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ना जाने कितनी औरतों की कहानी शुभी और कनक जैसी है, जिनके पति उनको एटीएम कार्ड तो देते हैं लेकिन उस एटीएम कार्ड को इस्तेमाल करने की आज़ादी नहीं देते।
शुभी सुबह की चाय पी रही थी, तभी मोबाइल की घंटी बजी। उसकी बहन कनक का फोन था, ‘दीदी, रवि की ऑफिस की तरफ से वर्कशॉप है, इसलिए मैं एक सप्ताह के लिए आ रही हूँ कल।’ शुभी फोन रख कनक के आने की तैयारी करने लगी।
शुभी बहुत खुश थी। उसका काम में मन नहीं लग रहा था क्योंकि आज उसकी छोटी बहन कनक शादी के बाद मिलने आने वाली थी। कनक की शादी को अभी एक ही महीना हुआ था। कनक भी अपनी बड़ी बहन से मिलने के लिए बेताब थी। उसे भी अपनी बहन से ढेरों बातें करनी थीं। शादी की भाग-दौड़ में कब एक महीना बीत गया, उसे पता ही नहीं चला। उसे इस बात की बेहद खुशी थी कि रवि की जॉब कानपुर में ही थी जहाँ दीदी रहती है। रवि उसे अपने साथ कानपुर ले आए थे। रवि की शहर से बाहर एक सप्ताह की वर्क शॉप थी तो इस बात से कनक बहुत ही खुश थी कि अब वह और दीदी मिलकर ढेर सारा मजा करेंगे।
रवि ने कनक को शुभ के घर छोड़ दिया। शुभी और कनक बहुत खुश हो गए। दोनों ने घर के काम खत्म करके चाय बनायी और आराम से बैठ कर बातें करने लगीं।
शुभी ने कनक से पूछा, ‘और बता कनक तेरी नई ज़िन्दगी कैसी चल रही है? सुहागरात में क्या गिफ़्ट दिया रवि ने तुझे?’
यह सुनकर कनक का चेहरा शर्म से लाल हो गया। कनक ने अपनी दीदी को बताया, ‘दीदी, रवि ने सुहागरात पर मुझे कुछ अलग ही गिफ्ट दिया है। मैं तो सोच रही थी हीरे की अंगूठी या कुछ और देंगे लेकिन उन्होंने तो मुझे एटीएम कार्ड गिफ्ट में दिया है। उसमें पाँच हज़ार रुपये डाल कर दिए हैं और कहा है कि यही तुम्हारा गिफ्ट है।’
शुभी ने बड़े आश्चर्य से कनक को देखा और दोनों खिलखिलाकर हंसने लगीं।
शुभी सोचने लगी कि रवि कितने मॉडर्न ख्यालों का है। उसके पति रमेश ने तो आज तक उसे घर खर्च तक के रुपए नहीं दिए। वह तो खुद ही सारा सामान ला कर रख देता है और केवल थोड़े बहुत रुपए ही उसे देता है, वह भी तब, जब वह उससे मांगती है। उसके खुद के कपड़े भी वही साथ जाकर दिलाता है।
कनक कहने लगी, ‘दीदी कहां खो गई?’
‘कहीं नहीं कनक, बस ऐसे ही …’
कनक शुभी से कहने लगी, ‘दीदी, चलो बाज़ार चलते हैं, कुछ शॉपिंग करेंगे। वैसे भी बहुत दिन हो गए तुम्हारे साथ शॉपिंग नहीं की।
‘ठीक है, काम खत्म करके लंच के बाद चलते हैं दोनों।’
मार्केट में कनक ढेर सारी शॉपिंग करी, उसके पास एटीएम कार्ड जो था, वह भी उसे उसके पति ने गिफ्ट दिया था। वह बहुत ही उत्साहित थी कार्ड स्वाइप कराने के लिए। उसने अपना मनपसंद सामान खरीदा और कार्ड से पेमेंट करी।
शॉपिंग करने के बाद दोनों होटल में कॉफी पीने के लिए बैठ गयीं। दोनों बहुत ही खुश थीं। बहुत दिनों बाद दोनों बहनों को यह मौका मिला। इतने में रवि का फोन आ गया। रवि ने कनक से पूछा, ‘क्या तुमने एटीएम कार्ड इस्तेमाल किया है?’
‘हाँ, क्यों क्या हुआ?’
‘कुछ नहीं, मेरे पास मैसेज आया इसलिए। लेकिन, कनक तुम्हें इतने पैसों की क्या ज़रुरत पड़ गई?
‘रवि, मैंने रुपए नहीं निकाले। मैंने तो शॉपिंग की है, कुछ अपने लिए और दीदी की बेटी रिया के लिए, जिसका जन्मदिन परसों है। उसके जन्मदिन की ड्रेस दिलाई है।’
‘फिर भी कनक, तुम्हें इस तरह से फालतू रुपए खर्च नहीं करने चाहियें।’
कनक को बहुत बुरा लगा है। वह अपनी बड़ी बहन शुभी की तरफ देखने लगी। शुभी को भी आश्चर्य हुआ कि यह कैसा गिफ्ट है जिसे इतेमाल नहीं किया जा सकता है? क्या सिर्फ दिखावे के लिए और कनक की नज़रों में महान बनने के लिए रवि ने सुहागरात पर एटीएम कार्ड गिफ्ट किया था? शुभी और कनक दोनों सोचने लगीं कि दोनों की स्थिति लगभग एक जैसी है।
हम औरतों को कब मिलेगी आर्थिक आज़ादी? अगर हम कुछ अपने मन की करना चाहें तो नहीं कर सकती हैं। बहुत सारी कामकाजी महिलाओं की स्थिति भी ऐसी ही है। वे भी हमेशा अपने मन से खर्च नहीं कर सकती हैं।
दोस्तों, ना जाने कितनी औरतों की कहानी शुभी और कनक जैसी है, जिनके पति उनको एटीएम कार्ड तो देते हैं लेकिन उस एटीएम कार्ड को इस्तेमाल करने की आज़ादी उन्हें नहीं देते। आपको क्या लगता है, पति का आपको एटीएम कार्ड देना क्या आर्थिक आज़ादी है?
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मूलचित्र : Pixabay
Msc,B.Ed,बचपन से ही पढ़ने लिखने का शौक है कॉलेज के जमाने से ही लेख कविता और कहानियां लिख रही हूं मुझे सामाजिक मुद्दों पर लिखना पसंद है अपनी कहानियों के माध्यम से समाज में पॉजिटिव बदलाव लाना चाहती हूं। read more...
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