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जीवन साथी अगर रसोई में भी साथी बन जाए तो…बात बन जाए!

जिसने अपने घर में कभी रसोईघर में कदम न रखा हो, उसे पहली ही बार में बीस लोगों के लिए खाना बनाने को कहा जाए, तो सोचिए उसका क्या हाल होगा!

जिसने अपने घर में कभी रसोईघर में कदम न रखा हो, उसे पहली ही बार में बीस लोगों के लिए खाना बनाने को कहा जाए, तो सोचिए उसका क्या हाल होगा!

माया का आज रसोई में पहला दिन था। माया के ससुराल के अधिकतर लोग उसी शहर में रहते थे। आशा जी ने सबको दोपहर के खाने पर बुला रखा था। सुबह ही आशा जी ने माया से पूछा, “बहू तुम आज खाने में क्या-क्या बनाओगी? क्योंकि बीस लोग तो हो ही जाएंगे।” इतना सुनते ही माया की चेहरे पर हवाईयां उड़ने लगी।

‘जिसने अपने घर में कभी रसोईघर में कदम न रखा हो, उसे पहली ही बार में बीस लोगों के लिए खाना बनाने को कहा जाए, तो सोचिए उसका क्या हाल होगा!’

माया जैसे ही ये बोलने गई, सास उसकी बात काटते हुए बोली, “वैसे कुछ खास नहीं बनाना है, छोले-पूरी, पुलाव-दाल और दो तरह की सब्जी, एक सूखी और एक रसदार और हां, मीठे में खीर या तुम्हें कोई और रेसिपी आती हो तो वो बना लेना। चलो-चलो! मुझे और भी बहुत सारी तैयारियां करनी है।”इतना कहकर वो चली गई।

माया के हाथ-पांव फूलने लगे, उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। किससे मदद मांगे? क्या करें? जल्दी से पति को इशारे से बुलाया और उन्हें सारी बात बताई!

रवि भी माया की बात सुनकर बोला, “तुम्हें खाना बनाना नहीं आता! ये बात तुम्हें पहले बतानी चाहिए थी ना! कल तो तुम सिर्फ माँ की हाँ में हाँ मिला रही थी।”

तभी माया की सास वहां आई और बोला बेटा, “मैं रिश्तेदारों के लिए कुछ उपहार लेने जा रही हूं, न जाने कैसे ये बात भूल गई कि बड़ों के पांव पूजने होंगे? मैं बाज़ार से वो सब सामान लेकर आती हूं।”

“अरे मां, आप मुझे बताइए मैं ले आता हूं। आप नाहक परेशान होंगी”, रवि ने कहा।

“तुझे ही भेजती, लेकिन तुझे तो इन सब चीजों की समझ नहीं है ना! मैं अपने हिसाब से ले आऊंगी। तू बहू के पास ही रूक।”

माँ के जाते ही रवि ने कहा, “तुम्हें एक राज़ की बात बताऊं?”

माया ने कहा, “राज की बात! अरे हाँ-हाँ बताइए, नेकी और पूछ-पूछ!”

रवि ने कहा, “मुझे ये सारी रेसिपी बनानी आती है।”

माया चौंकते हुए बोली, “क्या? आपको खाना बनाना आता है! अरे वाह! लेकिन आपने कब सीखा?”

“माया, मैं दसवीं कक्षा के बाद घर से बाहर ही रहा हूँ, तो अपने लिए खाना बनाते-बनाते, पूरा खाना बनाना सीख गया। चलो फिर! आज हम दोनों मिलकर खाना बनाते हैं।” रवि और माया ने मिलकर सारा खाना तैयार कर लिया।

आशा जी ने जैसे ही घर में प्रवेश किया, इलाइची और गर्म मसाले की खुशबू से सारा घर महक रहा था। मन ही मन खुश हुई कि बहू के रूप में उन्हें साक्षात अन्नपूर्णा मिली है। रसोईघर में गई तो माया खीर बना रही थी। उन्होंने पूछा, “अरे वाह! बहू तुमने क्या-क्या बना लिया? बहु, खाने की बड़ी अच्छी खुशबू आ रही है।”

माया ने जवाब में कहा, “मांजी, छोले, पुलाव, दाल और सब्जी बन गई है, आटा लगा लिया है और खीर बना रही हूं। जब सब खाने पर बैठेंगे तो गर्म-गर्म पूरी निकाल दूंगी।” आशा ने खुश होकर माया की बलाएं ले ली।

बारह बजते ही सब रिश्तेदार आने लगे, कुछ देर की बातचीत के बाद सभी खाने की टेबल पर बैठ गए। माया ने सबको खाना परोसना शुरू किया। सबने बहू के खाने की तारीफ की और नेग और आशीर्वाद देकर चले गए।

उनके जाने के बाद, माया ने मांजी और रवि को भी खाना परोसा। खाना खाने के बाद आशा ने शगुन के तौर पर माया को पायल दिया और पास ही बैठे बेटे से कहा, “सब्जी और छोले बहुत अच्छी बनाई है तुमने।” दोनों पति-पत्नी शरमाते हुए एक-दूसरे की ओर देखने लगे।

आशा ने कहा, “इसमें शर्माने की बात नहीं बेटा! पति-पत्नी का रिश्ता ऐसा ही होना चाहिए। जीवन साथी, दीया और बाती की तरह होते है, हर परिस्थिति में एक-दूसरे का साथ देना ही तुम दोनों के रिश्ते को और भी मजबूत बनाएगा। मेरा आशिर्वाद है, भगवान तुम दोनों का जोड़ी ऐसे ही बनाए रखें।”

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मूल चित्र : Canva

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Pragati Tripathi

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