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ममता को मोदक बनाने नहीं आते थे, पर उसने यूट्यूब पर देख के बनाए। दोनों के बीच एक अजीब सा रिश्ता था, जो शब्दों में बयान नहीं हो सकता था।
“तुम रोज़ आती हो यहाँ, पर अंदर क्यों नहीं जातीं?”
ममता ने पीछे मुड़कर देखा तो एक दस-बारह साल का गोलू-मोलू लड़का खड़ा था! ममता ने कुछ जवाब नहीं दिया। वह लड़का बिना कुछ कहे उसके बगल में बैठ गया।
“तुमको सुनाई नहीं देता क्या?” इशारों से उसने पूछा।
उसके ऐसे इशारों से पूछने से ममता को हंसी आ गयी। “ऐसा कुछ नही हैं”, ममता ने कहा।
“तो उत्तर क्यों नही दिया?”
ममता ने कहा, “बहुत से प्रश्नों के उत्तर कहाँ मिलते हैं।”
“तो नाराज हो उनसे?”
ममता ने उसको आश्चर्य से देखा, “तुमको कैसे पता?”
“सीधी सी बात है, अगर नाराज़ नहीं होतीं तो अंदर जातीं। मंदिर में आ कर अंदर नहीं जा रही हो, इसका मतलब कि तुम भगवान से नाराज़ हो।”
ममता ने कहा, “साइज़ छोटा है तुम्हारा, पर समझदार बहुत हो। नाम क्या है तुम्हारा?”
“विनायक नाम है।”
“अच्छा विनायक, तुम्हारे मम्मी-पापा कहाँ हैं?”
“वो अंदर हैं। वहाँ बहुत भीड़ है। मुझे घबराहट हो रही थी, तो मैं बाहर आ गया ताज़ी हवा खाने।”
ममता ने कहा, “तुम मुझे ‘तुम’ क्यों कहते हो? आंटी या दीदी कहो, मैं तुमसे कितनी बड़ी हूँ।”
विनायक ने कहा, “मैं किसी रिश्ते में नहीं बंधता। तुम मुझे अपना दोस्त ही समझो।”
ममता ने कहा, “दोस्त? अपनी उम्र देखी है?”
“दोस्ती की कोई उम्र नहीं होती।” ममता के सामने खड़े हो कर विनायक बोला।
“अच्छा-अच्छा मेरे प्यारे दोस्त, अब मैं चलती हूँ। आरती भी खत्म हो गयी और माँ भी आ रही हैं”, ममता ने अपना पर्स कंधे पे लटकाते हुए कहा।
“दोस्त! कल भी ज़रूर आना”, विनायक ने ज़ोर से आवाज़ लगा के कहा।
“हां!” ममता ने सर हिला के कह दिया।
दूसरे दिन ममता समय पर पहुँच गयी। तभी पीछे से आवाज़ आयी, “तुम आज भी मंदिर के अंदर नहीं जाओगी?” विनायक ने पूछा।
“अरे तुम कब आए? मैंने देखा ही नहीं”, ममता ने सकपकाते हुए पूछा।
“मैं तो सदा यहीं रहता हूँ। बस तुम लोग ही मुझे देख नहीं पाते हो”, विनायक ने मुस्कुराते हुए कहा। “हाथ में क्या है तुम्हारे?” विनायक ने उत्सुकता से पूछा।
“आज खीर बनाई थी, तो सोचा तुम्हारे लिए ले आऊँ। तुमको पसंद है?” ममता ने उसकी तरफ खीर का डिब्बा बढ़ाते हुए पूछा।
“वैसे तो मुझे मोदक बहुत पसंद हैं, पर खीर भी चलेगी”, कहते हुए खीर का डिब्बा हाथ से लेकर खाने लगा।
ममता को बहुत अच्छा लग रहा था उसे चाव से खीर खाते हुए देख के।
“दोस्त, एक बात पूछूँ?”
ममता ने कहा, “मना किया तो नहीं पूछोगे?”
“अच्छा पूछो।”
विनायक ने कहा, “दोस्त तुम यहाँ तक आके भी अंदर क्यों नहीं जातीं?”
ममता कुछ सेकेण्ड चुप हो गयी, “क्या कहूँ? तुम बहुत छोटे हो, तुम समझ नहीं पाओगे।”
विनायक ने खीर खाके अपना मुँह अपने हाथों से पोंछ कर कहा,”मेरे साइज़ पर मत जाओ। मैं देखने में बच्चा हूँ, पर मुझसे बुद्धिमान कोई नहीं है।”
उसकी बातें सुनकर ममता को हंसी आ गयी।
“अरे हँस क्यों रही हो? अच्छा ये सोच के बता दो कि अपनी मन की भड़ास निकाल रही हो।”
ममता कुछ समय चुप रही, फिर बोली, “शादी को नौ साल हो गए, पर अभी तक मेरी गोद सूनी है। शादी के तीसरे साल माँ बनने का सुख नसीब हुआ, पर वो भी केवल 9 महीने के लिए। डिलेवरी के बाद ही ..”, ममता का गला भर आया।
सब मुझे ही ताने देते हैं, “और करो आराम से बच्चा! शादी के तुरंत बाद ही कर लेतीं, तो ये सब नहीं देखना पड़ता।”
“उसके बाद हमने कितनी कोशिश की, न जाने कितने डॉक्टर को दिखाया, न जाने कितने मंदिर गए, कितने उपवास किये, दूर-दूर मंदिर गई, कितनी मन्नतें माँगी। मुझे शुरू से अपने भोलेनाथ पर विश्वास था। लेकिन धीरे-धीरे वो विश्वास भी डगमगाता गया। सब कहते थे कि भगवान के घर देर है, अंधेर नहीं। पर मेरे हिस्से में तो अंधेर ही है। अब तो कोई उम्मीद करनी ही छोड़ दी।”
“अच्छा विनायक चलती हूँ। समय हो गया।”
“दोस्त कल मेरे लिए मोदक लाना नहीं भूलना”, विनायक ने कहा।
ममता ने अपने आँसू छुपा के मुस्कुराते हुए ‘हाँ’ में सिर हिला दिया।
“चलें मम्मी जी? ममता ने कहा।
सासू माँ ने कहा, “अरे अभी तो पंद्रह-बीस मिनट हैं जाने में, इतनी जल्दी तैयार हो गयी?”
