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ना हूँ मैं अगर यूँ खिली-खिली तो हाल क्या हो इन दरख्तों का! खुश हूँ मैं ना जानकर सारे जवाब, पूछना चाहती नहीं मैं कोई भी सवाल।
हाँ मैं स्त्री हूँ!
कभी गुलाब के फूल सी सुर्ख लाल खिली-खिली सी, चारों तरफ अपनी हंसी की लालिमा बिखेरती हुई,
तो कभी रात की रानी की चांदनी सी आभा लिए हुए अपनी शर्मीली सी मुस्कान अपने अंदर ही समेटे हुए।
कभी पिया मिलन के एहसास से आनंदित अपने आपको आइने में खुद ही निहारती हुई,
तो कभी बच्चे के साथ बच्चा बनकर कहीं बगीचे के कोने में छुपती हुई।
कितने सवालों और जवाबों से भरी, कितने जज़्बातों को अपने अंदर समेटे हुए,
मर्द के लिए कभी प्रेमिका, कभी दोस्त तो कभी माँ का किरदार निभाते हुए।
मैंने निभाए अपने सभी किरदार पूरी ईमानदारी से,
पर क्या मेरी भावनाओं को मिला उचित सम्मान हर उस रिश्ते से?
क्या दिया सभी ने प्यार उतनी ही शिद्दत से जैसे मैं निभाती हूं हर रिश्ता पूरे समर्पण से?
कुछ निरुत्तर प्रश्नों को साथ लिए, चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान लिए,
जिए जा रही हूँ ये ज़िंदगी हर दिन एक नई आस लिए।
जानती हूँ जीवन नाम है खुशी का, हँसी का, उम्मीदों का,
तभी तो भरे रखती हूँ मैं ये गागर हौसले की;
कि ये मेरी ऊर्जा ही स्त्रोत है तुम्हारे सभी बसंतों का,
ना हूँ मैं अगर यूँ खिली-खिली तो हाल क्या हो इन दरख्तों का!
शायद खुश हूँ मैं ना जानकर ये सारे जवाब,
पूछना चाहती भी नहीं मैं अब कोई भी सवाल,
क्यूंकि खुश हूँ मैं सबको खुश देख कर!
विधाता ने रचा ही है मुझे ये गुण भेज कर!
शायद इसीलिए, स्त्री हूँ मैं! उस ब्रह्मांड रचियता की सबसे रहस्यमयी कृति हूँ मैं।
मूलचित्र : Pexel
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