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हम सब उन्हें टॉफी वाली नानी कहकर बुलाते थे। वो रोज़ आतीं, अपनी छोटी सी लाठी के सहारे, झुकी हुई कमर, लेकिन उनके चेहरे की चमक आज भी याद है।
बचपन के दिन भुला ना देना, आज हँसे कल भुला ना देना….
ये गाने की लाइन बहुत सुंदर है, बिल्कुल सटीक, अपने बचपन की यादों को ताज़ा करने के लिए।
मुझे आज भी बहुत अच्छे से याद है। गर्मियों की छुट्टियों में हम सब भाई-बहन मामा जी के घर, घरौंडा जाते थे। सब मोहल्ले के बच्चों के साथ हमारी जान पहचान थी।
वह सब भी हमारा इंतज़ार बेसब्री से करते थे। कुछ अपनी नानी के घर जाते तो कुछ आते थे। लेकिन हमारे खेल-कूद सुबह से देर रात तक चलते थे। जब तक मामा जी आ कर दो डांट ना लगा दें, तब तक खेलना। फिर रात को ठंडी-ठंडी कुल्फी खाना।
देर रात तक, घर के बाहर बैठ कर गप्पे मारना, वो खेल जो हमें सिर्फ गाँवों में ही मिलते हैं, जैसे चोर-सिपाही, गिल्ली-डंडा, छुपम-छुपाई, सांप-सीढ़ी, सतोलिया, और शाम के समय हम सब बच्चों का नाच-गाने का प्रोगाम।
इन सब के साथ हमारी दूर के रिश्ते की नानी, जो रोज़ शाम को अपनी जेब में टॉफियां लेकर आती थीं, संतरे के रस वाली खट्टी-मीठी टॉफी। हम सब उन्हें टॉफी वाली नानी कहकर बुलाते थे। वो रोज़ आतीं, अपनी छोटी सी लाठी के सहारे, झुकी हुई कमर, लेकिन उनके चेहरे की चमक आज भी याद है।
हम सब बच्चे उनको घेर लेते, सबको टॉफी मिलती, जितनी नानी देना चाहे। ये सब करने में हमें बहुत अच्छा लगता था। कभी नानी नहीं आतीं तो हम सब उदास हो जाते, ‘क्या हुआ होगा, नानी आज क्यों नहीं आईं?’
नानी जी हम बच्चों की जान थीं।
आज भी हम जब भी मामा जी के घर जाते हैं, सब मिलते हैं, वही मोहल्ला, वही बच्चे, जो अब बड़े हो गए, हमारी ही तरह…
लेकिन, टॉफी वाली नानी नहीं मिलती।
उनकी बहुत याद आती है…
दोस्तों, आपके बचपन में भी ऐसा कोई व्यक्ति था जो अब भी आपको याद आता हो तो ज़रूर बतायें।
मूल चित्र : Unsplash
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