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लोग हैं देखो कितने झगड़ते, सड़कों पर है लगी कतार, मटके-बाल्टी खाली पड़े हैं, लाइन लगा सड़कों पर पड़े हैं।
पानी का पहचानो मोल पानी होता है अनमोल इसको न तुम व्यर्थ बहाओ कम से कम पानी में नहाओ नदियां तालाब सूख रहे हैं झरने, झील बंद पड़े हैं हम गाड़ी को पानी से नहलाते स्विमिंग पूल में शान दिखाते बूंद-बूंद पानी को तरसते लोग हैं देखो कितने झगड़ते सड़कों पर है लगी कतार मटके-बाल्टी खाली पड़े हैं लाइन लगा सड़कों पर पड़े हैं प्यासे पक्षी उड़े उदास भटक रहे भुझाने प्यास पर हमको न हुआ अहसास पेड़ो को काटकर कर रहे विकास अब दिन वो आने वाला है पानी धरती से जाने वाला है बंजर धरती करे फरियाद न करो प्रकृति से खिलवाड़
मूलचित्र : Pixabay
13 वर्ष की उम्र से लेखन में सक्रिय , समाचार पत्रों में कविताएं कहानियां लेख लिखती हूँ। एक टॉप ब्लागर मोमस्प्रेसो , प्रतिलिपी, शीरोज, स्ट्रीमिरर और पेड ब्लॉगर, कैसियो, बेबी डव, मदर स्पर्श, और न्यूट्रा लाइट जैसे ब्रांड्स के साथ स्पांसर ब्लॉग लिखती हूँ मेरी कहानियां समाज में फैली कुरीतियों को दूर करने के लिए होती है रिश्तों के उतार चढ़ाव मेरे ब्लॉग की मुख्य विशेषता है read more...
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