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अंधेरे से पहले सन्नाटा कैसा, ढलने से पहले ही ढलना कैसा, अंबर की ये बातें सुन, हैरान हुआ मन, जब सर उठाकर देखा, नभ के टिमटिमाते तारे बोले।
आसमान के भी हैं हज़ारों रंग कभी गहरा नीला तो कभी सूरज की लालिमा सा बिखरा गमगीन नहीं हर मौसम के साथ बदलता है रंग कभी बादलों की लिये टोली खेले ये आँख मिचोली सावन में देखो इस की पलकें भी है नम पर भीगे दामन में भी है सँजोए सात रंग शाम ढले देख चकित हुआ मन क्षितिज पर बिखरे हुए थे अनेक रंग पूछा अंबर से अब तो रात हो रही है फिर ढलने से पहले ये रंगों का मेला कैसा अंबर हँसा कहा अंधेरे से पहले सन्नाटा कैसा ढलने से पहले ही ढलना कैसा अंबर की ये बातें सुन हैरान हुआ मन जब सर उठाकर देखा नभ के टिमटिमाते तारे बोले आसमान के सारे राज़ खोले सिर्फ़ हमें ही नहीं इसने आँचल में सारे पहरों को है समेटा मौसम की रंगत को है लपेटा है शामियाना ये पूरे जग का तभी तो कहते हैं शाम-ओ-सहर सर पर पहरा है आकाश का आज भी चल देता हूँ नंगे पैर दौड़ जाता हूँ कहीं दूर नील गगन में रात की चादर तले आसमान की बाँहों में सितारों की महफ़िल में सपनों की बस्ती में उमीद का दामन थामे कोशिशों का जामा पहने मंज़िल की तलाश में बस इसी आस में कुछ और ना सही हीरे मोती ना सही चाँद सितारे ना सही मुट्ठी भर आसमान तो हाथ आए मुट्ठी भर आसमान तो हाथ आए
मूल चित्र : Unsplash
Founder of 'Soch aur Saaj' | An awarded Poet | A featured Podcaster | Author of 'Be Wild Again' and 'Alfaaz - Chand shabdon ki gahrai' Rashmi Jain is an explorer by heart who has started on a voyage read more...
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