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गर चंद छींटे लहू के पड़े दामन पर तेरे, नम ना करना इन पलकों को तू, स्पर्श कर तेरे चरणों को, अमर हो जाने देना मेरे लहू को तू।
यह धरती
आन है मेरी
शान है मेरी
इससे है पहचान मेरी
भारत माँ के कदमों में है
न्योछावर जान मेरी
मैं हूँ इस देश की पहरेदार
सोचकर करना इस पर एक भी वार
क्योंकि मैं भी हूँ तैयार
बाँध सर पर कफ़न
भर दिल में सरफ़रोशी की तमन्ना
लिए हाथ में आज़ादी की मशाल
दौड़ रहा रगों में इंकलाब
बोल रहा लहू का हर कतरा-कतरा
भारत माँ की कसम
सांसों के अंतिम छोर तक
ना मानूंगा हार
मौत से क्या डराएगा मुझे
मौत की महफ़िल में ज़िंदगी को है दी पनाह मैंने
इस जंग के मैदान में
मौत भी आए बीच में तो
हंसकर उससे भी लड़ जाऊंगा
पर तेरे आँचल में दाग़ ना आने दूंगा
हाँ गर चंद छींटे लहू के पड़े दामन पर तेरे
नम ना करना इन पलकों को तू
स्पर्श कर तेरे चरणों को
अमर हो जाने देना मेरे लहू को तू
भूल कर भी पोंछना ना इन्हें
एक टीका लगा मेरे माथे पर वीरगति का
बाकी का कर लेना तू शृंगार
सालों तक
मिसाल देंगी ये लहू की बूंदें
तेरी कोख़ से जन्म लिए थे शेरों ने कई
तेरी कोख से जन्म लिए थे वीरों ने कई
मूलचित्र : Unsplash
Founder of 'Soch aur Saaj' | An awarded Poet | A featured Podcaster | Author of 'Be Wild Again' and 'Alfaaz - Chand shabdon ki gahrai' Rashmi Jain is an explorer by heart who has started on a voyage read more...
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