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वो भी एक माँ हैं, लेकिन सिर्फ बेटों की। तभी उन्हें ये पता कि एक माँ की कोख बेटा बेटी में कोई फर्क नहीं करती। क्या बेटे को पैदा करने में ज़्यादा कष्ट होता है?
‘अरे रीना बहू सुनती हो!’
‘हाँ जी माँ जी बोलिये!’
रीना को अहोई व्रत की तैयारी करते देख उसकी सास बोली, ‘रीना तू क्यों व्रत करेगी?’
‘क्यों माँ जी?’ रीना ने अपनी सास की तरफ देखकर अचंभे से पूछा।
वह बोली, ‘देख भगवान ने तुझे माँ तो बना दिया, लेकिन अभी बेटा नहीं दिया है।’
‘तेरे जुड़वा लाली हैं। लाला नहीं आयो ना, अभी इस कारण से व्रत नहीं करना। पड़ोस की लुगाइयां भी बता रही थीं कि यह व्रत तो लड़के वाली माँ को ही करना चाहिए।’
रीना चुपचाप बिना कुछ बोले वहां से चली गई, लेकिन सोच रही थी, देश जब ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ के साथ आगे बढ़ रहा है, तब भी आज हमारे समाज में ऐसी कई औरतें हैं, जो आज भी पुरानी विचारधारा, समाज की पुरानी परम्पराओं से प्रभावित हैं। उनमें मेरी सास भी एक हैं।
वो भी एक माँ हैं, लेकिन शायद सिर्फ बेटों की। तभी उन्हें ये पता नहीं है कि एक माँ की कोख बेटा बेटी में कोई फर्क नहीं करती। क्या बेटे को पैदा करने में ज़्यादा कष्ट होता है और बेटी के समय नहीं? क्या बेटे ज़्यादा दूध पीते हैं बेटी कम? क्या दोनों को परवरिश में माँ कोई कमी रखती है? आज के समय दोनों में कोई अंतर नही है।
पहले सिर्फ एक संस्कार के लिए ही बेटे पैदा किए जाते थे, वो है अंतिम संस्कार। लेकिन आज की बेटियों ने उस संस्कार का निर्वाह करना भी शुरू कर दिया। तुम्हारे मरने के बाद बेटी पिंड दान और श्राद्ध भी कर देगी। पर ये सब बातें इन औरतों को कौन समझाए?
रीना ने उन औरतों की बात नहीं मानी। रीना ने व्रत करने का सोच लिया, अपनी प्यारी सी बेटियों के लिए।लेकिन अगले दिन सुबह रीना ने बिना कुछ बोले ही व्रत की तैयारी शुरू कर दी और उसकी सास मुंह बना कर उसे घूर रही थीं।
आप सबके साथ भी ऐसा हुआ हो तो, आप कॉमेंट बॉक्स में ज़रूर बताएं।
मूल चित्र : Google
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