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दुर्गा पूजा के बारे में दिल्ली में रहते हुए सुना तो बहुत था। कभी-कभी पास की बंगाली कम्युनिटी में जाकर उत्सव देखा भी था, पर कभी दिल के इतने करीब नहीं था।
साल के इस वक़्त घर की बहुत याद आती है। पतझड़ बोलो या शरद ऋतु का प्रारंभ, पत्ते रंग बदल रहे हैं, हवा में एक अजीब सी ठण्डक महसूस होती है। दिन छोटे होने लगे हैं, शाम होते-होते ही अँधेरा छाने लगता है। कदमों की चाल जानो बढ़ जाती है, घर की ओर जल्दी से पहुंचने को। इंडिया बोलो या अमेरिका, सब जगह साल का ये वक़्त त्योहारों का होता है, कहीं दुर्गा पूजा और दिवाली की धूम है, तो कहीं क्रिसमस कीलाइटिंग। दिवाली हमेशा से ही भारत का सबसे प्रसिद्ध त्यौहार रहा है, इस की ख़ूबसूरती देखते ही बनती है।
शादी मेरी एक बंगाली परिवार में होने के बाद से, दिवाली का आगमन मानो एक महीने पहले से ही हो जाता है, यानि दुर्गा पूजा से। दुर्गा पूजा के बारे में दिल्ली में रहते हुए सुना तो बहुत था। कभी-कभी पास की बंगाली कम्युनिटी में जाकर उत्सव देखा भी था, पर कभी दिल के इतने करीब नहीं था।
शादी के बाद पहली दुर्गा पूजा पर मैं भारत में नहीं थी। देखा पतिदेव का मन बहुत उदास था। मैं भी ज़िंदगी में पहली बार घर से इतनी दूर गई थी। अभी परदेसी होना का भाव मन पर पूरी तरह हावी नहीं हुआ था, तो पति की भावनाओं को दिल से समझ नहीं पा रही थी। वक़्त गुज़रता गया और ये सिलसिला हर साल चलता रहा। दिल्ली की पड़ोस की दुर्गा पूजा, विदेश के एक छोटे से कम्युनिटी हॉल की दुर्गा पूजा में तब्दील हो गई। जगह बदल गई, पर जज़्बातों में अमूमन कोई ज़्यादा फर्क नहीं आया था।
फिर एक बार मैं और मेरे मिस्टर को दुर्गा पूजा के समय भारत जाने का मौका मिला। मेरे पति का उल्लास देखते ही बनता था। मैंने उनको इससे ज़्यादा खुश और उत्साहित कभी नहीं देखा था। मैं भी बहुत खुश थी, आफ्टर ऑल, ये क़ायदे से मेरी जग-विख्यात कलकत्ता की पहली दुर्गा पूजा थी।
दुर्गा पूजा कहने को तो चार दिन का त्यौहार होता है, पर इसका उत्साह साल भर देखने को मिलता है। दुर्गा पूजा से महीनों पहले पण्डाल बनने शुरू हो जाते हैं। गिफ्ट्स और शॉपिंग का सिलसिला महीनों पहले से ही शुरू हो जाता है। घरों की विशेष सफाई शुरू हो जाती है, पर्दे धोना, पंखें, कूलर, पानी की टंकी, घर के जंगले, एकदम डीप क्लीनिंग केएपिसोड्स चलते हैं। दुर्गा-पूजा के दिन जैसे-जैसे पास आने लगते हैं, बाज़ारों की रौनक बढ़ने लगती है। घरों पर रंग-बिरंगी लड़ियां झूलने लगती हैं। शुइली फूलों की सुगंध से सारा समाह महकने लगता है, कांश फूल भी मैदानों में झूलते नज़र आने लगते हैं।
