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क्यों बच्चों को बिगाड़ने में हमेशा माँ का हाथ होता है, पिता का नहीं?

आज भी बच्चों की परवरिश में माँ का योगदान ज़्यादा रहता है। बच्चों को बिगाड़ने और सँवारने में जितना माँ का योगदान है, उतना ही पिता का भी फ़र्ज़ होना चाहिये।

आज भी बच्चों की परवरिश में माँ का योगदान ज़्यादा रहता है। बच्चों को बिगाड़ने और सँवारने में जितना माँ का योगदान है, उतना ही पिता का भी फ़र्ज़ होना चाहिये।

‘अरे, सीमा सुनती हो! देखो गोलू ने पॉटी कर दी’, रवि ने चिल्लाते हुए कहा। ‘सीमा आकर साफ़ करो, इसे देखो कितना गंदा हो गया है यह।’

सीमा ने गोलू को गोदी में उठा लिया और अपने साथ ले गई। थोड़ी देर बाद उनकी बेटी नर्मदा दौड़ती हुई आई और बोली, ‘पापा देखो आज मुझे ‘रंग भरो प्रतियोगिता’ में प्रथम स्थान मिला है। मैडम ने मुझे ये पुरस्कार दिया है और मेरे लिए पूरी क्लास ने तालियां भी बजाईं।’

‘वाह! मेरी बेटी ने तो कमाल के दिया’, रवि ने खुश होकर कहा

सीमा भी सुनकर खुश हो गई। तभी उसकी सासु-माँ बोल पड़ी, ‘और क्या! अपने पापा पर गई। जैसा बाप वैसी बेटी। बहुत अच्छा है, जीती रहो लाडो। अपने पिता की तरह तुम्हें भी अच्छी नौकरी और घर मिले। सभी तुम्हें पसंद करें।’

सीमा सब सुनकर चुप थी। अपनी बेटी के साथ वह अंदर चली गयी।

सीमा पढ़ी-लिखी नहीं है लेकिन परिवार में सबके साथ अच्छे सम्बन्ध हैं। उसके संस्कार, व्यवहार, बोल-चाल से सब प्रभावित थे। सीमा परिवार में सबका सम्मान करती थी। इसलिए चुपचाप सब सुन लिया।

‘आंखे बंद करके चलती है। देखो क्या कर डाला! इसकी माँ ने कुछ सिखाया भी है इसको?’ 

कुछ दिन बाद गोलू का जन्मदिन था। तभी शाम के समय घर में बच्चों, रिश्तेदारों, पड़ोसियों का जमावड़ा लगा हुआ था। सब खुशी के साथ केक काटने की तैयारी कर रहे थे। तभी नर्मदा भागते हुए आई और गलती से वहां रखे केक से टकरा गई और केक नीचे गिर गया।

इससे पहले कि सीमा कुछ कहती, उसकी सास ने बोलना शुरु कर दिया, ‘अंधी हो गई यह लड़की? कुछ आता नहीं है इसे, जब देखो भागना। आंखे बंद करके चलती है। देखो क्या कर डाला! इसकी माँ ने कुछ सिखाया भी है इसको? लाज शर्म सब बेच दी है। अपनी माँ पर गई अनपढ़-गंवार।’

आए हुए सभी मेहमान सुन रहे थे। नर्मदा डरी सहमी सी वहीं खड़ी थी। सीमा आँखों में आंसू लिए अपनी बेटी के साथ वहाँ से चली गयी।

आप ही बताओ दोस्तो, बच्चों के अच्छे बुरे कर्मों का कारण माँ को क्यों माना जाता है? ये कहाँ का इंसाफ है कि जब कोई बच्चा अच्छा काम करे, तो पिता ने कितना अच्छा सिखाया है। वहीं बच्चा जब कोई गलती करे, तो सारा दोष माँ के सिर डाल दिया जाता है। ऐसा क्यों करते हैं लोग?

पिता और माता दोनों साथ मिलकर बच्चे की परवरिश करते हैं। अपने बच्चों की देखभाल करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। एक बार को माना कि माँ बच्चों की पहली गुरु होती है, लेकिन बच्चों के सभी बुरे कर्मों की जिम्मेदारी माँ को ही क्यों दी जाती है? इन सब के पीछे, बच्चों को बिगाड़ने में क्या माँ का हाथ होता है?

पिता इसका ज़िम्मेवार क्यों नहीं होता?

हमारे समाज में आज भी ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो माँ को ही ज़िम्मेदार मानते हैं। आज भी बच्चों की परवरिश में पिता से ज़्यादा माँ का योगदान रहता है। बच्चों को बिगाड़ने और सँवारने में जितना एक माँ का योगदान है, उतना ही पिता का भी फ़र्ज़ होना चाहिये।

आप सब क्या सोचते हैं इसके बारे में? आपकी क्या राय है?

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मूलचित्र : YouTube

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