कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

आज फिर जीने की तमन्ना है, आज फिर मरने का इरादा…बिल्कुल नहीं !

WHO के अनुसार, हर साल लगभग एक लाख लोग आत्महत्या के कारण मरते हैं। यह आत्महत्या के प्रयास करने के बावजूद, एक खुशहाल जीवन जीने की कहानी है।

WHO के अनुसार, हर साल लगभग एक लाख लोग आत्महत्या के कारण मरते हैं। यह आत्महत्या के प्रयास करने के बावजूद, एक खुशहाल जीवन जीने की कहानी है।

आज विश्व आत्महत्या निवारण दिवस है…

अवसाद यानी डिप्रेशन की लहरें मुझे अपने संग बहा ले जा रही थीं। कुछ दिन ऐसे होते जब मैं बसंत की धुप सी खिली रहती और कई दिन ऐसे होते जैसे कि लंदन में छाये काले घने घनघोर बदल। 

ट्रिगर चेतावनी: यह लेख कुछ ग्राफिक विवरणों के साथ आत्महत्या के प्रयास का एक व्यक्तिगत खाता है,जो आत्महत्या के उत्तरजीवी के लिए विमोचक साबित हो सकता है।

और उन दिनों मैं खुद को ख़त्म कर देना चाहती हूँ। मेरे अवसाद ने मुझे कई बार यही कहा कि मैं किसी भी लायक नहीं हूँ, यहां तक के जीने के भी नहीं। मेरा जीवन बेकार है और मुझे जीने का कोई हक़ नहीं, कोई ज़रुरत नहीं। मैं अपने माता-पिता के निस्वार्थ प्यार के लायक नहीं हूँ और मुझे खुद को मार देना चाहिए। मैंने जितनी बार भी ख़ुदखुशी का प्रयास किया वह अब सोचें तो हास्यास्पद है। और ये सब इसलिए नहीं कि किसी लड़के ने मुझे ठुकरा दिया, बल्कि इसलिए क्योंकि मेरे दिमाग में सेरोटोनिन की कमी थी।

आत्महत्या का पहला प्रयास

मुझे लगता है कि आत्महत्या करने का मेरा पहला प्रयास…पहली बार मैंने खुद को मारने की तब कोशिश की जब मैं चौदह या पंद्रह साल की थी। मेरे जीवन में कुछ भी तो गलत नहीं था या यूँ समझें कि कम से कम बाहरी तौर पर तो सब ठीक ही था। दूसरी तरफ, अंदर ही अंदर कुछ तो गड़बड़ हो गई थी। मेरे अंदर के कुछ शैतान जाग कर पहली बार मुझे सता रहे थे। उन राक्षसों ने मुझे कहना शुरू कर दिया कि जो मेरे पास ये जीवन है ना, मैं उसके लायक नहीं हूँ। और बस एक दिन मैंने उसको ख़त्म करने की ठान ली!

मैंने अपने दादाजी के मेडिकल बॉक्स की मदद ली और उनकी नींद की गोलियाँ निकाल लीं। उस समय मैं चौदह साल की थी। मेरा खुद को मारने का कोई इरादा नहीं था, मैं तो बस हर चीज़ का अंत कर देना चाहती थी और मैंने चौदह गोलियां खा लीं। जब उनसे काम नहीं बना, तो मैंने कुछ गोलियां और खा लीं, लगभग आठ और।

मुझे बस इतना याद है कि उस दिन मुझे दिनभर बेहद नींद आती रही। जैसे-तैसे मैंने पूरा दिन निकाला। मुझे पता था कि रात के अंत तक सब कुछ ख़त्म हो जाएगा, इसलिए मैं बहादुरी से डटी रही और बिल्कुल घबराई नहीं।