“वो मम्मी जी, रास्ते में ट्रैफिक भी होता है इसलिए…”
ममता विनायक का इंतज़ार कर रही थी।
“ले आयी मेरे मोदक!” मोदक का डिब्बा हाथ से लेते हुए विनायक बोला।
“ममता ने कहा, तुमको कैसे पता कि मैं मोदक ही लायी हूँ?”
“खुशबू दूर से ही पहचान जाता हूँ मोदक की।” एक मोदक मुँह में डालते हुए विनायक ने कहा।
“दोस्त, एक दिन तुमने कहा था कि कुछ प्रश्न के उत्तर नहीं मिलते। ऐसा क्यों कहा?”
“विनायक तुम्हारे कान तो बहुत तेज़ हैं! वो तो मैंने बुदबुदाया था, तुमने सुन लिया?”
“ये तो सही कहा। मेरे कान हाथी की तरह बड़े हैं। देखो!” हाथी की नकल उतारते हुए विनायक बोला।”
ममता फिर हँस पड़ी।
“बताओ न क्यों कहा था?”
“बहुत से प्रश्न हैं जिनके उत्तर तुम्हारे भगवान के पास नहीं हैं। उत्तर मांग-मांग के थक गई।”
“जैसे कि?” विनायक ने उत्सुकता से पूछा।
“बच्चे हो तुम सारी बातें नहीं बता सकती तुमको।”
“मुझे सबके मन की बात पता होती है।” विनायक बोला।
“अच्छा तो क्या पता है तुम्हें? मुझे बताओ”, ममता ने अपनी हथेली अपनी ठुड्डी पर रखते हुए पूछा।
“ये ही कि अगर माँ बनने का सुख देना नहीं था, तो नौ महीने कोख में क्यों रखा? मेरे मन में मातृत्व के भाव क्यों जगाए?”
ममता आश्चर्य से देखती रही विनायक को। तभी मम्मी जी आ गईं और वो बिना कुछ कहे वहाँ से चली गयी।
ममता के दिमाग में ये ही चल रहा था, ‘कौन है विनायक? मेरे मन की बातें उसको कैसे पता चल जाती हैं?’
दूसरे दिन जब ममता गयी तो विनायक नहीं था। वह थोड़ी देर बाद आया।
“इतनी देर क्यों कर दी?” ममता ने विनायक के आते ही पूछा?
“उनसे तुम्हारे प्रश्न के उत्तर पूछने गया था”, विनायक ने कहा।
“अच्छा, तो मिल गया उत्तर?” ममता ने बैग से लड्डू का डिब्बा निकालते हुए कहा।
“हाँ, मिल गया”, विनायक ने लड्डू का डिब्बा लेते हुए कहा।
ममता ने अपने चहेरे पर बनावटी हँसी लाते हुए कहा, “तो क्या कहा तुम्हारे भगवान ने?”
“तुम्हारी गोद इसलिए भरी, जिससे तुममें एक माँ का एहसास जगे, और छिनी इसलिए क्योंकि वो नहीं चाहता कि तुम सिर्फ एक बच्चे की माँ बन कर रहो। तुम्हारा बच्चा होता, तो तुम उसी के मोह में रहतीं। तुमको सैंकड़ों बच्चो को अपनी ममता के आँचल में समेटना है।”
इतना ही कहा था विनायक ने कि ममता ने लोगों की भीड़ आती देखी। सब कह रहे थे ‘गणपति बप्पा मोरिया’ और गुलाल और नगाड़े की आवाज़ ज़ोर-ज़ोर से सुनाई दे रही थी। ममता ने आसपास देखा तो विनायक नहीं था। ममता के सामने गणपति की मूर्ति थी, जो कुछ लोग उठा कर विसर्जन के लिए ले जा रहे थे। ‘गणपति बप्पा मोरिया! अगले बरस फिर आना!’ के नारे लगाते, झूमते-नाचते जा रहे थे।
ममता को आज अपने सारे प्रश्नों के उत्तर मिल गए थे। ममता भी भाव-विभोर हो कर ज़ोर से ‘गणपति बप्पा मोरिया! अगले बरस फिर आना!’ बोलते हुए भीड़ में शामिल हो गयी।
नोट : ये सिर्फ एक काल्पनिक कहानी है इसका वास्विकता से कोई लेना देना नही हैं।
मूलचित्र : Unsplash
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