जो दुःख-सुख में साथ देता हो। इसलिए हमने एक अपने गांव की गरीब परिवार की एक लड़की  पसंद की है। उनके घर में थोड़ी सी ज़मीन गिरवी भी थी जिसके पैसे ना देने की वजह से अब उनकी जमीन भी नहीं घर की। घर में खाने के लिए कुछ भी नहीं था। हम लोग उनके पास गए और उन्हें अपने बेटे की स्थिति के बारे में अवगत कराया और उन्हें सोचने का समय दिया। हमने बताया कि हमें एक ऐसी बहू की ज़रुरत है, जो राजन को संभाल सके और हम आधी जायदाद उस लड़की के नाम कर देंगे। जिससे ऐसा न लगे कि हम उसको सम्मान नहीं दे रहे। हम उसे बेटी की तरह रखेगें। कुछ दिनो में उनका उत्तर हाँ में आया और अब सात महीने बाद उसकी शादी है।’

मैं भी बहुत अचंभे में थी। ऐसा! ऐसा कैसे कर सकते हैं? किसी एक गरीब लड़की के लिए इतना बड़ा निर्णय? कैसे उसने सोचा होगा? और कैसे उसने हाँ करी होगी?

अंकल बहुत पैसे वाले थे, ज़मीन-जायदाद बहुत थी। जब हम शादी में पहुँचे, तब लड़की और लड़की के पिता बहुत खुश नज़र आ रहे थे और इधर अंकल-आंटी का परिवार भी बहुत खुश था। बस उन्हें अफसोस था कि उनका बड़ा बेटा अब साथ नहीं था। हम उनको बधाई देकर वापस आ गए।

कुछ दिन  बाद अंकल के परिवार को हमने घर पर बुलाया। शादी में अच्छे से बात नहीं हो पाई थी।वो पहुंचे तो मुझे बहुत उत्सुकता थी उस लड़की से बात करने की। क्यों उसने ऐसा किया? किचन में खाना बनाने वाली लगी हुई थी जो कि चाय बना रही थी, और राजन की पत्नी मेरे साथ नाश्ता लगाने के लिए रसोई में आ गई।

मैंने उससे पूछा, ‘तुमने अपनी मर्ज़ी से शादी करी है क्या?’

यह प्रश्न सुन कर वह मुस्कुराई और बोली, ‘दीदी मुझे इससे अच्छा ससुराल तो नहीं मिलता। माँ नहीं थी और यहां मुझे सासु माँ ने पहली बार ही अपनेपन का एहसास कराया। शादी के बाद भी बहुत ज़्यादा प्यार दिया। बेटी बना कर रखा हुआ है। राजन समझते सब हैं और शायद और तीन-चार  सालों में वह एक अच्छे पति और बेटे साबित होंगे। हम लोगों को तो खाने के लिए भी पैसे नहीं थे। बहुत मुश्किल से गुज़ारा होता था और मेरे पिता और हमें क्या चाहिए? एक अच्छा परिवार जो बहुत प्यार करने वाला हो।’

‘मेरे साथ मेरे  मेरे पापा को भी अपनाया। मेरे साथ इसी घर में रहते हैं। मेरे पापा मेरे आँखों के सामने हैं और राजन जी उनकी बहुत इज़्ज़त करते हैं। राजन अब बिल्कुल सही हो रहे हैं। बोलने में थोड़ा सा टाइम लगता है, पर मेरे लिए वह मेरे पति ही हैं और आप इसकी चिंता नहीं करो। मैं बहुत खुश हूँ। इससे अच्छी ससुराल नहीं मिल सकती थी और मैंने भी सबको दिल से अपनाया है।’

जब मैंने आंटी से बात करी तो आंटी फूली नहीं समा रही थीं। उन्हें एक बहु एक बेटी के रूप में मिल गई थी और वह बिल्कुल निश्चिंत हैं। अपनी सारी जायदाद आदि ज़्यादातर उसके नाम करके उन्हें लग रहा था, ‘हम रहें ना रहें, पर वह हमारा, घर और राजन को अच्छे से संभाल लेगी।’

हम अच्छे से बातें करके वापस आ रहे थे, तब समझ नहीं आ रहा था, यह सही था या गलत, पर यह ज़रूर समझ में आ रहा था कि दोनों की अपनी-अपनी ख्वाइशें पूरी हो गई थीं। लड़की और लड़की के पिता को एक घर परिवार प्यार करने वाला, मान-सम्मान देने वाला अमीर परिवार मिल गया था और लड़के के परिवार को एक बेटी जो कि उसके परिवार और उनके बेटे का ध्यान रखने के लिए घर में थी।

आप यह ब्लॉग पढ़ कर क्या महसूस कर रहे हैं? अपने विचार ज़रूर साझा करें।

मूलचित्र :  Pexel

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

28 Posts | 176,056 Views
All Categories