शाम तक, मुझे थोड़ी उबकाई आने लगी। मैंने इसके लिए अपने तनाव को ज़िम्मेदार ठहराया और जो कुछ भी चल रहा था, उसे यूँ ही चलने दिया। उसके बाद, जहां तक कि मुझे याद है, माँ ने मुझे जगाया और तैयार होने के लिए कहा। हम बाहर जा रहे थे। और हम बाहर गए।

बस इतना ही मैं स्पष्ट रूप से याद कर सकती हूँ…हम अपने पसंदीदा रेस्तरां में गए, मम्मी, पापा और मैं। वे मेरे साथ कुछ गंभीर वार्तालाप करना चाहते थे। और मैं? मैं उन पर बोझ बनने के लिए खुद को मारना चाहती थी। बैरा हमें लाइम सोडा दे कर चला गया और जैसे ही मैंने अपना पहला घूंट लिया, मैं पांच मिनिट तक बस उल्टियां करती रही।

मुझे बिलकुल भी याद नहीं कि आगे क्या हुआ। लेकिन मुझे इतना ज़रूर याद है कि खुद को ना ख़त्म कर पाने पर मुझे बहुत ही बड़ी विफलता का अहसास हो रहा था। 

जब ये भी काम नहीं बना 

क्यूंकि मैं खुद को मारने में नाकामयाब रही, मुझे अपना जीवन और भी निराशाजनक और बेकार लगने लगा। मैं लगातार एक अँधेरी खाई की तरफ बढ़ने लगी। मैंने किसी से कुछ नहीं कहा। मैं ये सोच कर चुप रही कि मेरे माता-पिता व्यर्थ ही मेरी चिंता करेंगी और वैसे भी, मैं ये सब ख़त्म कर देना चाहती थी।

मैं जानती हूँ कि आपको सोच रहे होंगे कि मैं कितनी स्वार्थी हूँ, लेकिन ज़रा सोचें कि मेरे दिमाग में उस वक़्त क्या चल रहा होगा, खास कर के तब, जब मैं जीना ही नहीं चाहती थी। मैं कोई स्वार्थी बच्ची नहीं थी, बल्कि इस बच्ची के दिमाग में हज़ारों मुद्दे एक साथ घूम रहे थे। उन मुद्दों को सुलझाया भी जा सकता था, मगर ये तब मुमकिन होता अगर मैं किसी से इनका ज़िक्र करती।

अब अगर पीछे मुड़कर देखें, तो मुझे लगता है कि मैंने अपनी माँ को किस तरह की दलदल में फंसाए रखा। लेकिन मुझे उन्हें इस बात श्रेय देना होगा कि वह पिछले पच्चीस साल से मेरे साथ चट्टान बन कर साथ खड़ी हैं, और मुझे आज इस बात की बेहद ख़ुशी है।

मुझे यह सब आज, जब मैं खुद पच्चीस साल की हो गयीं हूँ, तब महसूस हो रहा है। मेरा ध्यान शुरू से बस इस बात पर केंद्रित रहा कि मैं अपने माँ-बाप पर बोझ ना बनूँ और ये सब ख़त्म कर दिया जाए। मुझे खुशी है कि मैं बच गयी क्योंकि मैं जानती हूँ की मेरी मौत से वे तबाह हो जाते।

अगले प्रयास की तरफ चलते हैं…

…खैर! मरने के नंबर दो प्रयास की तरफ चलते हैं। यह कुछ साल बाद था। अगर इन दो प्रयासों के बीच के साल बुरे नहीं थे, तो वे अच्छे भी नहीं थे। मुझे अभी भी नहीं पता कि मैंने उस दौरान आत्महत्या करने का प्रयास क्यों नहीं किया। लेकिन मुझे खुशी है कि मैंने ऐसा नहीं किया।

अब मुझे पता था कि गोलियाँ काम नहीं करतीं। इसलिए, मैंने खुद को मारने के कुछ तरीके खोजने शुरू किये। लेकिन गूगल ने मुझे सिर्फ हेल्पलाइन नंबर दिए।

नहीं! मुझे ये तो बिलकुल नहीं चाहिये थे। मुझे चाहिए थी दर्द रहित, आसान सी, तत्काल मौत। मेरे विकल्प तो खुद को काटकर या छत से कूदकर मरने जैसे थे। वो बात अलग है कि विकल्प नंबर दो ज़रा ठीक नहीं था क्यूंकि मेरे पड़ोसी हर चीज़ में अपनी नाक घुसाए रखते थे!   

