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तुम क्या जानोगे हमको, जितना हमने ख़ुद को जाना है, सूरत से दिखते हैं जो, बस उतना ही पहचाना है? अब सिर्फ नारी! क्यों कहूँ मैं ख़ुद को अबला
अब नारी, नहीं मैं अबला हूँ लक्ष्मी दुर्गा सबला हूँ सिर्फ नारी, नहीं मैं अबला हूँ सीमाओं को लाँघ कर मर्यादा को थामकर दिखा रही पग उजला हूँ बस नारी, नहीं मैं अबला हूँ
तुम क्या जानोगे हमको जितना हमने ख़ुद को जाना है सूरत से दिखते हैं जो बस उतना ही पहचाना है दूर करेंगे वहम तुम्हारे कर रहे पूरा हर सपना हैं हाँ अब नारी, नहीं हम अबला हैं
अपमानों का दाग़ मिटाकर स्वाभिमान का भाव जगा कर दिखा रहे पग उजला हैं क्योंकि नारी, नहीं हम अबला है
मूल चित्र : Pexels
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