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हिसाब के अनुसार उसके पास महीने भर के खर्चे निकालने के बाद केवल तीन हज़ार रुपये ही बचते हैं, यह भी खर्च हो गए तो, पूरा महीना और खाली बटुआ।
रोज के दिनों की अपेक्षा दीपा आज ज़्यादा खुश है, क्योंकि आज उसका सैलेरी डे है। रोज़ की खींचा-तानी के बदले, आज बटुआ भरा-भरा रहेगा। मगर अगले ही पल उसका चेहरा उदासी से भर गया जब उसे याद आया कि कितनी देर यह पैसे उसके हैं, शायद ज़्यादा से ज़्यादा दो दिन?
उसने हिसाब बनाना शुरू किया। किराया, किराना, ऑटो का पैसा, स्कूल फीस, दूध का हिसाब, बच्चों की फीस, दवाइयां, पेपर, केबल, बिजली बिल, मोबाइल बिल, स्कूटी का ईएमआई। चाहे इन सब को भरने के बाद उसके पास ज़्यादा कुछ नहीं बचेगा, फिर भी वो खुश थी कि इन सब वस्तुओं का उपभोग भी तो वह और उसका परिवार ही कर रहे हैं। आखिर इंसान कमाता ही क्यों है? तभी मोबाइल में सैलरी का मैसेज आया। शाम होते ही ऑफिस से घर की ओर निकली। रास्ते में उसे टॉय-शॉप दिखी तो बबलू का मासूम चेहरा उसकी आँखों के सामने आ गया। कब से कह रहा था, ‘मुझे स्केट्स चाहियें।’
उसके हिसाब के अनुसार उसके पास महीने भर के खर्चे निकालने के बाद केवल ₹3000 ही बचते हैं, यदि यह भी खर्च हो गए, तो वह पूरा महीना खाली बटुआ लेकर कैसे निभा पाएगी। वह आगे निकल गई। फिर, कुछ सोच कर वह तेज़ कदमों से वापस मुड़ी और टॉय-शॉप में जाते ही 1200 रुपए के स्केट्स खरीद लिए।
आज घर लौटते समय वह अपने बच्चे से आंखें नहीं चुराएगी, बल्कि उसका एक सपना पूरा करेगी।उसे बहुत खुशी हो रही थी कि मैं केवल ज़रुरत नहीं पूरी करती बल्कि सपने भी पूरे करती हूँ। अब उसे महीने भर अपना तन्हा बटुआ उतना बुरा नहीं लगेगा।
मूलचित्र : Pixabay
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