तो, काटने से ही मरना होगा! अब, अपने आप को काटने के लिए, मुझे एक ब्लेड की आवश्यकता थी। यदि आप पुरुषों के साथ रहते हैं, तो एक ब्लेड का मिलना सबसे आसान है। और मैं भाग्यशाली रही! मैं एक संयुक्त परिवार में रहती थी तो ब्लेड की बहुतायत थी! लेकिन इन ब्लेडों का पहले भी उपयोग किया गया था और इस प्रकार ये स्वच्छ नहीं हुए (मेरी माँ एक डॉक्टर हैं तो…)। मैंने चार ब्लेड इक्कठे किए और उन्हें स्टरलाइज़ करने के मिशन पर लग गयी! 

प्रयास नंबर 2

ब्लेड स्टरलाइज़ करने के बाद, मैंने एक ब्लेड अपने बिस्तर के नीचे, एक अपने बैग में, एक अपने बटुए में, और हर संभवत: जगह पर एक ब्लेड रखने की कोशिश की। मैं जानती थी कि ब्लेड ही मेरी मदद करेगा, और, मुझे यह भी पता था कि मुझे खुद को गहरा काटना होगा ताकि खून बहने लगे और अंततः मैं मर जाऊँ। और यहां से मेरा खुद को काटने का सफर शुरू हो गया।

हर रात मैं शौचालय में बैठ कर, धीरे-धीरे ब्लेड को अपनी कलाई पर घिसती और खुद को ज़रा-ज़रा काटने लगी। मुझे लगा, धीरे-धीरे यूँ रोज़ खुद को काटने से एक दिन घाव गहरा हो ही जाएगा और उसमें से खून बहने लगेगा और मैं मर जाऊँगी।

मगर अफ़सोस उनमें से कोई भी घाव मुझे मारने लायक गहरा न हुआ। लेकिन उन घावों में दर्द बेहद होता और मैं अपने आप को इस दर्द का हक़दार मानती। कभी-कभार हल्का सा खून भी बहता, पर मैं इसे ख़ुशी-ख़ुशी अनदेखा कर देती।

हर रात, महीनों तक, यूँ ही चलता रहा। महीने बीत गए और मुझे ये सब छुपाने में इतना अच्छा लगने लगा कि मुझे खुद पर थोड़ा गर्व होने लगा। मुझे ऐसा लगा जैसे कि जो हो रहा है, मैं उसकी असली दावेदार, उसकी असली हक़दार हूँ।  

एक दिन, जब एक घाव कुछ ज़्यादा ही गहरा हो गया और मेरी कलाई से खून बहने लगा तो मुझे लगा, बस आज तो हो गया!

मैंने बिना कोई चूं किये पूरी रात खून को बहने दिया। मुझे पूरा यकीन था कि बस वो मेरी आख़िरी रात होगी। हालांकि, मेरी चादर पर खून के कई धब्बे थे और मेरे कपड़ों पर भी, मगर मैं मरी नहीं।

शुक्र है, मेरे माता-पिता, दोनों उस दिन घर से बाहर थे, और उन्होंने ये सब नहीं देखा। मैंने उठ कर फटाफट खुद को साफ किया, फिर बिस्तर की चादर साफ की। और एक बार फिर, मुझे खुद पर दया आने लगी और मैं एक बार फिर न मरने के ग़म में घुलने लगी। 