हर बंगाली अड्डे की चर्चा का टॉपिक होता है कि इस बार दुर्गा ठाकुर किस वाहन से आएंगी, नौका, हाथी और घोड़ा। किसने कितनी और क्या-क्या शॉपिंग की, सब डिसकस होता है। किस पूजा समिति के क्लब की पूजा कीथीम क्या है। इस बार कौन-कौन से पण्डाल घूमा जाएगा, सबप्लानिंग की जाती है। किस दिनफॅमिली गेट टुगेदर और किस दिनफ्रेंड्स का अड्डा होगा, सब कुछ पहले से तय होता है।अख़बार में दुर्गा पूजा की शॉपिंग के स्पेशल विज्ञापन छपने लगते हैं। माँ दुर्गा, शिवजी, गणेश, कार्तिकेय, लक्ष्मी और सरस्वती को लेकर हंसी मज़ाक होते हैं। ऐसा सिर्फ भारत में ही संभव है, जहां भगवान को भी परिवार का दर्जा और सम्मान दिया जाता है।
फिर आता है महालया का दिन, औपचारिक रूप से दुर्गा पूजा का आगमन। सब लोग सुबह-सुबह नहा-धो कर महालया सुनने के लिए आतुर नज़र आते हैं। पहले महालया रेडियो पर सुना जाता था, फिर टीवी आ गया और आजकल तो सब लैपटॉप पर होता है। आखिरी मुहूर्त तक पूजा की तैयारी को फाइनल टच दिया जाता है।
फिर षष्ठी का दिन और उस दिन कोला बहू को गंगा घाट से स्नान करा के गणेश जी के साथ स्थापित किया जाता है और दुर्गा ठाकुर का घर में आगमन होता है। सुबह-सुबह नहा-धोकर घर की गृहणियाँ सब कमरों की चौखट पर अल्पना देती हैं। परिवार के सब लोग मंदिर में पुष्पांजलि देने जातें हैं। षष्ठी के दिन माओं का व्रत होता है, निरामिष खाना बनता है। इसी दिन चोखुदान होता है यानि माँ दुर्गा की प्रीतिमा पर आंखें आंक कर उन्हें पूजा के लिए पूर्ण किया जाता है और इसी दिन से सब पण्डाल दर्शन के लिए खोल दिए जातें हैं।
फिर अष्टमी के दिन फिर से निरामिष खाना और मंदिर में सब पुष्पांजलि देने जाते हैं और शाम को मंगल आरती होती है। नवमी के दिन मांगशो यानि मटन बनता है, अष्टमी रात १२ बजे से ही मटन की दुकान के सामने लाइन लगाने से ही काम बनता है, नहीं तो चिकन से ही काम चलाना पड़ता है। इस दौरान दोस्तों रिश्तेदारों का तो आना जाना लगा ही रहता है।
फिर आता है दशमी का दिन। ये बहुत ही मिश्रित भावनओं का दिन होता है, इस दिन कायदे से पूजा का अंतिम दिन होता है और इसी के साथ दुर्गा ठाकुर के जाने का वक़्त। सब सुहागनें दुर्गा ठाकुर को सिन्दूर लगा कर और मिष्ठी खिला कर, भीगी आंखों से विदाई देती हैं इस वादे के साथ कि अगले साल दुर्गा ठाकुर फिर से अपने चारों बच्चों यानि लक्ष्मी, सरस्वती, गणेश और कार्तिकेय के साथ आएँगी।
दुर्गा पूजा सिर्फ माँ दुर्गा का आगमन नहीं है, इस उत्सव को मनाने, देश-दुनिया से परिवार के सब लोग अपने-अपने घर जाने की कोशिश करते हैं और जो नहीं जा पाते, वो मन ही मन परिवार को याद करके उनके लिए मंगलकामना करते हैं।
दुर्गा पूजा के सही मायने सिर्फ उत्साह, ख़ुशी नहीं, बल्कि परिवार, मित्रों और अपनों के साथ ख़ुशी सांझी करना है। अगर मैं अपने देश, अपने परिवार से इतनी दूर नहीं होती तो शायद इसके सही मायनें कभी समझ ही नहीं पाती। ये सच्चे मायनों में एक घर वापसी का उत्सव है।
मूल चित्र : Unsplash
My name is Indu. I am a computer engineer by profession and qualification. I am also a very analytical person and have interests in analyzing the things from a different perspective which convince me to read more...
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