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माँ बन कर जाना, मेरी दुनिया मेरे बच्चे

उस समय मानो सब कुछ मिल गया, खुशी के दो आंसू निकल पड़े। समय निकलता गया। मेरे बच्चे के साथ मेरा रिश्ता भी बनता रहा।

उस समय मानो सब कुछ मिल गया, खुशी के दो आंसू निकल पड़े। समय निकलता गया। मेरे बच्चे के साथ मेरा रिश्ता भी बनता रहा।

कितने रिश्ते हैं, माँ और पिता, भाई-बहन, चाचा-चाची,  मामा-मामी, मौसी-मौसा, बुआ-फूफा, भतीजा-भतीजी और ना जाने कितने। इन रिश्तों के इर्द-गिर्द घूमती रहती है हमारी जिंदगी।

संयुक्त परिवार में रहकर रिश्तों की अच्छी-खासी अहमियत पता है। शादी के बाद नए रिश्ते भी बन गए। सास, ससुर, देवर, ननद और पतिदेव के साथ नई जिंदगी बहुत सुंदर है।

शादी के कई सालों के बाद अब मैं माँ बनने वाली हूँ, इसका अहसास मुझे मेरे पहले अल्ट्रा-साउंड कराते समय हुआ, जब डॉक्टर ने मेरे बच्चे की धड़कन को सुनाया। उस समय मानो सब कुछ मिल गया, खुशी के दो आंसू निकल पड़े। समय निकलता गया। मेरे बच्चे के साथ मेरा रिश्ता भी बनता रहा।

‘आज ऑपरेशन करना होगा’, डॉक्टर ने बोला। मन में डर था कि क्या होगा।

सब कुछ ठीक से हो गया। अब मैं माँ हूँ, एक सुंदर सी बेटी की। जो माँगा था भगवान ने वही मुझे दिया है। शरीर से निढाल हो गई हूं, लेकिन उसके रोते ही आंख खुल जाती है। उसके पहले स्पर्श से ही हजारों लहरें उठने लगीं।

मन करता है, ऐसे ही इसे देखती रहूँ। जिसने मुझे दुनिया के सबसे हसीन रिश्ते, ‘माँ और बच्चें’ का  अटूट रिश्ता, जिसमें सिर्फ और सिर्फ प्यार है, उस रिश्ते से मिलवाया है।

अब मेरी बिटिया रानी को सब लोग देखने आ रहे हैं, ‘कैसी है?’ ‘किसकी तरह दिखती है?’ ‘यह तो बहुत शैतान है, अजीब-अजीब तरह के मुँह बना-बना के रो रही है, सबको हंसी आ रही है।”

मैं बेड पर लेटे हुए देख रही हूं कि कैसे मेरी लाडो इन लोगों को देखकर, उन की नकल कर रही है। वो सब ये जान नहीं पा रहे थे।

रात को उसका बार-बार उठना, रोना, फिर सोना, दूध के लिए रोना बहुत अच्छा लग रहा है। कभी-कभी मन करता है कि इसे जान-बूझकर रोने दूँ, फिर वह माँ-माँ करके रोएगी तो बहुत मज़ा आता है कि कोई मुझे ‘माँ’ कहकर पुकार रहा है। इसी तरह समय बीत जाता है। अपने बाल-गोपाल, चाहे बेटी हो या बेटा, उसके साथ समय का पता नहीं चलता।

धीरे-धीरे उसका दाँत निकालना, जो चीज़ मिल जाए वही मुँह में डाल देना। एक बार तो ऐसा हुआ कि मेरी बेटी ने डायपर पहन रखा था और चाकलेट खा रही थी। तभी इसके पापा आ गए, उन्हें लगा कि मैंने उसका ध्यान नहीं रखा और उसने अपनी पॉटी खा ली। अब वह मुझे गुस्सा करने लगे। जब पता चला कि वह पॉटी नहीं चाकलेट खा रही है, तो उनका और मेरा हँस-हँस कर बुरा हाल हो गया। उस दिन मज़ा ही आ गया। आज भी सोचती हूँ तो हँसी आ जाती है।

बच्चे भी कैसे होते हैं। कभी लगते हैं बहुत सीधे-सादे, कभी चालाक, कभी बातूनी, कभी कुछ भी न बोलने वाले! इनको तो सिर्फ इनकी माँ ही समझ पाती है।

माँ बनने के बाद रोज़ कुछ-कुछ ऐसा हो ही जाता है कि ये पल बहुत मज़ेदार है। कुछ मज़ेदार पलों को तो हम तस्वीरों और वीडियो के रूप में सहेजकर अपने पास रख लेते हैं। सबके साथ फेसबुक और व्हाट्सऐप पर शेयर भी कर लेते हैं। और जब आपके नौनिहाल बड़े हो जाते हैं, तब आप इन्हे दिखाएँ कि बचपन में ये कैसी-कैसी शरारत करते थे। इनकी वही शरारत, हमारे लिए कभी मुसीबत, तो कभी मज़ेदार पल बन कर रह जाती है।

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मूलचित्र : Pixabay 

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