खुद को काटने का यह अंत नहीं था 

इस हादसे के बाद, मैं कहना तो ये चाहती थी कि ‘अब बस खुद को काटने का यहीं अंत हुआ’, पर वास्तव में ऐसा कुछ भी नहीं था। उसके बाद ख़ुद को काटना एक आदत, या यूँ समझें कि यह एक तरह से ‘एस्केप मैकेनिज़म’ बन गया था। जब भी महसूस होता कि मैं कुछ ऐसा सोच रही हूँ जो भयानक सा लग रहा है, मैं खुद को काटने लगती और यह मेरा पसंदीदा प्रक्रम बन गया।

मुझे नहीं मालूम था कि मुझे डिप्रेशन है। कहने में मुश्किल लगता है लेकिन यह मेरा ही एक हिस्सा था जो मुझे खुद को मारने पर मजबूर कर रहा था। मेरे माता-पिता शुरू से ही मेरे सबसे बड़े समर्थक रहे और वे ही हमेशा मेरी सहायता करने के लिए भी साथ रहे। 

पिछले साल ही, मानसिक रूप से पूर्ण तरह से टूटने के बाद ही, मुझे मेरे डिप्रेशन(या अवसाद) के बारे में पता चला। जब माँ को पता चला और उन्होंने मेरे काटे के निशान जगह-जगह देखे, उस क्षण मैं जीते जी मर गयी। तब मुझे अहसास हुआ कि मैं उनके लिए कितने मायने रखती हूँ। बस उसी क्षण मैंने जीने की कोशिश करने का फैसला कर लिया। 

मैंने जीने का सबक सीखा

‘सुसाइड प्रिवेंशन डे’ के अवसर पर मैं ये सब लिख तो रही हूँ, लेकिन मेरे पास दूसरों को सीख देने के लिए कुछ भी नहीं है। कुछ भी नहीं! लेकिन, मैं हर किसी को ये ज़रूर कहना चाहती हूँ कि जब भी आप खुद को अकेला महसूस करें और आपको लगे कि इस दुनिया में आपका कोई नहीं है, कोई भी नहीं, तब भी एक न एक व्यक्ति ऐसा ज़रूर होगा जो हमेशा आपके साथ रहेगा। भरी-पूरी सेना नहीं तो ना सही, लेकिन एक व्यक्ति आपके साथ या आपके लिए ज़रूर होगा। उनके बारे में सोचें।

अगर आपको तब भी लगता है कि आत्महत्या ही एकमात्र विकल्प है, तो भी आपको पता होना चाहिए कि मुझे आपकी परवाह है। भले ही आप मुझे नहीं पहचानते और मैं आपकी कोई भी नहीं, मगर तब भी मुझे आपकी परवाह है। और मैं चाहती हूँ कि आप जीवित रहें।

आप पीछे मुड़ कर देखें, तो जीवन बहुत ही सुंदर, बेहद ही बढ़िया है, ख़ास कर के तब, जब ये बात एक ऐसे  व्यक्ति से आ रही हो जो कि खुद हर दिन को एक नया दिन मानता हो और इसे जीने की भरपूर कोशिश कर रहा हो।  

यदि आपको या आपके किसी परिचित को आत्महत्या करने के विचार आते हैं, तो यहाँ, भारत में उपलब्ध, कुछ हेल्पलाइन्स हैं। कृपया कॉल करें:

आसरा, मुंबई: 022 27546669

स्नेहा, चेन्नई: 044 2464 0050

लाइफलाइन, कोलकाता: 033 2474 4704

सहाय, बैंगलोर: 080 25497777

रोशनी, हैदराबाद: 040 66202000, 040 66202001

मूल चित्र : Pixabay

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

Guest Blogger

Guest Bloggers are those who want to share their ideas/experiences, but do not have a profile here. Write to us at [email protected] if you have a special situation (for e.g. want read more...

12 Posts | 65,929 Views
All Categories