कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

कन्या पूजन और नवरात्रि तक ही क्यों सीमित रहती है हमारी श्रद्धा?

कन्या पूजन और नवरात्रि के अवसर पर सोचिये नारी यदि दुर्गा है, देवी है, शक्ति है तो नारी शक्ति को कम मत आँकिए, उसका एक रूप माँ काली भी है।

कन्या पूजन और नवरात्रि के अवसर पर सोचिये नारी यदि दुर्गा है, देवी है, शक्ति है तो नारी शक्ति को कम मत आँकिए, उसका एक रूप माँ काली भी है।

मैं समिधा नवीन, कन्या पूजन और नवरात्रि पर अपने कुछ विचार आप सबसे साझा करना चाहती हूँ । अपनी सहमति और असहमति से मुझे अवगत ज़रूर कराइयेगा।

नवरात्रि आने पर हम सभी देवी पूजन, शक्ति पूजन, कन्या पूजन के लिए उत्साहित रहते हैं। हम में से अधिकांश तो पूरे नवरात्रि उपवास करके अष्टमी या नवमी को कन्यायों को भोजन, भेंट और दक्षिणा आदि देकर ही व्रत का पारण करते हैं।

हमारी यह श्रद्धा केवल नवरात्रि की अष्टमी, नवमी तक ही सीमित क्यों

किन्तु, समाज में कन्याओं के साथ घट रही बलात्कार या शोषण की घटनाओं को देख-सुन कर लगता है कि कन्यायों के प्रति हमारी यह श्रद्धा केवल नवरात्रि की अष्टमी, नवमी तक ही सीमित क्यों रह जाती है? कुछ गन्दी मानसिकता, बल्कि मैं तो कहूँगी, बीमार मानसिकता वाले लोगों को उन कन्याओं में अपनी बहन, बेटी, माँ या देवी नज़र क्यों नहीं आती?

और पुरुषों की सोच को छोड़िए, नारी ही नारी की कम शत्रु नहीं

आज भी अगर यह पता लग जाए कि गर्भस्थ शिशु एक कन्या है तो दुख मनाने वाली अधिकांश स्त्रियाँ ही होती हैं। कन्या के जन्म पर दुःख मनाने वाली भी अधिकांश स्त्रियाँ ही होती हैं। तब वह स्त्री यह क्यूँ भूल जाती है कि वह खुद भी एक स्त्री है। तब वह स्त्री यह क्यूँ भूल जाती है कि नवरात्रि में देवी पूजन, शक्ति पूजन और कन्या पूजन का भला क्या औचित्य है?

यह चक्र अनवरत् चलता ही रहता है

विडम्बना तो देखिए नारी जाति की, कि यदि भ्रूणहत्या से बची तो जन्म लेने के बाद पुत्र-पुत्री की असमानता को झेला। वहाँ से निकली तो विवाह संबंधी, दहेज संबंधी स्मस्याओं ने घेर लिया, वहाँ से निकली तो ससुराल संबंधी अनगिनत समस्याओं ने आ घेरा। उन समस्याओं का निरन्तर सामना करते रहने के साथ माँ बनी और यदि कन्या को जन्म दिया तो फिर वही ताने और यह चक्र अनवरत् चलता ही रहता है।

ऐसा नहीं है कि समाज नहीं बदला है

ऐसा नहीं है कि समाज नहीं बदला है। पहले के मुकाबले समाज की सोच में अभूतपूर्व परिवर्तन आया है। स्त्री स्वयं को हर क्षेत्र में साबित करने के लिए निरन्तर प्रयत्नशील है। मैं पुरुष जाति या स्त्री जाति के विरुद्ध नहीं हूँ। मैं विरुद्ध हूँ समाज के उस वर्ग से, जो आज भी स्त्री को वस्तु मात्र समझता है।

बेटों को भी सिखाएं कि नारी जाति का सम्मान करें

मेरे विचार से समाज के हर पुरुष और स्त्री का यह दायित्व बनता है कि अपनी बेटियों को शालीनता व सभ्यता का पाठ पढ़ाने के साथ-साथ बेटों को भी सिखाएं कि नारी जाति का सम्मान करें क्योंकि नारी यदि प्रेमिका है तो बहन, पुत्री, पत्नी और माँ भी है। दुर्गा है, देवी है, शक्ति है। मैं समाज से कहना चाहूँगी कि नारी शक्ति को कम मत आँकिए, उसका एक रूप माँ काली भी है।

धन्यवाद। मुझे प्रतीक्षा रहेगी आपकी प्रतिक्रियाओं की। Youtube पर मेरा लिंक https://youtu.be/1CYKRlD-EaM

मूल चित्र : Unsplash

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

Samidha Naveen Varma

Samidha Naveen Varma Blogger | Writer | Translator | YouTuber • Postgraduate in English Literature. • Blogger at Women's Web- Hindi and MomPresso. • Professional Translator at Women's Web- Hindi. • I like to express my views on various topics read more...

70 Posts | 149,775 Views
All Categories